Thursday, July 3, 2025

शहर और जंगल - अंतरराष्ट्रीय बालिका वर्ष

 अंतरराष्ट्रीय  बालिका वर्ष 


काशी से पधारे 

साधू महात्मा के चरणों मैं 

गर्भवती दुलारी ने 

जैसे ही शीश नवाया 

' कन्यावती भव ' का 

आशीर्वाद पाया 

दुलारी झटके से दो क़दम पीछे हटी 

उसकी आँखें रह गयी फटी की फटी 

' महाराज ! आप तो अन्तर्यामी हैं 

मैं तो पहले ही  दो  पुत्रियों की माता हूँ 

फिर एक और !

मुझ दुखिया को कब मिलेगा ठौर ? '

 

Ghazal - RAV _ Lesson

 आज का तरही मिसरा

'फूलों की तर्ह आपका किरदार ही नहीं' 

रदीफ़ - ही नहीं

क़ाफ़िया - किरदार, अखबार, दीदार, सरका, बीमार ,लाचार, अनुसार ख़ूँख़ार, अम्बार, दस्तार आदि

निवेदन - इस मिसरे को मतले में न लें। अन्य किसी शेर में गिरह लगा सकते हैं।

बह्र है

मफऊल फाइलात मुफाईल फाइलुन

221   2121 1221 212

Wednesday, July 2, 2025

शहर और जंगल - बैसाखी पर लटका ईमान

 बैसाखी पर लटका ईमान 


बेबस देखता है 

किसी गहरी खाई में 

अपने ही टुकड़े 

हर तरफ़

दरारें ही दरारें 

आती हैं नज़र ,

मैं कहाँ तक लगाऊँ 

इश्तहार इन सब पर 

इस आकाश के क्षितिज भी 

न जाने कहाँ खो गए ,

कटे पंखों वाले परिन्दें भी 

उड़ने की कोशिश मैं 

थक कर सो गए ,

आओ , आओ 

इनके जागने से पहले 

हम इस जंगल में 

आग लगा दें 

और इंसानियत के 

जितने भी मूल्य हैं 

उन सब को भुला दें। 

Tuesday, July 1, 2025

शहर और जंगल - सलीब का मूल्य

 सलीब का मूल्य 


तुम्हारी आवाज़ 

कई बार टूटी है 

दीवारों से टकरा कर 

भीड़ ने कई बार 

कुचली है तुम्हारी आवाज़ 

बेहतर होगा 

तुम कपडे उतार लो 

वार्ना भेड़िये फाड़ डालेंगे 

यक़ीन मानो 

तुम्हारी देह में  कीलें 

बिलकुल नहीं ठोकी जाएँगी 

वैसे भी 

सलीब पर टँगने का 

अब मूल्य  नहीं रहा।