लघुकथा - गूँगी लड़की
साहिल को एक गूँगी लड़की से प्यार हो गया था। जब यह बात उसके परिवार को पता चली तो घर में कुहराम मच गया। " कैसा दिमाग़ खराब हुआ है इस लड़के का ? जानबूझ कर अपने पैरो पे कुल्हाड़ी मार रहा है। देख कर कौन पीता है मक्खी वाला दूध। "
घर के सभी सदस्यों ने उसे बहुत समझाया लेकिन साहिल अपनी ज़िद पर अड़ा रहा। साहिल की माँ के कहने पर मैंने भी साहिल को समझने की कोशिश करी " यार , ऐसी क्या बात है उस गूँगी लड़की में कि तू अपने सब कुछ उस पर क़ुर्बान करने को तैयार है। तुझे उससे भी ज़हीन और ख़ूबसूरत लड़कियाँ मिल जाएँगी। "
" हाँ यार , मुझे मालूम है कि मुझे उससे भी ख़ूबसूरत लड़किया मिल जाएँगी " -साहिल ने मुझसे कहा।
" तो फिर ये गूँगी लड़की ही क्यों ? " मैंने ज़ोर दे कर साहिल से पूछा।
" सच बता दूँ... असल में बात ये है कि मेरे अंदर के शैतान को गूँगी लड़की ही चाहिए जिससे कि वो शैतान रोज़ उसका बलात्कार
कर सके और उसकी चीख़ें उसके गले में ही घुट कर रह जाए। " - साहिल ने तपाक से जवाब दिया।
अपने दोस्त साहिल ये जवाब सुन कर मैं गूँगा ही नहीं बहरा भी हो गया था।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
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