Wednesday, February 15, 2023

लघुकथा - अलविदा

 अलविदा


प्रकाश ने बोझिल क़दमों से ट्रैन में क़दम रखा और अपनी बर्थ पर पहुँच गया।  अपना बड़ा सूटकेस सीट के नीचे सरकाया और हैंडबैग सीट पर लापरवाही से फेंक दिया।  उसके सामने वाली बर्थ पर एक युवा लड़की पहले से ही बैठी थी और साथ में शायद उसके माँ - बाप जो उसे छोड़ने आये थे।  प्रकाश सोचने लगा कि लड़की ख़ुशनसीब है कि उसे कोई छोड़ने आया है , प्रकाश को तो कोई भी छोड़ने नहीं आया था।  आख़िर आता भी कौन , घर में उसकी बूढी माँ के अलावा और कोई नहीं था जो उसे अलविदा कहने आता।  स्टेशन पर अक्सर मुसाफ़िरों  को छोड़ने उनके परिजन साथ आ जाते हैं और ट्रैन चलते वक़्त बहुत से हाथ हवा में एक साथ लहरा उठते हैं। अलविदा कहते हाथों के बीच चेहरे धुंधलाने लगते हैं और कई  बार तो यह भी समझना मुश्किल हो जाता है कि कौन सा हाथ किस चेहरे के लिए हिल रहा है।  सब कुछ गडमड , ट्रैन के चलते ही एक साथ सैकड़ों हाथों का हिलना  , मुस्कुराती  या नम आँखों में  लिपटे उदास चेहरे , जाने अब कब मिलना हो ? 






लेखक -  इन्दुकांत आंगिरस 

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