Wednesday, July 19, 2023

गीत - फूलों का मैं राजकुमार

 फूलों का मैं राजकुमार 

तुम मुझ से ही करना प्यार 


अधरों की मुस्कान बना मैं 

ख़ुश्बू की पहचान बना मैं

किशना की मुरली में ढल कर 

सूर बना रसखान बना मैं


काँटा तुम को इस जीवन में 

क्या दे पायेगा कुछ उपहार 


सपनों के बुनता मैं घर हूँ 

अपनों से मिलता अक्सर हूँ 

मुझको छू कर ही जाती है 

यूँ ही नहीं पुरवा गाती है 


मुझ को ही तो रोक राह में 

ऋतु करती सोलह श्रृंगार 


यूँ ही नहीं इतराता हूँ  मैं

देवो पर चढ़ जाता हूँ मैं

पर मुरझाऊँगा इक दिन

मैं खो जाऊँगा इक दिन 



कवि -  इन्दुकांत आंगिरस 


 





 


Monday, July 17, 2023

गीत - महकी है फिर गंध तुम्हारी

 गीत 

महकी है फिर गंध तुम्हारी 
भीगी - सी इक रात हो तुम 
कैसे करूँ श्रृंगार तुम्हारा 
एक अधूरी बात हो तुम 

भर दूँ मैं काजल कारा
धीरे धीरे सारा सारा 

ठहरी हो इक रात कही पर 
तुम्ही कहो फिर कौन हो तुम 
सारी  रात बजा कानो में  
क़तरा क़तरा  मौन हो तुम 

ढँक लो तुम आँखे अपनी 
इतनी सुन्दर सुन्दर सजनी 

दर्पण   में परछाई तुम्हारी 
जब हो जाएगी गम यूँ ही 
हर साँस कही थम जायेगा 
बस थक जाओगी तुम यूँ ही 

मैं भर दूंगा शाम कुँवारी 
ढलके जो रेशम की सारी  


कवि- इन्दुकांत आंगिरस 

Saturday, July 15, 2023

कहानी - ख़सम

 

कहानी - ख़सम 



" सुनो जी , ऊपर से कुछ आवाज़ आ रही है " - संजना  ने मेअपने पति प्रमोद के  नज़दीक सरकते हुए कहा।

 

" ऊपर से कहाँ से " प्रमोद ने जिज्ञासा से पूछा।

 

" ऊपर वाले फ़्लैट से और कहाँ से  , ध्यान से सुनो , लगता है झगड़ा हो रहा है " संजना प्रमोद के होंठों पर ऊँगली रखते हुए  बोली थी।प्रमोद ने अपने कानों को खोला और अपने कान छत से लगा कर ध्यान से सुनने लगा।  ऊपर वाले फ़्लैट में एक अधेड़ उम्र का जोड़ा रहता था। पति सरकारी नौकर था और पत्नी गृहणी। शादी को लगभग बीस साल हो गए थे लेकिन अभी तक बच्चा नहीं हुआ था।  इस सिलसिले में सभी तरह का इलाज और झाड़ - फूंक उन्होंने कर लिया था लेकिन ढ़ाक के वही तीन पात।  आख़िर  उन्होंने बच्चों के बारे में सोचना छोड़ दिया था और इस अभाव ने उनक ज़िंदगी को शायद पहले से अधिक तल्ख़ बना दिया था। अक्सर रात के वक़्त मार - पीट की आवाज़े आती जो रात के सन्नाटे को चीरती हुई हमारे बैडरूम में हमारे बिस्तर की चादर पर अनचाहे अतिथि की तरह पसर जाती और अक्सर हमारे मिलन के रात उदासी की चादर ओढ़ कर सो जाती। लेकिन आज हमारे मिलन की रात बेचैन हो गई और इस रोज़ रोज़ के झंझट से तिलमिला उठी।

 

- " आपको पता है , ये ऊपर वाला अपनी बीवी की पिटाई करता है।  " संजना ने प्रमोद के छाती के बालो में  ऊँगली घुमाते हुए  कहा।

 

- " अच्छा , ये तो बहुत खराब बात है , तुम्हें कैसे पता ?" प्रमोद ने  जिज्ञासा से पत्नी से पूछा।

 

- " अरे , मुझे बता रही थी।  बहुत दुखी है बेचारी।  कह रही थी कि बस किसी भी बात को ले कर उसके पीछे पड़ जाता है।  मनमानी करने लगता है , अगर मान जाये तो ठीक नहीं तो गाली -  गलौच  और फिर मार - पिटाई। "

 

- " अच्छा , गाली भी देता है .." प्रमोद ने हैरानी से पूछा।

 

- " अरे , बस क्या बताऊँ आपको। इतनी गन्दी - गन्दी गाली देता है कि मुझे तो बताते भी शर्म आती है। "

 

- " तो फिर छोड़ क्यों नहीं देती , ऐसे हरामी खसम को। "

 

- " छोड़ कर जाये कहा बेचारी।  औरत की  तो मिटटी हो खराब है।  बीस साल शादी को हो गए , कोई औलाद भी नहीं है। "

 

- " औलाद नहीं है , तो कुछ इलाज - विलाज करवा लेते।  "

 

- " मालूम नहीं , अपनी बीवी को तो जगह - जगह दिखाता  फिरता है , अपना इलाज नहीं करवाता। "

 

- " आख़िर कमी किस में  है , ये तो पता लगे। "

 

- " अरे , कमी किसी में भी हो।  अब  औलाद नहीं हुई तो इसका मतलब ये थोड़े ही न है कि रोज़ रोज़ मार - पिटाई करेगा। "

 

- " हाँ , ये तो तुम ठीक कह रही हो।  सुनो , मैं पुलिस में रिपोर्ट कर देता हूँ।  " प्रमोद ने फ़ैसला  सुनाते  हुए कहा।

 

- " आप क्यों झगडे में पड़ते हो ? " संजना ने टालते हुए कहा।

 

- " उसको थोड़े ही ना पता चलेगा कि रिपोर्ट हमने करी है। " कह कर प्रमोद ने पुलिस का नंबर डायल कर दिया; झगडे की सूचना और पता बता कर बिना अपना नाम बताये फ़ोन  काट दिया।

 

- " अजी , आपने तो कमाल कर दिया , उसको अगर पता लग गया तो आपके पीछे पड़ जायेगा। "

 

- " उसे पता लगेगा तब ना , अभी देखना थोड़ी देर में पुलिस आएगी और जनाब की नौकरी भी ख़तरे  में पड़ जाएगी।  जानवर हैं साले , औरत को मारते है , वैसे बनते हैं पढ़े - लिखे अफ़सर। " प्रमोद ने ग़ुस्से में बोला और संजना को अपनी  बाँहों  में भरने लगा।  "

 

- " अजी रुको ना।  देखना बाहर , लगता है पुलिस आ गयी  ।  

 

बाहर दो पुलिस वाले आ गए थे और टोर्च की रौशनी से मकान नंबर देख रहे थे। मकान नंबर निश्चित कर पुलिस वाले ऊपर ज़ीने  में चढ़ गए।  चाँद मिनिटों में ऊपर से झगडे की आवाज़ें आना बंद हो गयी। लगभग आधे घंटे तक पुलिस वाले पूछताछ करते रहे।  जब पुलिस वाले जाने लगे तो प्रमोद ने उत्सुकतावश अपनी खिड़की के परदे को सरका कर बाहर देखा कि शायद ऊपर वाले मर्द (  जो अपनी बीवी को मारता है , कितना भी कमज़र्फ़ हो कहलायेगा तो मर्द ही )   को पुलिस वाले अपने साथ जा रहे हो लेकिन पुलिस वाले अकेले थे।

