Saturday, July 1, 2023

लघुकथा - श्रृंगार

 लघुकथा - सोलह श्रृंगार 


- " कुछ सज - सँवर कर रहा कर , तभी तो पति को रिझा पायेगी।  " रीता ने अपनी छोटी बहिन  चाँदनी से कहा।  

- " दीदी , काजल , बिंदी सब लगाती तो हूँ .." 

- " अरे , ख़ाली काजल , बिंदी से कुछ नहीं होगा , सोलह  श्रृंगार होते हैं।  "

- " उई माँ , मुझे तो सोलह श्रृंगार के नाम भी नहीं मालूम।  "  


रीता  ने अपनी बहिन चाँदनी को सोलह श्रृंगार का ज्ञान दे दिया और शाम ढलते ढलते चाँदनी  सोलह श्रृंगार कर तैयार हो गयी। देर रात थका - माँदा पति घर लौटा तो वह उसके सामने जा कर खड़ी हो गयी और बोली - सुनिए , आज कैसी लग रही हूँ मैं ?

पति मेहनत कर के लौटा था। उसका बदन पसीने में भीगा हुआ था और प्यास से उसका गला सूख रहा था। उसने झल्ला कर अपनी पत्नी से कहा  - " महारानी , पहले एक गिलास पानी ले आओ , कैसी लग रही हूँ मैं....अरे , जैसी हो वैसी ही लग रही हो ....

चाँदनी सकपका कर पानी लाने रसोई में घुस गयी और अपने सोलह श्रृंगार की ठीक - से गिनती करने लगी। 



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 

No comments:

Post a Comment