Thursday, July 13, 2023

लघुकथा - हवेली के आईने

 लघुकथा - हवेली के आईने 

ठाकुर रामलखन सिंह की बड़ी हवेली किसी महल से कम न थी। हवेली में नयी बहू के क़दम पड़े तो ठाकुर साहिब ने हवेली की काया पलट कर दी।  बहू किसी अप्सरा सी दिखती थी इसीलिए ठाकुर साहिब ने हवेली के गलियारों में रंगीन  फ्रेम वाले ख़ूबसूरत आईने लगवा दिए थे। 

बहू हवेली में कही से भी गुज़रती उसकी सुंदरता उन आइनों में क़ैद हो जाती। कुछ आईने ख़ुद पर इतराते तो कुछ शरमाते। ।एक दिन ठाकुर गलियारे के बड़े आईने के सामने खड़े होकर अपनी मूँछों पर ताव देने लगा और गलियारे में जाती बहूरानी को देख होंठों ही होंठों में मुस्कुराने लगा।  । ठाकुर की मुस्कराहट देख कर आईना सहम गया और डर के मारे थर थर काँपने  लगा। 

थोड़ी देर बाद बहूरानी उधर आई तो उस आईने को इतना सहमा सहमा देख कर  उससे पूछ बैठी - क्या हुआ , आज इतने सहमे हुए क्यों हो?

- "बहूरानी , हम आईने हैं , सच को सच और झूठ को झूठ दिखाना हमारा काम हैं। हम अपने हुनर से धोखा नहीं कर सकते , लेकिन इंसान के चेहरे पे चढ़े हुए मुखौटो से हम भी डर जाते हैं , सहम जाते हैं। "

आईने का जवाब सुन कर बहूरानी कुछ हैरान तो हुई लेकिन उसने अपना सर झुकाया और ख़ामोशी से आगे बढ़ गयी। 


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस           

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