Saturday, December 10, 2022

लघुकथा - घोंसला

 लघुकथा  - घोंसला


नए घर के रौशनदान की सफ़ाई करते करते मज़दूर अचानक रुक गया था।


- साहिब , यहाँ तो चिड़िया का घोंसला है , क्या करें ?


- अरे ,उठा कर फेंक दे घोंसला और क्या करेगा ? साहिब ने झल्ला कर जवाब दिया।


- लेकिन साहिब ,इसमें तो चिड़िया के अंडे हैं।


- अबे तेरी समझ में नहीं आया क्या , फेंक उठा कर घोंसला। विल दे लिव एट अवर कोस्ट ( ये हमारे पैसों पे मौज करेंगें ? ) साहिब ने ज़ोर से मज़दूर को फ़टकारा था।


मज़दूर ने बोझिल मन से वह घोंसला फर्श पर गिरा तो दिया लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि चिड़ियों का जोड़ा साहिब के पैसों पे कैसे मौज कर रहा था ?



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस


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