Wednesday, February 15, 2023

वसंत का ठहाका - बनारस

 

बनारस

 

मेरा नाम बनारस है

यह दुनिया मुझे

वाराणसी और काशी के नाम से भी जानती है

काशी विश्वनाथ महादेव का  नगर हूँ  मैं 

जीवन में मृत्यु  का समर  हूँ मैं ,

गंगा किनारे बसे नगरो में

मैं ही सबसे अधिक

पवित्र और पुराना हूँ

हिन्दू धर्म का सनातनी तराना हूँ ,

गंगा की लहरें

मेरे पवित्र क़दमों को स्पर्श  कर

और अधिक पवित्र हो जाती हैं  ,

मेरे क़दमो पर बने

अट्ठासी घाटों की माया में घिर कर

कुछ पल को अपनी राह भी बिसर जाती है,

मेरी आत्मा की तंग गलियो में

मृत्यु की प्रतीक्षा करती ज़िंदगी

निरंतर करवटे बदलती रहती है

हर चिता की कहानी

लहरों से सुनती है कहती हैं  ,

एक मौन प्रतीक्षा मृत्यु की

कोई भय संताप

कोई शिकवा गिला

 

मैंने देखा है यहाँ 

मृत्यु की परतों का

परत दर परत खुलना ,

मृत्यु के इन अबूझे रहस्यों को

मुझसे बेह्तर कौन समझेगा ,

मेरे घाटों पर

कभी  बुझने वाली चिताग्नि

दुनिया भर के पर्यटको के लिए

किसी कौतुहल से कम नहीं

इस चिताग्नि  को

अपने बेहतरीन कैमरों में

 क़ैद करने वाले पर्यटक

इतना भी नहीं समझते

की मृत्यु आज तक

किसी भी कैमरे में क़ैद नहीं हो पायी

वो तस्वीरों में उभरती अग्निलपटे

सिर्फ एक पीली उदास रौशनी है

जिसके प्रकाश में

मेरी आत्मा हमेशा जगमगाती रहती है

वास्तव में आत्मा का पंछी

किसी कैमरे में क़ैद हो ही नहीं सकता

वह तो घने आकाश उड़ने की प्रतीक्षा में

किसी टूटी मुंडेर पर बैठा मिलेगा

और चिता की जलती लकड़ियों के संगीत के साथ

गंगा की लहरों पर सवार होकर

गायेगा मृत्यु का अमर गीत

और जब यह सारी दुनिया

गहरी नींद में सो रही होगी

तब मैं ख़ामोशी से तन्हा  सुनूँगा 

मृत्यु का वही चिरपरिचत

अमर गीत .।



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

 

 

 

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