छोटे छोटे सुख
हम लड़ते हैं
अपने लिए
अपने घरों के लिए
और अनजाने में ही
बन जाते हैं अजनबी
और जब
ज़मीन के सीने पर
हम जगह जगह
दीवारें चिनवाते हैं
हमें ख़ुद
मालूम नहीं पड़ता
हम , कब और कैसे
अपने छोटे छोटे सुख
अपने ही हाथों
चंद ईंटों में
चिन जाते हैं।
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