Monday, December 26, 2022

गीत - मैं एक समुन्दर रीता हूँ

 

मैं एक समुन्दर रीता हूँ 

हूँ तो समय पर बीता हूँ  


बिन मोल  यहाँ लुटता हूँ  मैं 

इक दीपक - सा जलता हूँ मैं  

मेरे  अंतस  की  थाह   नहीं 

मैं सब के बस की राह नहीं 


मैं अन्धकार का सूरज हूँ 

मैं रोज़ रौशनी   पीता हूँ 


मैं  बिखरा इक अफसाना - सा 

दिल उजड़ा इक  वीराना - सा 

अब  ढलती  हुई   जवानी   है 

आँसू   की वही    कहानी   है 


इस दिल में लाखों ज़ख़्म मेरे 

मैं  पल पल जिनको  सीता हूँ 



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

No comments:

Post a Comment