Saturday, December 10, 2022

लघुकथा - शगुन के रुपए

 लघुकथा  - शगुन के रुपए


संगीत के कार्यक्रम के उपरान्त  बाहर पंडाल में प्रीतिभोज का आयोजन था। अभी अंतिम कार्यक्रम चल ही रहा था कि दर्शक बाहर पंडाल में एकत्रित होने लगे। सभी को भोजन की प्रतीक्षा थी और भोजन के आते ही एकत्रित भीड़ भोजन पर टूट पड़ी। किसी के हाथ रोटी , किसी के हाथ सब्ज़ी तो किसी के हाथ सिर्फ़ थाली लगी। मेरे एक मित्र  भी भीड़ में घुसकर भोजन ले आये थे। उनके मुखमण्डल पर पसीने की बूँदें छलछला रही थी और उनका चेहरा एक विजयी योद्धा की तरह  दमक रहा था।  मुझ पर और मेरी खाली थाली पर उनकी निगाह पड़ी तो एक पल को ठिठके ,फिर स्नेह से मुझे अपने साथ खाने की दावत दी लेकिन इतनी छीना- झपटी  देख कर मेरा मन ही उचट गया था।

- खाइये  ,आप खाइये , यह सब देख कर मेरी तो भूख ही मर गयी है - मैंने सकुचाते हुए मित्र से कहा।

- अरे , छोड़िये जनाब , आजकल ऐसे ही चलता है और हमने कौन से यहाँ शगुन के रुपए दिए हैं - रोटी का अगला कौर अपने मुँह में ठूसते हुए मित्र मुझे समझाने लगे और मैं  ठसाठस भरे  उनके मुँह को देखता रहा।


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 

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