इन्तिज़ार
जब टूटी मेहराब पर
उदास चाँद उतर आता है
तब बहुत याद आती है तुम्हारी
हर शाम ढूंढता हुआ
तुम्हारे पद्चिन
मैं गुलेर के फूलों के साथ
करता हूँ तुम्हारा इन्तिज़ार
इन्तिज़ार इन्तिज़ार
डूबते हुए सूरज के साथ
करता हूँ तुम्हारा इन्तिज़ार
पर शाम धीरे धीरे डूब ही जाती है
डूब जाता है सूरज भी
समुन्दर की आगोश में
क़तरा क़तरा दर्द
पी ही जाता दिल का ग़म
पर तेरे इन्तिज़ार का लम्हा नहीं बीतता
नहीं होता दिल का ग़म कम ।
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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