Wednesday, February 15, 2023

वसंत का ठहाका - ज़जीरा

 


 

 

आज भी कोई

उतरी नहीं कविता

संवेदनाओं के

आसमान से

आज भी  मैं

रह गया रीता

आज भी उलझा रहा

मैं बदन के जंगल में

आज भी रूह से

मुलाक़ात न हो पाई

हृदय का ज़जीरा

सूख गया है शायद



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

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