Friday, July 14, 2023

लघुकथा - बाइस्कोप


लघुकथा - बाइस्कोप 


 शायद आप सभी ने अपने बचपन में बाइस्कोप देखा होगा। एक ही बाइस्कोप में एक साथ ४ या ५ दर्शक बाइस्कोप देख सकते  हैं। किसी को पता नहीं होता कि दूसरा दर्शक कौन - सी फ़िल्म  देख रहा है जैसे कि आजकल  के पीवीआर सिनेमा हॉल जिनमें  एक ही समय में अलग अलग हॉल में अलग अलग फ़िल्में चलती हैं।  एक बार बचपन में बाइस्कोप चलते चलते बंद हो गया, थोड़ी देर बाद शुरू हुआ तो मेरा हॉल बदल गया था और फ़िल्म भी। अब  देखता हूँ कि हीरोइन पहले से भी ज़्याद मस्त है और डांस भी बेहतरीन कर रही है। उस वक़्त मालूम नहीं था कि असली ज़िंदगी में बाइस्कोप की मस्त हीरोइन कितनी महँगी पड़ती है।  इतनी महँगी पड़ती है कि आदमी गंजा हो जाता है और उसकी गंजी खोपड़ी के रनवे पर हीरोइन के ख़्वाइशो   की फ्लाइट्स लैंड करती रहती हैं ....करती रहती हैं ....करती रहती हैं . .....



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 





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