 

प्रमोद ने पुलिस वालो को भद्दी - सी गाली दी और संजना से बोला - " हरामी हैं साले , पैसे खा लिए होंगे। चलो अब कम से कम मारेगा तो नहीं ",  कह कर प्रमोद कुनमुनाते हुए संजना की गुदाज बाँहों में सिमट गया और इस बार संजना बिना आनाकानी के सीधी पसर गयी थी।  

अगली रात सोते वक़्त संजना की कथा फिर शुरू हो गयी।  पता नहीं औरतो को सेक्स के वक़्त ही दुनिया जहान की बाते क्यों सूझती हैं और आदमी उन बातों को सुनंने के अलावा और क्या कर सकते हैं।

 

" सुनो जी , पुलिस वाले २०००/ रुपए ले गए , आप ठीक कह रहे थे। " संजना ने प्रमोद की कमीज़ के खुले बटन बंद करते हुए कहा।

 

- " तुम्हें कैसे मालूम ? " प्रमोद ने संजना की चोली के बंद बटन खोलते हुए कहा।

 

- " दिन में बता रही थी मुझे।  कह रही थी कि पुलिस ने उससे अलग कमरे में ले जा कर  पूछताछ करी। "

 

- " कैसी पूछताछ ? " प्रमोद ने संजना को सहलाते हुए कहा।

 

- " यही कि उसका पति उसे मार रहा था क्या "- संजना ने प्रमोद के हाथ को हठाते हुए कहा।

- " फिर , उसने क्या कहा ?"

 

- " उसने मना कर दिया " - संजना ने  गंभीरता से बताया।

 

- " मना कर दिया , मतलब झूठ बोल दिया  , क्यों ? " प्रमोद ने ग़ुस्से से पूछा।


- " हाँ , मना कर दिया , कह रही थी कि मारे चाहे पीटे , है तो मेरा ख़सम  ही , जेल में कैसे भेज दूँ उसे।  पता नहीं कल रात किस मरदूद ने पुलिस में रिपोर्ट कर दी थी।  "

 

- " अच्छा तो ये बात है , एक तो इनकी मदद करो , ऊपर से गाली सुनो।  अरे , इसे आदत पड़ चुकी है पीटने की।  " प्रमोद तैश में आ गया था।

 

- " अजी नहीं , ऐसी बात नहीं है।  पर क्या करे बेचारी , जाये तो जाये कहाँ ; बहुत ज़ुल्म सहती है।  सारी - सारी रात सोने नहीं देता उसको।एक चोली और पेटीकोट में बिठाये रखता है , साड़ी भी नहीं पहनने देता। " - संजना ने नरम लहजे में बताया।

 - " क्यों , साड़ी क्यों नहीं पहनने देता " , प्रमोद ने कुहनी के बल खड़े होते हुए पूछा।

 - " मुझे क्या पता , कह रही थी कि उसकी मरज़ी के बिना कही आ - जा नहीं सकती। किसी ग़ैर मर्द से हँस - बोल नहीं सकती। वो तो जब वो दफ़्तर चला जाता है  तब कुछ देर मुझसे अपना दुखड़ा रो लेती हैं और हिम्मत देखो उस कमज़र्फ़ की , कल पुलिस वालो के जाने के बाद देर तक उसे अपने सामने नंगा बिठा कर  गालियाँ देता रहा । 

 

   " कैसी गाली ? " प्रमोद ने जिज्ञासा से पूछा।

 

- " अजी बस पूछो मत ,इतनी  गन्दी गन्दी गालियाँ देता है कि बस ....."

 

- " फिर भी , कुछ बताओ  तो " - प्रमोद ने गर्माते हुए पूछा।

 

- " मुझे नहीं आती , आप कुछ बोलोगे तो में बताऊँगी .." संजना ने शर्माते हुए कहा।

 

प्रमोद , संजना के कान में गालियाँ फुसफुसाने लगा और संजना अपनी हँसी दबाते हुए सर हिलाती रही। प्रमोद ने संजना की नाइटी के बंद खोल दिए थे और संजना की जवानी की नदी लहरा कर बहने लगी थी। । उनकी  साँसें गरमाने लगी थी और दोनों निकल पड़े थे जन्नत की सैर पर।

 

लेखक - इन्दुकांत आंगिरस

 

 

 

 

Friday, July 14, 2023

लघुकथा - बाइस्कोप


लघुकथा - बाइस्कोप 


 शायद आप सभी ने अपने बचपन में बाइस्कोप देखा होगा। एक ही बाइस्कोप में एक साथ ४ या ५ दर्शक बाइस्कोप देख सकते  हैं। किसी को पता नहीं होता कि दूसरा दर्शक कौन - सी फ़िल्म  देख रहा है जैसे कि आजकल  के पीवीआर सिनेमा हॉल जिनमें  एक ही समय में अलग अलग हॉल में अलग अलग फ़िल्में चलती हैं।  एक बार बचपन में बाइस्कोप चलते चलते बंद हो गया, थोड़ी देर बाद शुरू हुआ तो मेरा हॉल बदल गया था और फ़िल्म भी। अब  देखता हूँ कि हीरोइन पहले से भी ज़्याद मस्त है और डांस भी बेहतरीन कर रही है। उस वक़्त मालूम नहीं था कि असली ज़िंदगी में बाइस्कोप की मस्त हीरोइन कितनी महँगी पड़ती है।  इतनी महँगी पड़ती है कि आदमी गंजा हो जाता है और उसकी गंजी खोपड़ी के रनवे पर हीरोइन के ख़्वाइशो   की फ्लाइट्स लैंड करती रहती हैं ....करती रहती हैं ....करती रहती हैं . .....



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 





Thursday, July 13, 2023

लघुकथा - हवेली के आईने

 लघुकथा - हवेली के आईने 

ठाकुर रामलखन सिंह की बड़ी हवेली किसी महल से कम न थी। हवेली में नयी बहू के क़दम पड़े तो ठाकुर साहिब ने हवेली की काया पलट कर दी।  बहू किसी अप्सरा सी दिखती थी इसीलिए ठाकुर साहिब ने हवेली के गलियारों में रंगीन  फ्रेम वाले ख़ूबसूरत आईने लगवा दिए थे। 

बहू हवेली में कही से भी गुज़रती उसकी सुंदरता उन आइनों में क़ैद हो जाती। कुछ आईने ख़ुद पर इतराते तो कुछ शरमाते। ।एक दिन ठाकुर गलियारे के बड़े आईने के सामने खड़े होकर अपनी मूँछों पर ताव देने लगा और गलियारे में जाती बहूरानी को देख होंठों ही होंठों में मुस्कुराने लगा।  । ठाकुर की मुस्कराहट देख कर आईना सहम गया और डर के मारे थर थर काँपने  लगा। 

थोड़ी देर बाद बहूरानी उधर आई तो उस आईने को इतना सहमा सहमा देख कर  उससे पूछ बैठी - क्या हुआ , आज इतने सहमे हुए क्यों हो?

