मैं एक समुन्दर रीता हूँ
हूँ तो समय पर बीता हूँ
बिन मोल यहाँ लुटता हूँ मैं
इक दीपक - सा जलता हूँ मैं
मेरे अंतस की थाह नहीं
मैं सब के बस की राह नहीं
मैं अन्धकार का सूरज हूँ
मैं रोज़ रौशनी पीता हूँ
मैं बिखरा इक अफसाना - सा
दिल उजड़ा इक वीराना - सा
अब ढलती हुई जवानी है
आँसू की वही कहानी है
इस दिल में लाखों ज़ख़्म मेरे
मैं पल पल जिनको सीता हूँ
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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