कोई ग़ुस्ताख़ी न हो मेरे वतन की शान में
हिन्द का वासी हूँ मैं , रहता हूँ हिन्दोस्तान में
भूल से भी जब कभी दुश्मन इधर को आएगा
रोएगा,पछताएगा , वो मुँह की अपनी खाएगा
जीते जी अपने कोई भी इसको छू न पाएगा
है बसा हिन्दोस्तां मेरा ये मेरी जान में
याद हम को जब शहीदों की हमारी आएगी
लाख रोकेंगे मगर ये आँख भर ही जाएगी
गीत मेरे ही वतन के हर ज़बां फिर गाएगी
तुम भी अपना स्वर मिला लो आज इस आह्वान में
फूल इसके बाग़- सा अब और खिल सकता नहीं
प्यार इस जैसा कही पर और मिल सकता नहीं
बात जो कह दे कभी ये उस से हिल सकता नहीं
झूम ऐ मेरे तिरंगे अपनी आन और बान में
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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