- "बहूरानी , हम आईने हैं , सच को सच और झूठ को झूठ दिखाना हमारा काम हैं। हम अपने हुनर से धोखा नहीं कर सकते , लेकिन इंसान के चेहरे पे चढ़े हुए मुखौटो से हम भी डर जाते हैं , सहम जाते हैं। "

आईने का जवाब सुन कर बहूरानी कुछ हैरान तो हुई लेकिन उसने अपना सर झुकाया और ख़ामोशी से आगे बढ़ गयी। 


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस           

Tuesday, July 11, 2023

लघुकथा - गूँगी लड़की

 


लघुकथा - गूँगी लड़की  


साहिल को एक गूँगी लड़की   से प्यार हो गया था। जब यह बात उसके परिवार को पता चली तो घर में कुहराम मच गया। " कैसा दिमाग़ खराब हुआ है इस लड़के का ? जानबूझ कर अपने पैरो पे कुल्हाड़ी मार रहा है। देख कर कौन पीता  है मक्खी वाला दूध। "

घर के सभी सदस्यों ने उसे बहुत समझाया लेकिन साहिल अपनी ज़िद पर अड़ा रहा। साहिल की माँ के कहने पर मैंने भी साहिल को समझने की कोशिश करी " यार , ऐसी क्या बात है उस गूँगी लड़की में कि तू अपने सब कुछ उस पर क़ुर्बान करने को तैयार है। तुझे उससे भी ज़हीन और ख़ूबसूरत लड़कियाँ मिल जाएँगी। "

" हाँ यार , मुझे मालूम है कि मुझे उससे भी ख़ूबसूरत लड़किया मिल जाएँगी " -साहिल ने मुझसे कहा। 

" तो फिर ये गूँगी लड़की ही क्यों ? " मैंने ज़ोर दे कर साहिल से पूछा। 

" सच बता दूँ... असल में बात ये है कि मेरे अंदर के शैतान को गूँगी लड़की ही चाहिए जिससे कि वो शैतान रोज़ उसका बलात्कार 

कर सके और उसकी चीख़ें उसके गले में ही घुट कर रह जाए। " - साहिल ने तपाक से जवाब दिया। 

अपने  दोस्त साहिल ये जवाब सुन कर मैं गूँगा ही नहीं बहरा भी हो गया था। 


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस

Saturday, July 8, 2023

गीत - श्याम की मुरली , श्याम की राधा

 श्याम की मुरली , श्याम की राधा 

राधा के मन में      श्याम बिराजा 


कान्हा , कान्हा; कान्हा बोले 

राधा ,    राधा ;  राधा  बोले

एक हुए यूँ प्राण  युगल के 

एकही  प्रीत की बोली बोले 


श्याम की मुरली , श्याम की राधा 


गीत हुआ यूँ   पावन मन का 

भीज गया मन वृन्दावन - सा 

भूल गयी अब सुधबुध राधा 

याद रहा बस नाम किशन का 


श्याम की मुरली , श्याम की राधा 


श्याम चिरैया , श्याम की बईया 

राधा के   घनश्याम   सांवरिया 

श्याम से मोहे आज मिला जा 

सदियों की ये प्यास बुझा जा 


श्याम की मुरली , श्याम की राधा 



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

लघुकथा - जंगली जानवर

 लघुकथा - जंगली जानवर 


- " अरे , भई , इतने  सहमी - सहमी    क्यों चल रही हों ? " मैंने उस लड़की से पूछा।  

- " क्या  करूँ , जंगल ही इतना घना है और जंगली जानवर आस - पास घूम रहे हैं।  " देर रात दिल्ली की उस पॉश इलाके से गुज़रते हुए उस लड़की ने जवाब दिया।  

- " जंगली जानवर ? , मुझे तो कोई जंगली जानवर दिखाई नहीं दे रहा , बस चंद इंसान ही घूम रहे हैं। तुम्हें इनसे डर लग रहा है क्या ?  "-मैंने उस लड़की से फिर पूछा।  

- " हाँ , हाँ , मुझे इनसे ही डर लग रहा है क्योंकि  ये इंसान ही पल भर में जानवर बन जाते हैं और अपने ख़ूनी पंजो से नौंचने लगते हैं औरत का जिस्म।   "

उस लड़की की बात सुन कर मुझे कुछ अचरच हुआ और मैं ग़ौर से उन इंसानों को देखने लगा जिनके चेहरों पर अनगिनत  मुखौटे थे। 


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस  

कहानी - सोने का पिंजरा

 

मनोरमा , हाँ यही नाम था उस ख़ूबसूरत बला  का जो गली के तमाम लड़कों के दिलो की धड़कन थी।  गोरा रंग , गदराया बदन , बादाम - सी आँखें , हिरणी - सी चाल ,गुलाब की पंखुड़ी से होठ , सदाबहार मुस्कराहट , काली घटाओं सी ज़ुल्फ़े  , सुडौल बाँहें।  जिधर से गुज़र जाती ,   एक ख़ुश्बू  बिखेरती चली जाती।  फ़िज़ा में कितने रंग घुल जाते।  जो भी उसे देखता सर्द आहे भरता।  सबके मन को हरने वाली मनोरमा  ने जब से जवानी की दहलीज़ पर पहला क़दम रखा था  तब से कमला चाची की रातों की नींद उड़ गयी थी। 

रात में मनोरमा पानी पीने के लिए भी उठती तो कमला चाची का दिल धड़क जाता।  जवानी की नदी से वह ख़ूब परिचित थी।  जवानी की नदी तटों में कब बंधी है ? इस उद्दाम नदी के पानी का शोर तो फ़िज़ा में दूर दूर तक गूँजता  है।  इसे शोर नहीं एक प्रेम गीत समझे तो बेहतर होगा। अनजाने होंठों पर मचलने को बेचैन यह  प्रेम गीत  धीरे धीरे पूरे  जंगल में फ़ैल जाता है और हर तरफ़  बस प्रेम के नग़मे सुनाई पड़ते हैं।

कमला चाची का  पति एक घड़ीसाज़ था।  दुबला  - पतला  , खजूर के पेड़ जैसा  लम्बा  , दीवानो जैसे बाल और दीवार घडी के पेंडुलम जैसी चाल। एक ज़माने से पुरानी घड़ियों के कारीगर।  कारीगर बेहतरीन था , ज़माने भर की रुकी होती घड़ियों की सुइयाँ  उसके उंगलियों का स्पर्श पाते ही फिर से चल पड़ती लेकिन उसकी अपनी सुई बड़ी सुई के साये में आते  ही रुक जाती। पेंडुलम की तरह हिलता रहता उसका वजूद। इतना सब होने के बावजूद चाची उनको छोड़ कर कभी भागी नहीं और एक क्रम से बच्चे पैदा करती रही।  लड़के की चाह में  ४ लड़कियाँ हो चुकी थी और इनमे सबसे बड़ी थी मनोरमा।

उस रात जब घड़ीसाज़ की सुई फिर अटक गई तो मनोरमा की माँ  ने घड़ीसाज़ से कहा - "  मनोरमा अब बड़ी हो गई है , उसके हाथ जल्दी पीले नहीं किये तो वह चिड़िया की तरह कभी भी उड़ जाएगी "

 

"  तुम चिंता मत करों , मैं जल्दी ही कुछ करता हूँ , लेकिन दहेज़ की मुश्किल तो आएगी। "

 "  दहेज़ में देने को कुछ नहीं है , तुम बिना दहेज़ का लड़का देखो फिर चाहे वो उम्रदराज़  ही क्यों न हो ? कोई है नज़र में ?  "

 " हाँ , एक  कुँवारा  ठेकेदार है  तो सही , थोड़ा उम्रदराज़ है और रंग भी काला है। कई साल से कोशिश कर रहा है पर हर लड़की उसको नापसंद कर देती है   "

" अरे तो क्या हुआ , कृष्ण भी तो  काले थे , मर्दों का रंग किसने देखा है ?  ठेकेदारी है तो पैसे वाला तो होगा ? "

