लघुकथा - मापदंड
सेठ जी ने अपनी आलिशान ऊँची इमारत की तरफ देखते हुए मुझसे कहा - -
" शहर में इतनी ऊँची इमारत दूसरी नहीं है। देखने के लिए पूरी गर्दन ऊपर उठानी पड़ती है , आकाश को छू रही है ,आकाश को "।
- "सेठ जी , मैं इसकी ऊँचाई यहाँ खड़े खड़े नाप सकता हूँ ।"
- "अच्छा , बताओ इसकी ऊँचाई ,हम भी देखे आपका मापदंड। "
- "सबसे ऊपर की मंज़िल पर वो मज़दूर दिख रहा है ?" मैंने सेठ जी से पूछा ।
- " हाँ ,हाँ ,देखो बिलकुल बौना लग रहा है " सेठ जी ने हँसते हुए कहा ।
- "बस समझ लीजिये आपकी इमारत की ऊँचाई उस बौने के कद से ज़्यादा नहीं है " मैंने मुस्कुरा कर कहा ।
सेठ ने एक बार उस मज़दूर को देखा ,फिर मुझे देखा और मेरे मापदंड के फॉर्मूले पर अपना सिर खुजलाने लगें।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
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