Wednesday, February 15, 2023

वसंत का ठहाका - वसंत का ठहाका

 


 

आज बहुत दिनों बाद

कविता की शाम ने

 फिर दस्तक दी है

मेरी आत्मा पर

और मेरी आत्मा

निकल पड़ी है

कविता के

अंतहीन सफर पर

इस सफर  में

धरती , पेड़ झरने

सूरज , चांदनी , पहाड़

नदी , समुंदर सब साथ है

मेरे हाथ में तुम्हारा हाथ है

वसंत ने बदली है करवट

और मेरी आत्मा ने

फिर सुना है

वसंत का ठहाका



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

 

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