अंतरराष्ट्रीय बालिका वर्ष
काशी से पधारे
साधू महात्मा के चरणों मैं
गर्भवती दुलारी ने
जैसे ही शीश नवाया
' कन्यावती भव ' का
आशीर्वाद पाया
दुलारी झटके से दो क़दम पीछे हटी
उसकी आँखें रह गयी फटी की फटी
' महाराज ! आप तो अन्तर्यामी हैं
मैं तो पहले ही दो पुत्रियों की माता हूँ
फिर एक और !
मुझ दुखिया को कब मिलेगा ठौर ? '