Saturday, July 15, 2023

कहानी - ख़सम

 

कहानी - ख़सम 



" सुनो जी , ऊपर से कुछ आवाज़ आ रही है " - संजना  ने मेअपने पति प्रमोद के  नज़दीक सरकते हुए कहा।

 

" ऊपर से कहाँ से " प्रमोद ने जिज्ञासा से पूछा।

 

" ऊपर वाले फ़्लैट से और कहाँ से  , ध्यान से सुनो , लगता है झगड़ा हो रहा है " संजना प्रमोद के होंठों पर ऊँगली रखते हुए  बोली थी।प्रमोद ने अपने कानों को खोला और अपने कान छत से लगा कर ध्यान से सुनने लगा।  ऊपर वाले फ़्लैट में एक अधेड़ उम्र का जोड़ा रहता था। पति सरकारी नौकर था और पत्नी गृहणी। शादी को लगभग बीस साल हो गए थे लेकिन अभी तक बच्चा नहीं हुआ था।  इस सिलसिले में सभी तरह का इलाज और झाड़ - फूंक उन्होंने कर लिया था लेकिन ढ़ाक के वही तीन पात।  आख़िर  उन्होंने बच्चों के बारे में सोचना छोड़ दिया था और इस अभाव ने उनक ज़िंदगी को शायद पहले से अधिक तल्ख़ बना दिया था। अक्सर रात के वक़्त मार - पीट की आवाज़े आती जो रात के सन्नाटे को चीरती हुई हमारे बैडरूम में हमारे बिस्तर की चादर पर अनचाहे अतिथि की तरह पसर जाती और अक्सर हमारे मिलन के रात उदासी की चादर ओढ़ कर सो जाती। लेकिन आज हमारे मिलन की रात बेचैन हो गई और इस रोज़ रोज़ के झंझट से तिलमिला उठी।

 

- " आपको पता है , ये ऊपर वाला अपनी बीवी की पिटाई करता है।  " संजना ने प्रमोद के छाती के बालो में  ऊँगली घुमाते हुए  कहा।

 

- " अच्छा , ये तो बहुत खराब बात है , तुम्हें कैसे पता ?" प्रमोद ने  जिज्ञासा से पत्नी से पूछा।

 

- " अरे , मुझे बता रही थी।  बहुत दुखी है बेचारी।  कह रही थी कि बस किसी भी बात को ले कर उसके पीछे पड़ जाता है।  मनमानी करने लगता है , अगर मान जाये तो ठीक नहीं तो गाली -  गलौच  और फिर मार - पिटाई। "

 

- " अच्छा , गाली भी देता है .." प्रमोद ने हैरानी से पूछा।

 

- " अरे , बस क्या बताऊँ आपको। इतनी गन्दी - गन्दी गाली देता है कि मुझे तो बताते भी शर्म आती है। "

 

- " तो फिर छोड़ क्यों नहीं देती , ऐसे हरामी खसम को। "

 

- " छोड़ कर जाये कहा बेचारी।  औरत की  तो मिटटी हो खराब है।  बीस साल शादी को हो गए , कोई औलाद भी नहीं है। "

 

- " औलाद नहीं है , तो कुछ इलाज - विलाज करवा लेते।  "

 

- " मालूम नहीं , अपनी बीवी को तो जगह - जगह दिखाता  फिरता है , अपना इलाज नहीं करवाता। "

 

- " आख़िर कमी किस में  है , ये तो पता लगे। "

 

- " अरे , कमी किसी में भी हो।  अब  औलाद नहीं हुई तो इसका मतलब ये थोड़े ही न है कि रोज़ रोज़ मार - पिटाई करेगा। "

 

- " हाँ , ये तो तुम ठीक कह रही हो।  सुनो , मैं पुलिस में रिपोर्ट कर देता हूँ।  " प्रमोद ने फ़ैसला  सुनाते  हुए कहा।

 

- " आप क्यों झगडे में पड़ते हो ? " संजना ने टालते हुए कहा।

 

- " उसको थोड़े ही ना पता चलेगा कि रिपोर्ट हमने करी है। " कह कर प्रमोद ने पुलिस का नंबर डायल कर दिया; झगडे की सूचना और पता बता कर बिना अपना नाम बताये फ़ोन  काट दिया।

 

- " अजी , आपने तो कमाल कर दिया , उसको अगर पता लग गया तो आपके पीछे पड़ जायेगा। "

 

- " उसे पता लगेगा तब ना , अभी देखना थोड़ी देर में पुलिस आएगी और जनाब की नौकरी भी ख़तरे  में पड़ जाएगी।  जानवर हैं साले , औरत को मारते है , वैसे बनते हैं पढ़े - लिखे अफ़सर। " प्रमोद ने ग़ुस्से में बोला और संजना को अपनी  बाँहों  में भरने लगा।  "

 

- " अजी रुको ना।  देखना बाहर , लगता है पुलिस आ गयी  ।  

 

