Saturday, July 8, 2023

लघुकथा - जंगली जानवर

 लघुकथा - जंगली जानवर 


- " अरे , भई , इतने  सहमी - सहमी    क्यों चल रही हों ? " मैंने उस लड़की से पूछा।  

- " क्या  करूँ , जंगल ही इतना घना है और जंगली जानवर आस - पास घूम रहे हैं।  " देर रात दिल्ली की उस पॉश इलाके से गुज़रते हुए उस लड़की ने जवाब दिया।  

- " जंगली जानवर ? , मुझे तो कोई जंगली जानवर दिखाई नहीं दे रहा , बस चंद इंसान ही घूम रहे हैं। तुम्हें इनसे डर लग रहा है क्या ?  "-मैंने उस लड़की से फिर पूछा।  

- " हाँ , हाँ , मुझे इनसे ही डर लग रहा है क्योंकि  ये इंसान ही पल भर में जानवर बन जाते हैं और अपने ख़ूनी पंजो से नौंचने लगते हैं औरत का जिस्म।   "

उस लड़की की बात सुन कर मुझे कुछ अचरच हुआ और मैं ग़ौर से उन इंसानों को देखने लगा जिनके चेहरों पर अनगिनत  मुखौटे थे। 


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस  

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