-"  हाँ , अपना मकान है , ठेकेदारी में भी अच्छी कमाई है , बस शराब का ऐब है। "

"  कोई बात नहीं , आप कल ही बात चलाओ "

" ठीक है , दीवार की तरफ मुँह  करते हुए घड़ीसाज़ ने आँखें मूँद ली। "

                                                    ***

दसवीं पास देवेंद्र ठेकेदारी  करता था। ज़्यादातर सरकारी ठेके लेता था ।   घर का पुश्तैनी मकान के चलते किराया तो देना नहीं पड़ता था और कुछ आमदनी ठेकेदारी से हो जाती थी। तीन मंज़िला मकान में देवेन्द बाबू एक मंज़िल में खुद रहते थे और दो मंज़िलें किराये पर उठा रखी थी।   आर्थिक स्तिथि से संपन्न देवेंद्र की उम्र लगभद 35 वर्ष की थी। परिवार में एक दूर की विधवा बुआ के अलावा और कोई नहीं थ।  देवेंद्र बाबू  , मालती बुआ को गाँव से अपने घर शहर ले आये थे।  घर में एक औरत होने के ख़ातिर और घर की रोटी खाने के निमित।   कई सालो से शादी का प्रयास किया जा रहा था लेकिन अब तक किसी लड़की ने उसे पसंद नहीं किया था।  काला  रंग , मुँह  पर हलके चेचक के दाग़ , पकोड़े जैसी नाक और दरम्याना क़द  

 

देवेंद्र बाबू ख़ुद सुन्दर नहीं थे लेकिन सुन्दर औरतों में उनकी दिलचस्पी  कम न थी ।  हर शाम यारों की बैठक में मोहल्ला भर की औरतों पर तब्सिरा होता।  घड़ीसाज़ का काउंटर उनके मकान के ठीक सामने था।  आते -जाते घड़ीसाज़ से दुआ सलाम होती।  उस शाम वो घर से निकले तो घड़ीसाज़ ने उन्हें पुकारा " नमस्ते , देवेंद्र बाबू , और कैसी चल रही है ठेकेदारी  ?

" सब ठीक , तुम सुनाओ ? "

-  " इधर भी सब ठीक ,  कुछ शादी की बात बनी  कही ? "

- " अरे , कहाँ ,  लगता है  कुँवारा    ही मरना पड़ेगा । "

- " कुँवारे मरे आपके दुश्मन , देवेंद्र बाबू , "

- " कोई लड़की है तुम्हारी नज़र में ? " ठेकेदार ने ललचाई आँखों से घड़ीसाज़ कि आँखों में झाँका। 

- " हाँ  हज़ूर , लड़की है नज़र में  "

- " कैसी है , सुन्दर है ? "

- " जी जनाब सुन्दर भी है और संस्कारी भी , १९ वे  वसंत में क़दम  रख ही है। लेकिन .."

-"  लेकिन क्या ? "

- " परिवार ग़रीब है , दहेज़ नहीं दे पाएँगे  , और ..."

- " कोई बात नहीं , परिवार से मीटिंग करवाओ और लड़की से भी  "

-"  परिवार आपके सामने है हज़ूर .."

-  " मतलब ...."

- " मेरी ही बेटी है हज़ूर , आप कल घर तशरीफ़ ले आएँ  । "

- " अरे , तुम्हारी बेटी है .....तुम्हें तो मेरी उम्र का पता है न ? 34 वसंत पार कर चुका हूँ। यानी तुम्हारी बेटी और मेरी उम्र में १५ साल का फर्क है  "

- " जानता हूँ हज़ूर , लेकिन  हमारे पास दहेज़ के नाम पर देने को कुछ नहीं है। "

-" तो तुम्हें और तुम्हारी पत्नी को  इससे कोई ऐतराज नहीं ? हाँ  , दहेज़ तो मुझे नहीं चाहिए , बस सुन्दर और सुशील लड़की की दरकार है। लेकिन १५ साल का फर्क ? "

-" मर्द की उम्र किसने देखी है।  अभी तो आप जवान है , अपना घर , कारोबार सब सुपर है , लक्ष्मी की कृपा है आप पर। "

- " हाँ , ये तो है। "-ठेकेदार ने लम्बी साँस छोड़ते हुए कहा।  

- "हमारी बेटी आपके घर राज करेगी।  हमने सोच समझ कर ही यह फैसला लिया है।  बस आप एक बार घर आ कर बिटिया को पसंद कर लें। "

-  - " ठीक है , कल शाम को आता हूँ । " कह कर देवेंद्र बाबू आगे बढ़ गए।

                                                     ***

अगली शाम निश्चित समय देवेंद्र बाबू घड़ीसाज़ के घर पहुँचे ।  मनोरमा चाय ले कर आई तो देवेंद्र बाबू के होश उड़ गए।  उन्होंने अपने जीवन में   इतनी सुन्दर लड़की अभी तक न देखी थी।  मुँह  से लार टपकने लगी और बदन गरमाने लगा।  आनन् -फानन में शादी की बात पक्की हो गयी।

मनोरमा अपने होने वाले पति को देख कर उदास थी लेकिन वह मजबूर थी।  अपने माँ - बाप के विरुद्ध नहीं जा सकती थी। देवेंद्र बाबू ने घड़ीसाज़ को शादी के इंतज़ाम के लिए कुछ रुपए भी पकड़ा दिए थे।  घड़ीसाज़ और उसकी पत्नी ने राहत की साँस  ली और शादी की तैयारी में जुट गए थे।  अगले १५ दिनों में शादी भी संपन्न हो गयी और मनोरमा अपनी ससुराल पहुँच गयी ।   

सुहागरात के बारे में मनोरमा ने सुना ज़रूर था लेकिन इस रात को लेकर उसके दिल में  बहुत सारी आशंकाएँ  थी।  उसने सुन रखा था कि इस रात अक्सर दूल्हा शराब पी कर दुल्हन का घूँघट उठाता  है।  कोई दुल्हन का मुँह  देखने के लिए  मुँह  दिखाई देते हैं तो कुछ दुल्हन के ज़ेवर उतारते हैं ।  वह अभी इन्ही विचारों में खोई हुई थी कि ठेकेदार ने कमरे में  प्रवेश किया।  मनोरमा ने अपने आँचल को  कस  कर थाम लिया।


ठेकेदार के क़दम लड़खड़ा रहे थे  लेकिन उस का  दिल प्यार की मस्ती में लहरा रहा था।  कमरे में इत्र ,फूल और शराब की ख़ुश्बू  घुल मिल गयी थी और खिड़की से झरती चाँदनी  की किरणों ने रात को और भी रंगीन बना दिया था।  मनोरमा की साँसे उठ - गिर रही थी। तभी ठेकेदार ने बड़े प्रेम से उसका घूँघट उठाया और मनोरमा से बोला - " तुम तो वाकई चौदवी का चाँद हो , बहुत ख़ूबसूरत हो , मैं ख़ुशनसीब हूँ  कि भगवान् ने तुम्हें  मेरी झोली में डाल दिया है। आज से मैं ही तुम्हारा आसमान हूँ और मैं ही तुम्हारी उड़ान।  यह लो मुँह दिखाई का ख़ूबसूरत तोहफ़ा ", कह कर ठेकेदार ने एक छोटा - सा सोने का पिंजरा मनोरमा को उपहार में दिया। पिंजरा सोने का था और उसमे क़ैद थी एक मीठी आवाज़ वाली सुन्दर - सी कोइल। पिंजरे को देख मनोरमा चौंकी और उसने धीमी आवाज़ में ठेकेदार से कहा - " सोने का पिंजरा ...  आपका तोहफ़ा वाकई अजीब है,क्या हम इस कोइल को आज़ाद कर सकते है ? " मनोरमा ने ठेकेदार से पूछा  

