Saturday, December 10, 2022

प्रेम - प्रसंग -कविता - हरे काँच की चूड़ियाँ

 हरे काँच की चूड़ियाँ


तुम्हारी हरे काँच की चूड़ियाँ

आज भी दिल को  याद आती हैं

तड़पते इस दिल को नग़में

भूले - बिसरे सुना जाती हैं,

चूड़ियों की

मधुर झंकार का  

संगीत भी बीत गया

तन्हा दर्द भी रीत गया

कही भी दूर दूर तक

कोई शोर नहीं गूँजता

कौन डस गया झरने की

मीठी कल कल

प्राण गलते रहे जल जल ,

कोई भी लहर

वापिस नहीं आई किनारे से

तकते रहे चाँद हम

रात भर उस किनारे  से ,

चूड़ियों  का मधुर संगीत

अब ढल चुका है

एक शोक गीत में

और यह शोक गीत

अब पसर गया है 

मेरी वीरान आत्मा में ।



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 


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