अंतरराष्ट्रीय बालिका वर्ष
काशी से पधारे
साधू महात्मा के चरणों मैं
गर्भवती दुलारी ने
जैसे ही शीश नवाया
' कन्यावती भव ' का
आशीर्वाद पाया
दुलारी झटके से दो क़दम पीछे हटी
उसकी आँखें रह गयी फटी की फटी
' महाराज ! आप तो अन्तर्यामी हैं
मैं तो पहले ही दो पुत्रियों की माता हूँ
फिर एक और !
मुझ दुखिया को कब मिलेगा ठौर ? '
साधु का चढ़ गया पारा
वह क्रोधित हो हुंकारा
' चुप कर मूर्ख , पुत्री ही होगी तेरे
इतना भी नहीं जानती
समय को नहीं पहचानती
पूत बन रहे हैं कपूत
आज ढूँढने पर भी नहीं मिलता
श्रवण कुमार
यूँ भी
यह अंतर्राष्ट्रीय बालिका वर्ष है
सावधान !
अगर इस वर्ष जन्मा तूने पुत्र !
आज सिर्फ
लष्मीबाई जैसी
वीरांगनाओं की हैं दरकार। '
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