-" मेरे ख़्याल से कोयल सोने के पिंजरे में  ही रहना पसंद करेगी।  तुम ख़ुद ही पूछ लेना  कोयल से और अगर वो पिंजरे की क़ैद से आज़ाद होना चाहे तो उसे आज़ाद कर देना  "

दस  साल का लम्बा वक़्त गुज़र गया। कोयल आज भी सोने के पिंजरे में क़ैद है।  शुरू शुरू में तो कोयल को खाने के लिए प्रीत का दाना  मिल जाता था तो वह चहकती रहती थी और गाती  थी मीठे - मीठे नग़मे लेकिन धीरे - धीरे उसे प्रीत का दाना मिलना बंद हो गया। उसका शरीर धीरे - धीरे कमज़ोर होता गया और पंख भी  एक बेबस पतझड़ उसके भीतर पसरता जा रहा था।  

 ऐसी ही एक पतझड़ी शाम थी। आसमान का रंग  ज़र्द  था और परिन्दें अपने अपने घरों को लौट रहे थे।  सुरमई धूप  पहाड़ियों से  उतर रही थी।  मनोरमा ने सोने के पिंजरे का दरवाज़ा खोल दिया लेकिन कोइल पिंजरा छोड़ कर नहीं उडी। मनोरमा भी तो नहीं उड़ पाई थी। उस दिन के बाद से मनोरमा ने पिंजरे को बंद करना छोड़ दिया था।


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लेखक - इन्दुकांत आंगिरस

 

 

 

Friday, July 7, 2023

पुस्तक विमोचन एवं काव्य संध्या - रशियन हाउस और परिचय साहित्य परिषद् - 06 - 07 - 2023

पुस्तक विमोचन एवं काव्य संध्या - रशियन हाउस और परिचय साहित्य परिषद् 



रशियन हाउस , नई दिल्ली और परिचय साहित्य परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पुस्तक लोकार्पण एवं काव्य संध्या का आयोजन डॉ अशोक मैत्रेय की अध्यक्षता में सफलता पूर्वक  रशियन हाउस दिल्ली में संपन्न हुआ। महान रूसी कवि व्लादिमीर मायकोवस्की की 130 वे जन्मोत्सव के उपलक्ष्य पर रशियन हाउस के निदेशक श्री ओलेग ओसीपोव  ने व्लादिमीर मायकोवस्की के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। इन्दुकांत आंगिरस ने प्रोफ़ेसर वरयाम सिंह द्वारा अनूदित   मायकोवस्की  के एक कविता का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किया।  

श्री ओलेग ओसीपोव एवं कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ अशोक मैत्रेय के कर कमलों द्वारा इन्दुकांत आंगिरस के दो कविता संग्रह - ' प्रेम - प्रसंग ' एवं ' फ़्लैश बैक 'और शिवनलाल जलाली के कविता संग्रह ' विक्रम का इन्तिज़ार "का लोकार्पण हुआ।  इस अवसर पर दिल्ली और आस -पास के शहरों के अनेक प्रतिष्ठित लेखक , कवि एवं सहितयकार उपस्थित थे।  

' प्रेम - प्रसंग ' कविता संगह पर दिल्ली विश्विद्यालय के प्रोफ़ेसर हरीश अरोड़ा ने कहा कि , "प्रेम - प्रसंग की कविताएँ प्रेम के विभिन्न आयाम प्रस्तुत करती हैं।  ये प्रेम  कविताएँ  प्रेम के अबूझे रहस्यों से पर्दा उठती हैं और अछूते बिंबों और प्रतीकों के माध्यम से एक नयी ख़ुश्बू से पाठकों के मन को सरोबार करती हैं "।  

" फ़्लैश बैक " पुस्तक पर अपने विचार रखते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार श्री नरेश शांडिल्य के कहा कि , "  फ़्लैश बैक ' की "कविताओं में कवि इन्दुकांत आंगिरस ने नए प्रकार का प्रयोग किया है।  इन कविताओं में ' अनकहा ' ही कविताओं को बड़ा बनाता है।  बचपन और युवा मन की स्मृतियों को उजागर करती ये कविताएँ नए और पुराने लेखकों और कवियों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन सकती हैं। उन्होंने कहा कि " फ़्लैश बैक " की कविताएँ इसलिए भी उल्लेखनीय हैं क्योंकि इस पुस्तक में बहुत - सी कविताएँ  इंसानी रिश्तों को परिलक्षित करती हैं। " 

" फ़्लैश बैक " पर अपने विचार रखते हुए प्रसिद्ध शाइर प्रमोद शर्मा ' असर ' ने पुरानी दिल्ली से जुडी हुई अपनी यादे ताज़ा करी और पुस्तक  के रचना क्रम में अपने सयोग का भी ज़िक्र किया। 

" विक्रम का इन्तिज़ार ' कविता संग्रह पर प्रसिद्ध समीक्षक श्री सुभाष चन्दर ने कहा कि ' विक्रम का इन्तिज़ार ' में शामिल कविताएँ आम आदमी

की हैं और आम आदमी उन्हें सहजता से समझ सकता हैं। इन कविताओं में हास्य के साथ साथ व्यंग्य का तीख प्रहार देखने को मिलता हैं। बहुत - सी कविताएँ समाज की विद्रूपताओं को उजागर करती हैं और एक बदलाव लाने की सफल कोशिश है।" विक्रम का इन्तिज़ार " कवि शिवनलाल जलाली का प्रथम कविता संगह है और ऐसी आशा करी जाती है कि भविष्य में कवि और अधिक सार्थक और सुन्दर कविताएँ  समाज को देगा। "


इस अवसर पर एक काव्य - संध्या का भी आयोजन किया गया जिसमे सर्वश्री भूपेंद्र कुमार , दिनेश मंज़र , संतोष संप्रीति , रवि ऋषि ,रूबी मोहंती , मनोज अबोध , शशिकांत , तारादत्त , राजेंद्र कलकल , सरफ़राज़ ,विनोद प्रकाश गुप्ता , सुरभि अनिता ,त्रिलोक कौशिक ,राजेश श्रीवास्तव ,पवन तोमर , पन्ना लाल और जगदीश मीणा के नाम उल्लेखनीय हैं जिन्होंने अपने गीत , ग़ज़लें , दोहे और कविताओं से सभी दर्शकों को भाव - विभोर कर दिया।  २४ , फ़िरोज़शाह रोड , रशियन हाउस इन कवियों की कविताओं से सुगन्धित हो गया  और वातावरण तालियों  से गूँज उठा । 


परिचय साहित्य परिषद् के जनरल सेक्रेटरी अनिल वर्मा ' मीत ' के कुशल संचालन ने सभी का  मन मोह लिया। धन्यवाद ज्ञापित करते हुए उन्होंने ये घोषणा करी कि परिचय साहित्य परिषद् भविष्य  में हर महीने रशियन हाउस के सानिघ्य से साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित करेगी। 



प्रेषक :

 इन्दुकांत आंगिरस 

 अनिल वर्मा मीत 

जनरल सेक्रेटरी , परिचय साहित्य परिषद् 

नई दिल्ली 


Wednesday, July 5, 2023

लघुकथा - नदी का प्रेम

 

