इज़ाफ़त ,संबंधकारक (apostrophe)🌹(का, की, के)
हिंदी में इज़ाफ़त से बने कम्पाउंड वर्ड्स अक्सर लोग सही नहीं लिखते! शाने -हिन्द को शान -ए -हिन्द लिखते हैं ! हिंदी भाषा की तो यह विशेषता है कि जो लिखोगे ठीक वही पढ़ा जाएगा अर्थात यहाँ अंग्रेज़ी और उर्दू फ़ारसी आदि की तरह silent letters का चक्कर नहीं है जो हर्फ़ है उसे पूर्णतया पढ़ना है! अब वादी- ए -कश्मीर में ए पूरी तरह पढ़ा जा रहा है लेकिन शाने- हिन्द को अगर शान- ए हिंद- लिख रहे हैं तो ए पूर्ण रूप से नहीं पढ़ा जा रहा है! यदि ए को उसके पूर्ण उच्चारण के साथ पढ़ते हैं तो पढ़ा जाएगा शानएहिन्द जो ग़लत है और देवनागरी की इस विशेषता पर उंगली उठाने जैसा है कि जो लिखोगे वही पढ़ोगे!क्योंकि हम तो शाने- हिन्द लिखना चाहते थे ! हाँ तो होता यह है कि इज़ाफ़त से शब्दों को जोड़ने के लिए हर जगह बीच में ए लगा देते हैं । ज़ाहिर है यह सही नहीं है! आइये देखते हैं सही क्या है....
अगर शब्द के अंत में व्यंजन ( consonant) है तो दोनों शब्दों के बीच में ए न लगा कर पहले शब्द के अंतिम अक्षर पर ए की मात्रा लगानी चाहिए..
जैसे,
तलबे- यार =यार की तलब( तमन्ना)
शाने -हिन्द= हिन्द की शान
यादे- दोस्त=दोस्त की याद
ऐसी सूरत में फ़ारसी व उर्दू में आख़िरी हर्फ़ के नीचे ए की मात्रा की तरह का ज़ेर लगाया जाता है..
(طلب ِیار ، شانِ ہند ، یادِ دوست)
अगर अंत में स्वर ( vowel) है अब इज़ाफ़त के लिए ए से काम लिया जाएगा, जैसे...
दुनिया -ए -इश्क़= इश्क़ की दुनिया
ख़ुदा -ए -दो -जहाँ= दोनों जहान का ख़ुदा
वादी -ए -कश्मीर= कश्मीर की वादी
यारी- ए -इश्क़ = इश्क़ की यारी
बू -ए -गुल = गुल की ख़ुशबू
आरज़ू- ए- जन्नत= जन्नत की आरज़ू..
फ़ारसी व उर्दू में इज़ाफ़त के द्वारा ये कम्पाउंड वर्ड्स बनाने के लिए यदि अंत में अलिफ़ या वाव है तो हम्ज़ा+य ۓ और अन्य में केवल हम्ज़ाء लगाया जाता है..
( دنیاۓ عشق، خداۓ دوجہاں، آرزو ۓ جنت، بو ۓ وفا، وادئ کشمیر، جذبۂ عشق، وعدۂ وفا)
आदि आदि!
मोहतरम Zamir Darvaish के वाल से साभार
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