गीत
महकी है फिर गंध तुम्हारी
भीगी - सी इक रात हो तुम
कैसे करूँ श्रृंगार तुम्हारा
एक अधूरी बात हो तुम
भर दूँ मैं काजल कारा
धीरे धीरे सारा सारा
ठहरी हो इक रात कही पर
तुम्ही कहो फिर कौन हो तुम
सारी रात बजा कानो में
क़तरा क़तरा मौन हो तुम
ढँक लो तुम आँखे अपनी
इतनी सुन्दर सुन्दर सजनी
दर्पण में परछाई तुम्हारी
जब हो जाएगी गम यूँ ही
हर साँस कही थम जायेगा
बस थक जाओगी तुम यूँ ही
मैं भर दूंगा शाम कुँवारी
ढलके जो रेशम की सारी
कवि- इन्दुकांत आंगिरस
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