मुहावरा - अंग-अंग खिल उठना

लघुकथा - नदी का प्रेम 


यह सारी दुनिया प्रेम पर ही टिकी है।  अगर दुनिया में प्रेम न होता तो हम और आप नहीं होते  , ये ज़मीं , ये आसमां  नहीं होता।  फूल नहीं होते , तितलियाँ नहीं होती। नदियाँ और समुन्दर नहीं होते। एक समुन्दर की प्रेम कहानी आज फिर ज़ेहन में ताज़ा हो गयी। वो   समुन्दर एक नदी के  प्रेम में इतना पागल हो गया था  कि रात रात भर  जाग  जाग  कर तारे गिनता रहता।  कभी ख़ामोश हो जाता तो कभी उसकी लहरें आकाश  को छूने लगती। लेकिन नदी ,  चाँद से प्रेम करती थी , हाँ उसी चाँद से जो रोज़ उसके पानी में नहाता था। नदी ने बहुत चाहा कि किसी तरह चाँद ज़मीं पर उतर आये लेकिन ये नामुमकिन था सो नहीं हुआ।   नदी को समुन्दर की चाह नहीं थी लेकिन उसके पास कोई और राह नहीं थी। अपनी क़िस्मत  से  ही लाचार थी।  नदी अपने तटबंधों में कब तक बहती। आख़िर एक दिन समुन्दर में विलय हो गयी। समुन्दर के प्रेम की रौशनी में नहा कर नदी चाँद को भूल  गयी और उसका अंग अंग खिल उठा। समुन्दर की ख़ुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था।  उसके ठहाके तो आकाश तक गूँज रहे थे। 


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 

Tuesday, July 4, 2023

लघुकथा - व्ट्सअप्प एडमिन

व्ट्सअप्प एडमिन


- " क्या हुआ भाई , मुँह लटकाये क्यों बैठे हो ? " मैंने अपने यार से पूछा। 

-" क्या बताऊँ यार , कल  ' गुड मॉर्निंग ' व्ट्सअप्प के एडमिन ने मुझे  ग्रुप से रिमूव कर दिया। "

- " क्यों , रिमूव क्यों कर दिया ? " - मैंने जिज्ञासा से पूछा। 

- "वो मैंने अपनी लघुकथा में व्ट्सअप्प एडमिन की तुलना सर्कस के रिंग मास्टर से कर दी थी , शायद इसीलिए ...." यार ने मायूसी से बताया। 

- " हाँ , तो ऐसी लघुकथाएँ लिखोगे तो रिमूव करेंगे ही।  अरे , एडमिन तो एडमिन होते हैं भई , उन्हें आईना मत दिखाओ   " मैंने यार को समझाते हुए कहा।   

- " हाँ , ये बात तो तुमने सोलह आने सच कही , एडमिन्स को आईना नहीं दिखाना चाहिए , फिर भी रिमूवल की पीड़ा मर्मान्तक है। " यार ने दुखी हो कर कहा। 

-" अरे छोड़ो यार , इतना ग़म करने की ज़रूरत नहीं , हज़ारों ग्रुप हैं व्ट्सअप्प के , ' गुड़ मॉर्निंग ' ने रिमूव कर दिया तो क्या हुआ , ' गुप् आफ्टरनून , ' गुड़ इवनिंग ' या ' गुड़ नाईट ' ज्वाइन कर लो। " मैंने अपने यार को प्रोत्साहित किया और बियर का गिलास उसकी ओर बढ़ा दिया। 

- ' चियर्स ' के साथ हमारे जाम टकराये और यार का चेहरा मुस्कुराहट से खिल उठा। 



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस     

 




कहानी - ठहाके

 

कहानी - ठहाके

 

४ फुट , ४ इंच , हाँ लगभग इतना ही क़द है  उस काले - कलूटे  मरियल से जीव का जिसका एक बाज़ार भी अधखुला है । यूँ तो जनाब सरकारी मुलाज़िम है  लेकिन शाइरी का शौक़ फ़रमाते हैं  और ख़ुद को शाइर कहते हैं । तरन्नुम में ग़ज़ल पढ़ते यानी  गाते अच्छा हैं । अब शाइर है तो शाइरों वाले शौक़ भी हैं , आख़िर ग़ज़लें यूँ ही तो नहीं कही जाती।  उनकी शाइरी का हर रोज़ नया अफ़साना , शमा , बुलबुल ,मैख़ाना , साज़ और आवाज़ , सुरा और सुंदरी,  नज़र और नज़राना , गजरा और मुजरा  , ये सब अनासिर मिले तो ग़ज़ल होती है।

दिल्ली की एक पुराने अदबी हल्क़े में उनसे पहली मुलाक़ात आज भी ज़ेहन में ताज़ा है। हल्क़े की नशिस्तों में आते - जाते जनाब कब शाइर बन गए , उन्हें ख़ुद मालूम नहीं पड़ा।  तरन्नुम से ग़ज़ल पढ़ते , कोई  दाद  दे या नहीं   बिजली की तरह माइक पर जाना और ग़ज़ल पढ़ कर लौट आना। कई बार तो मुशायरे का आगाज़ उन्हीं के क़लाम से होता और इसी बात से वो खीज उठते और नाज़िम को बुरा - भला कहने से नहीं चूकते -" अरे भई , ये तो ग़ालिब है , बस यही कहते हैं ग़ज़ल , बाक़ी तो सब घास काटते हैं "।

पता नहीं नाज़िम तक उनकी शिकायत पहुँचती या नहीं लेकिन अगर मुशायरे के आगाज़ के वक़्त वो मौजूद हो तो मुशायरा का आगाज़ उनके क़लाम से होना तय था।  मुलाक़ाते बढ़ी तो बातों का सिलसिला बढ़ता गया। एक दिन मुशायरे के बाद मुझे  अपने साथ अपने  घर ले गए। उनके घर के दरवाज़े पर लकड़ी के नेम  प्लेट  पर उर्दू ज़बान में उनका नाम लिखा था।  मैंने अपनी टूटी - फूटी उर्दू से धीरे धीरे वो नाम पढ़ा - " बरबाद  देहलवी "।

मुझे लगा ये शाइर एक दिन ज़रूर अपना नाम रौशन करेगा , ख़ुद तो बरबाद है ही , दिल्ली के अदबी माहौल को भी बरबाद कर के छोड़ेगा।

कामिनी , हाँ यही नाम था उनकी बीवी का जो मुझे पहली नज़र में क्यों अच्छी लगी , नहीं मालूम। शायद इसलिए कि दूसरो की बीवियाँ और अपने बच्चें सभी को अच्छे लगते हैं। परिवार के नाम पर जनाब के पास एक अदद बीवी और छह बच्चें थे , चार लड़कियाँ और दो लड़के।  सभी बच्चे अभी पढ़ ही रहे थे।  बीवी का रंग भी काला था लेकिन  नैन नक्श  आकर्षक  थे। मुँह में पान और होंठों पर पान की लाल पपड़ी के कारण  मैं उसके होंटो के रंग का अंदाजा नहीं लगा पाया था। काली घनेरी ज़ुल्फ़े जो उसके काले बदन के साथ घुल -मिल जाती।  चाल - ढाल और रंग - ढंग ऐसा कि पहली नज़र में कोई उसे जमादारनी समझ ले तो कोई आश्चर्य नहीं। " रानी हो कि मेहतरानी मुस्कुराएगी ज़रूर , जवानी हर हाल में गुनगुनाएगी ज़रूर "। कुछ रंग ऐसे भी होते हैं जो जितने भी काले हो लेकिन दिल को भा जाते हैं।   जी , इसमें कोई दो राह नहीं थी कि छह बच्चे जनने के बाद भी वो जवान दिखती थी लेकिन अनपढ़ थी । अब मेरी समझ में आया कि कामिनी अभी तक अपने खड़ूस खाविंद  को छोड़ कर भागी क्यों नहीं थी। एक तो अनपढ़ दूसरे छह बच्चों की माँ  , जो अब तक अपने शौहर को छोड़ कर नहीं भागी तो अब अपने बच्चों का घोंसला  छोड़ कर उड़ने वाली नहीं हैं।  मौलाना जलालुद्दीन रूमी का जुमला ' बच्चों  वाली औरत कभी भी आपको पूरी नहीं मिल सकती ' भी मैंने नज़र अंदाज़ कर दिया और उससे मुहब्बत  का सिलसिला बढ़ाने लगा। 

