लघुकथा - जंगली जानवर
- " अरे , भई , इतने सहमी - सहमी क्यों चल रही हों ? " मैंने उस लड़की से पूछा।
- " क्या करूँ , जंगल ही इतना घना है और जंगली जानवर आस - पास घूम रहे हैं। " देर रात दिल्ली की उस पॉश इलाके से गुज़रते हुए उस लड़की ने जवाब दिया।
- " जंगली जानवर ? , मुझे तो कोई जंगली जानवर दिखाई नहीं दे रहा , बस चंद इंसान ही घूम रहे हैं। तुम्हें इनसे डर लग रहा है क्या ? "-मैंने उस लड़की से फिर पूछा।
- " हाँ , हाँ , मुझे इनसे ही डर लग रहा है क्योंकि ये इंसान ही पल भर में जानवर बन जाते हैं और अपने ख़ूनी पंजो से नौंचने लगते हैं औरत का जिस्म। "
उस लड़की की बात सुन कर मुझे कुछ अचरच हुआ और मैं ग़ौर से उन इंसानों को देखने लगा जिनके चेहरों पर अनगिनत मुखौटे थे।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
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