बाहर दो पुलिस वाले आ गए थे और टोर्च की रौशनी से मकान नंबर देख रहे थे। मकान नंबर निश्चित कर पुलिस वाले ऊपर ज़ीने  में चढ़ गए।  चाँद मिनिटों में ऊपर से झगडे की आवाज़ें आना बंद हो गयी। लगभग आधे घंटे तक पुलिस वाले पूछताछ करते रहे।  जब पुलिस वाले जाने लगे तो प्रमोद ने उत्सुकतावश अपनी खिड़की के परदे को सरका कर बाहर देखा कि शायद ऊपर वाले मर्द (  जो अपनी बीवी को मारता है , कितना भी कमज़र्फ़ हो कहलायेगा तो मर्द ही )   को पुलिस वाले अपने साथ जा रहे हो लेकिन पुलिस वाले अकेले थे।

 

प्रमोद ने पुलिस वालो को भद्दी - सी गाली दी और संजना से बोला - " हरामी हैं साले , पैसे खा लिए होंगे। चलो अब कम से कम मारेगा तो नहीं ",  कह कर प्रमोद कुनमुनाते हुए संजना की गुदाज बाँहों में सिमट गया और इस बार संजना बिना आनाकानी के सीधी पसर गयी थी।  

अगली रात सोते वक़्त संजना की कथा फिर शुरू हो गयी।  पता नहीं औरतो को सेक्स के वक़्त ही दुनिया जहान की बाते क्यों सूझती हैं और आदमी उन बातों को सुनंने के अलावा और क्या कर सकते हैं।

 

" सुनो जी , पुलिस वाले २०००/ रुपए ले गए , आप ठीक कह रहे थे। " संजना ने प्रमोद की कमीज़ के खुले बटन बंद करते हुए कहा।

 

- " तुम्हें कैसे मालूम ? " प्रमोद ने संजना की चोली के बंद बटन खोलते हुए कहा।

 

- " दिन में बता रही थी मुझे।  कह रही थी कि पुलिस ने उससे अलग कमरे में ले जा कर  पूछताछ करी। "

 

- " कैसी पूछताछ ? " प्रमोद ने संजना को सहलाते हुए कहा।

 

- " यही कि उसका पति उसे मार रहा था क्या "- संजना ने प्रमोद के हाथ को हठाते हुए कहा।

- " फिर , उसने क्या कहा ?"

 

- " उसने मना कर दिया " - संजना ने  गंभीरता से बताया।

 

- " मना कर दिया , मतलब झूठ बोल दिया  , क्यों ? " प्रमोद ने ग़ुस्से से पूछा।


- " हाँ , मना कर दिया , कह रही थी कि मारे चाहे पीटे , है तो मेरा ख़सम  ही , जेल में कैसे भेज दूँ उसे।  पता नहीं कल रात किस मरदूद ने पुलिस में रिपोर्ट कर दी थी।  "

 

- " अच्छा तो ये बात है , एक तो इनकी मदद करो , ऊपर से गाली सुनो।  अरे , इसे आदत पड़ चुकी है पीटने की।  " प्रमोद तैश में आ गया था।

 

- " अजी नहीं , ऐसी बात नहीं है।  पर क्या करे बेचारी , जाये तो जाये कहाँ ; बहुत ज़ुल्म सहती है।  सारी - सारी रात सोने नहीं देता उसको।एक चोली और पेटीकोट में बिठाये रखता है , साड़ी भी नहीं पहनने देता। " - संजना ने नरम लहजे में बताया।

 - " क्यों , साड़ी क्यों नहीं पहनने देता " , प्रमोद ने कुहनी के बल खड़े होते हुए पूछा।

 - " मुझे क्या पता , कह रही थी कि उसकी मरज़ी के बिना कही आ - जा नहीं सकती। किसी ग़ैर मर्द से हँस - बोल नहीं सकती। वो तो जब वो दफ़्तर चला जाता है  तब कुछ देर मुझसे अपना दुखड़ा रो लेती हैं और हिम्मत देखो उस कमज़र्फ़ की , कल पुलिस वालो के जाने के बाद देर तक उसे अपने सामने नंगा बिठा कर  गालियाँ देता रहा । 

 

   " कैसी गाली ? " प्रमोद ने जिज्ञासा से पूछा।

 

- " अजी बस पूछो मत ,इतनी  गन्दी गन्दी गालियाँ देता है कि बस ....."

 

- " फिर भी , कुछ बताओ  तो " - प्रमोद ने गर्माते हुए पूछा।

 

- " मुझे नहीं आती , आप कुछ बोलोगे तो में बताऊँगी .." संजना ने शर्माते हुए कहा।

 

प्रमोद , संजना के कान में गालियाँ फुसफुसाने लगा और संजना अपनी हँसी दबाते हुए सर हिलाती रही। प्रमोद ने संजना की नाइटी के बंद खोल दिए थे और संजना की जवानी की नदी लहरा कर बहने लगी थी। । उनकी  साँसें गरमाने लगी थी और दोनों निकल पड़े थे जन्नत की सैर पर।

 

लेखक - इन्दुकांत आंगिरस

 

 

 

 

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