औरतो को पटाने के हुनर में , माहिर था मैं ,  विशेषरूप  से शादी - शुदा औरतों को उनके खाविन्दों की मौजूदगी में।  जब तक उनके खाविन्दों को पता लगता अक्सर देर हो गयी होती।मैं  कभी बरबाद देहलवी के साथ तो कभी अकेले उसके घर आने - जाने लगा। बच्चों के लिए चॉकलेट और उनकी माँ के लिए कोई न कोई उपहार मसलन परफ्यूम , पान , पाउडर , फूल  ...अक्सर खाना -पीना भी होता।  बरबाद साहिब की ग़ज़लें मुझे झेलनी पड़ती। शाइरी होती तो मैखाना भी खुलता , तीन - चार पैग के बाद बरबाद अक्सर लुढ़क जाता लेकिन हमारी बातों का सिलसिला देर रात तक चलता रहता। मैं उससे दिलचस्प बाते करता और वो खूब मज़ा लेकर सुनती , बीच बीच में उसकी हँसी के झरने फ़ज़ा में घुलने लगते।  उसकी ज़ुल्फ़े खुल जाती तो नदी की लहरों की तरह बल खाती। मुझे उसका गँवारपन अब भाने लगा था। उसकी अनपढ़ी भाषा में एक अजीब क़िस्म का लुत्फ़ था। अब मुझे पढ़े -लिखे लोगो की नपी -तुली भाषा बनावटी लगने लगी थी। ज़र्दा , शराब और शबाब की मिली जुली ख़ुश्बू और खिड़की से आती ठंडी हवा के झोंके। कुछ बहार और कुछ ख़ुमार  का मौसिम। 

ऐसी ही सर्दियों की एक शाम मैं उनके घर गया। जनाब शाइर अपनी नई ग़ज़ल सुना रहे थे। मय और मैख़ाना , शमा और परवाना , नज़र और नज़राना।  अभी थोड़ा ही  वक़्त गुज़रा था कि बरबाद देहलवी मुझसे मुखातिब हो बोले -

" हज़ूर , थोड़ा टाइम है आपके पास ? देर तो नहीं हो जाएगी ?"

 -" जी नहीं , कहिये , क्या बात है ? " मैंने जिज्ञासा से पूछा। 

 - " ज़रा बाज़ार तक चलना है " कहते हुए उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे सड़क पर ले आये।

 - ' बाज़ार से क्या ख़रीदना है ' - मैंने पूछा।

 - ' वो ज़रा मेहँदी लेनी  है ' - उन्होंने ख़ुशी से चहकते  हुए कहा।

 - ' लगता है भाभी के हाथ पर रंगोगे आज ' - मैंने चुटकी लेते हुए कहा।

 - ' अरे नहीं जनाब , है कोई और , अब आपसे क्या छुपाना , मुझे किसी से इश्क़ हो गया है , ९ बजे का टाइम दे रखा है , इसी मोड़ पर आएगी ' - बरबाद एक साँस में कह गया।

 

उसकी बात सुन कर मैं अंदर ही अंदर जल गया। इस काले - कलूटे मरियल जीव से भी कोई इश्क़ कर सकता है क्या ? , क्या उसे इसका एक बाज़ार भी दिखाई नहीं दिया ? वो भी इसकी तरह कानी है क्या ?

 

ख़ैर , हम लोग बाज़ार में पहुँचे , उन्होंने मेहँदी के चार पैकेट ख़रीदे और हम लोग वापिस उसी मोड़ पर पहुँच कर उस आने वाली का इन्तिज़ार  करने लगें। घडी नौ की सुई पार कर गई लेकिन आने वाली  ना आई।  बरबाद की बेसब्री बढ़ी जाती थी।  अँधेरे में दूर से आती किसी औरत की  आकृति दिखाई पड़ी  तो मैंने उत्सुकता से पूछा  - " यही हैं क्या ?"

 - "अरे , नहीं हज़ूर , वो तो हूर हैं हूर , उनकी तो चाल ही मतवाली है , हज़ूर क्या बताऊँ , बहुत प्यार करती है मुझ से।"

 मैं तो पहले ही जला - भुना बैठा था , बस हाँ - हूँ  करता रहा।  दिल ये जानने के लिए बेचैन था कि ऐसी कौन - सी हूर की  परी है जिसने इस मनहूस का दिल ख़ुशियों से भर दिया है।

 

- " बहुत दुखियारी है हज़ूर , कल तो मेरे सीने से लिपट के रो पड़ी थी " - बरबाद ने जज़्बाती हो कर कहा था।

 " क्या बात कर रहा है " मैंने लगभग चौंकते हुए यूँ कहा गोया मेरी बीवी किस से लिपट  गयी हो। 

" अपनी लड़की को लेकर  परेशान है , भाग कर शादी कर ली है उस ने। " बरबाद ने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा गोया ये क़िस्सा कोई गहरा राज़ था।

 -" बेचारी के दिल के  अरमान दिल में ही रह गए , बड़ी धूम - धाम से शादी करना चाहती थी लेकिन लड़की ने सब गुड़ - गोबर कर दिया।भाग कर लव मैरिज वो भी ग़ैर - बिरादरी में " - बरबाद ने क़िस्से का कुछ और खुलासा किया। ' आपको देर तो नहीं हो रही हज़ूर '? उसने फिर पूछा मुझसे।

 

मैं ताड़ गया कि मुझको भगाना चाहता है लेकिन मैं बेशरम बन डटा रहा।  इसी तरह आधा घंटा बीत गया लेकिन यार का यार न आया। अंततः यही तय हुआ कि अगले दिन मैं उसे किसी समाज सेविका से मिलवाऊँगा और  बरबाद उनको लेकर मेरे पास आएगा।  यूँ तो मैं समाज सेविका के नाम दो लाइनों का ख़त भी लिख कर दे सकता था लेकिन मेरा मन बरबाद की छम्मक - छल्लों को देखने में अटका था  सो मैंने अपना जाल बिछा दिया था।

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अगले दिन नियत समय से कुछ पहले ही बरबाद अपनी बुलबुल को साथ ले कर मेरे पास आ गया जिसका नाम मीना था  । पहली नज़र में मुझे बुरी नहीं लगी। गोरी -चिट्टी , इकहरे बदन की लम्बे क़द वाली , शोल्डर कट बाल ,जींस और टॉप्स में किसी छैल - छबीली सी दिखती थी।।  पति ने छोड़ दिया था या यूँ कहे उसने अपने पति को छोड़ दिया था। पति बेड़वा था और रोज़ रोज़ की मार पीट से तंग  आ कर  वह बच्चों को ले कर अलग रहने लगी थी। ख़ैर समाज सेविका के पास जाने से पहले मैंने उसे फ़ोन किया तो पता चला  कि उसके कुनबे  में कोई गुज़र  गया था जिसके चलते आज उस से मुलाक़ात नहीं हो सकती। 

