Friday, December 23, 2022

लघु कथा - ढलती धूप



 ढलती धूप 


मोनू  यह  सोच कर ही परेशान था  कि  अब  उसे   8२  साल की उस बुढ़िया को  उठा कर उसके पलंग तक ले जाना होगा।  बुढ़िया कोई ग़ैर नहीं उसकी अपनी दादी थी और  उसके ६२ वर्षीय पिता में अब इतना दम  नहीं रहा था कि वह अपनी माँ को  उठा पाते। 


पिता निर्देश दे रहे थे - मोनू , अपनी दादी को  उठा कर उनके बिस्तर पर लिटा दे।  धूप  ढलने ही वाली है। 

" पापा , ये रोज़ रोज़ का जंजाल मुझसे नहीं होगा , पहले धूप के लिए आँगन में लिटाओ फिर भीतर ले जाओ।  "

" अरे , बेटा   कैसी  बात कर रहा है ,  सामने वाले मकान में गुलाठी साहब की माँ को देख।  पूरा परिवार उनकी सेवा में लगा रहता है। "

"  हाँ , पूरा परिवार लगा रहता है उनका क्योंकि गुलाठी साहब की माँ  की ६० हज़ार रुपये महाना पेंशन आती है। 


बेटे का जवाब सुन कर पिता जी मौन थे और ढलती धूप में बैठी दादी की  आँखों में थे आँसू । 



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 

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