सर्दियों की  खिली खिली धूप थी , सो हम तीनो नज़दीक ही एक पार्क में जा कर बैठ गए।  आधा किलो मूंगफली ख़रीद ली गयी और मीना ने अपनी किताब के पन्ने उलटने शुरू किये 

- " आप सोच तो रहे होंगे कि आख़िर इस नमूने से मेरा क्या रिश्ता है " - मीना ने मुझ से मुस्कुराते हुए कहा।

 -  " नहीं , ऐसा तो कुछ नहीं "।  मैंने नज़र चुराते हुए कहा।

 - " नहीं , नहीं , ये सवाल तो आपके दिल में ज़रूर आया होगा " - उसने यक़ीन से कहा।

 - " नहीं , नहीं , ऐसी कोई बात नहीं ... " मैंने अपना ब्यान दोहराया।

 - " अब मैं आपको क्या बताऊँ , असल में ये बुड्ढा  मेरे पीछे ही पड़ गया ।  "  शिकायती लहजे में बोली ।

 मैंने एक नज़र बरबाद की ओर उठाई , उसकी शक्ल देखने लायक थी।

 - " क्या बताऊँ , बिलकुल ही चेप हो गया।  वैसे एक रात मैं इसके साथ सो चुकी हूँ , कुछ छुपाउंगी नहीं आपसे " उसने अपनी ईमानदारी जताते हुए बताया ।

 

मैं उसकी साफ़गोई पर थोड़ा हैरान हुआ लेकिन ख़ुश था कि हूर धोखेबाज़ नहीं है। फिर भी मैं समझ नहीं पा रहा था कि वह ये सब बाते मुझे क्यों सुना रही थी।अपनी दास्तां आगे बढ़ते हुए बोली - " आपको क्या बताऊँ , बुड्ढे से कुछ होता ही नहीं ..."

 - "ऐ..ऐ..मीना , क्या बोल रही है तू ?"  बरबाद बुरी तरह झेंप गया था , " अभी आया मैं " , कह कर वहाँ से उठा और पार्क के शौचालय की ओर बढ़ गया। 

 मीना तब और खुल कर बोली - " मुझसे ऐसे चिपट गया जैसे औरत कभी देखी ही न हो।  मुझे चाट चाट कर बड़बड़ाने लगा - हाय , तू कितनी गोरी चिट्टी है और मेरी बीवी तो कोयला है ..कोयला। " वैसे यह बात तो सही है , इसकी बीवी है तो काली भूतनी। चलो रंग की भी कोई बात नहीं , उठने - बैठने का सलीका तो हो।  बिलकुल जमादारनी लगती है।  पता नहीं कैसी औरत है , बहुत - सी तो अनपढ़ भी समझदार होती है पर ये तो बिलकुल गंवार है , अनपढ़ों से भी गयी गुज़री।  

उस दिन मेरी समझ में आया कि एक औरत का दूसरी औरत से जलने का कारण सिर्फ उसकी सुंदरता ही नहीं होती। एक सुन्दर औरत भी एक औसत औरत से जल सकती है।  एक ऊँची बिरादरी की औरत नीची बिरादरी वाली औरत से ईर्ष्या रख सकती है।  ख़ैर तब तक बरबाद वापिस आ गया था और हमारी गपशप आगे बढ़ गयी थी।  माहौल को ख़ुशनुमा बनाने के लिए  बरबाद ने मीना से  गाने की फ़रमाइश कर डाली और मीना ने  अपनी दर्द भरी आवाज़ में दर्दीला फ़िल्मी गाना सुनाया " दुनिया में हम आये है तो जीना ही पड़ेगा , जीवन है अगर ज़हर तो पीना ही  पड़ेगा।  "  गाना ख़त्म होते ही  बरबाद भड़क उठा - ' अरे , ज़हर पिए तुम्हारे दुश्मन , हम है न तुम्हारे साथ , घबराओ नहीं , सब ठीक हो जायेगा , क्यों हज़ूर ? ' बरबाद ने मेरी तरफ नज़र उठाते हुए कहा।

 

- " हाँ , हाँ , क्यों नहीं , बरबाद तुम्हें बरबाद नहीं होने देगा।  " मैंने चुटकी लेते हुए कहा।

- " हज़ूर , एक गुज़ारिश है आपसे। " मीना ने उदासी से कहा

- " जी कहिये , क्या ख़िदमत करूँ आपकी " मैंने शायराना अंदाज़ में कहा।

- " ख़िदमत तो हज़ूर की हम करेंगे , आप तो थोड़ी Help कर दीजिये हमारी। " मीना ने कहा

हेल्प शब्द मेरे लिए नया नहीं था।  मैं समझ गया कि अब पैसो की बात उठेगी , फिर भी मैं  अनजान बन कर बोला - " बोलिये कैसी हेल्प चाहिए। "

 

मीना पेशोपश में थी , उसने बरबाद की तरफ़ नज़रे उठाई और बरबाद उसका इशारा समझ कर बोला - " हज़ूर इनके  DDA फ्लैट की EMI पेंडिंग हो गयी है।  कमाऊँ जवान लड़की घर से भाग चुकी है। DDA से नोटिस आ चुका है।  आप इन्हें १ लाख की हेल्प कर दें , ये जल्दी लौटा देंगी आपको , क्यों मीना ? " बरबाद ने मीना की ओर सवालिया नज़र उठाई।

 -" जी हज़ूर , मैं आपकी पाई -पाई लौटा दूँगी , बस इस वक़्त मुझे इस मुसीबत से निकलवा  दें। जो भी ब्याज आप लेना चाहे ले लीजिए " मीना ने कहा।

 -" अरे , आप बरबाद के साथ आई है तो आपकी हेल्प तो करनी ही पड़ेगी ओर ब्याज तो हम लेंगे नहीं , क्यों बरबाद साहब , कभी आपसे ब्याज लिया है ? मैंने बरबाद की ओर नज़र कर के कहा।

 -" हज़ूर , आप बहुत दिलावर है , ख़ुदा आपके रुतबा बनाये रखे।  मीना आपकी ख़िदमत करती रहेगी ...., मीना हज़ूर  की ख़िदमत  में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।  " बरबाद ने मीना की ओर नज़र उठा कर कहा।

 -" बिलकुल नहीं होगी हज़ूर , ये मेरा फोन नंबर रखिये। जब भी आपका मूड हो मुझे फ़ोन  करिये बस , एक घंटे में हाज़िर हो जाऊँगी । " मीना  ख़ुशी से खिलखिला उठी  ।

- अब तो ख़ुश हो जा " बरबाद उसकी कमर पे हाथ फेरते  हुए बोला। 

- " देखिये  हज़ूर , बुड्ढा फिर शुरू हो गया "   कह कर उसने ज़ोर से ठहाका लगाया। 

 मैंने १ लाख का चेक मीना को दे दिया।  मैं जानता  था अब ये पैसे वापिस न मिलेंगे जैसे बरबाद को दिए गए पैसे कभी वापिस नहीं मिले।

वो दोनों चेक लेकर चले गए थे और मैं खुले आसमान में चलता  जा रहा था। नज़दीक से कुछ औरतों के ठहाके मेरे कानों में बज रहे थे। इस दुनिया में औरतो की खनखनाती हँसी और ठहाकों से क़ीमती दौलत कुछ भी नहीं।


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लेखक - इन्दुकांत आंगिरस