Sunday, December 18, 2022

कहानी - लेडीज़ टेलर

 लेडीज़ टेलर 


लेडीज़ टेलर का अर्थ यह नहीं कि दरज़ी कोई महिला होगी बल्कि एक लेडीज़ टेलर वह होता है जो महिलाओं के कपडे सीता है। यूँ तो बदलते ज़माने के साथ आजकल रेडीमेड कपड़ें पहनने का चलन है और ख़ास तौर से युवा पीढ़ी रेडीमेड कपडे पहनती हैं विशेषरूप से जींस, टीशर्ट  और टॉप्स।   जिस तरह से घरों में खाना बनाने का कार्य अक्सर महिलाएँ  ही करती हैं लेकिन रेस्टोरेंट्स और होटल्स में  शेफ़ अक्सर पुरुष ही होते हैं उसी तरह लेडीज़ टेलर भी अक्सर पुरुष ही होते  हैं।  आप सभी ने लेडीज़ टेलर से सम्बंधित बहुत से वीडियोस यूट्यूब पर ज़रूर देखे होंगे और उन वीडियोस ने आपको ज़रूर गुदगुदाया होगा लेकिन आज जिस लेडीज़ टेलर की कहानी मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ उसे सुन कर  संभव है कि आप लेडीज़ टेलर बनने की आरज़ू कर बैठे , तो दिल थाम के पढ़िए अफ़लातून लेडीज़ टेलर की  अफ़लातून कहानी।  


अफ़लातून लेडीज़ टेलर की उम्र लगभग ४५ साल , क़द दरम्याना , रंग गोरा , पके  हुए रंगीन बाल , कमान - सी भौएँ , चश्मे से  झलकती उल्लू-सी आँखें , ३६० डिग्री का मुआयना करती। उस छोटे से  कस्बे में अफ़लातून की छोटी - सी दुकान थी जिसमे उसकी पैरोंवाली सिलाई मशीन का बड़ा पहिया कभी कभी घूमने लगता और उस पहिये के साथ साथ उसकी ज़िंदगी के क़िस्से।  हाँ , प्रेम भरे , रंगीले क़िस्से। जब दो घूँट सुरा दरज़ी के गले से उतर जाती तो वह ऐसे मज़ेदार क़िस्से सुनाता कि दिल हाय हाय कर बैठता , सुनने वाले कभी अपने दिल को थामते तो कभी जिगर को।


महिलाओं के कपडे सीने में उसे माहरत थी और विशेषरूप से ब्लाउज़ , ब्लाउज़ के डिज़ाइन उसके दिमाग़ में महफूज़ रहते।  एक से एक बेहतरीन ब्लाउज़ , बाज़ार में चल रहे फैशन के ब्लाउज़ तो वो बखूबी बना ही लेता , उसके अलावा नए नए ब्लाउज़ के डिज़ाइन ईजाद करने में लगा रहता।  दुकान की  दीवारों पर अलग अलग डिज़ाइन वाले ब्लाउज़ पहने महिलाओं के पोस्टर , ख़ूबसूरत दिलों को लुभाते पोस्टर। उन पोस्टरों को अपने सीने से लिपटाती बेज़ान  दीवारें  भी  कभी इतराती तो कभी शर्माती।

यह वो ज़माना था जब औरतो ने  घर से निकलना शुरू किया ही था और स्कूलो और दफ़्तरों  में काम करना शुरू कर दिया था। काम - काजी महिलाओं के लिए ज़रूरी हो गया कि वे सज-धज कर घरों से निकले। उन्हें शायद इस बात का इल्म हो भी या नहीं भी कि राह में कितने शिकारी जाल बिछाये बैठे हैं और खुली धूप में परोसते रहते हैं दाना,, जिसे चुगने को  हर चिड़िया रहें  ललायित।


जिस तरह एक डॉक्टर के गले स्टेथोस्कोप शोभा देता है  उसी तरह एक दरज़ी के गले  में इंचीटेप। अफ़लातून  के  गले में भी एक  इंचीटेप और कान में एक पेंसिल अटकी रहती।  लेकिन इंचीटेप और पेंसिल का इस्तेमाल वह सिर्फ़  दिखावे के लिए करता।  असल में औरतो को देखते ही उनके ब्लाउज़ का नाप उसके दिमाग़ में फिट हो जाता , उनके उरोजों की गोलाई , कसावट , ढिलाई ,यहाँ तक कि कुचक का आयतन भी वह एक नज़र में नाप लेता। ऐसा तो कभी हुआ ही नहीं कि उसके द्वारा सिले गए ब्लाउज़ से कोई औरत संतुष्ट न हुई हो।  

लेकिन एक बार एक ब्लाउज़ के माप में अफ़लातून भी गचका खा गए। सुडौल कंधे वाली उस आसमानी परी के ब्लाउज़ का माप उसने लिया तो उसे इंचीटेप की ज़रूरत पड़ी और कॉपी  पेंसिल की भी।आसमानी परी के सीने की पहाड़ियाँ चट्टान - सी सख़्त थी , धूप के स्पर्श से उनका रंग बदलता , कभी सुरमई , कभी नीली तो कभी सुनहरी रंग की ये पहाड़ियाँ  दरज़ी  की आँखों से हो कर उसके सीने में उतर गयी।  रंगो के साथ साथ उनकी गहराई , उनकी गोलाई भी बदलती।  सुबह का रंग शाम  को फीका   लगता।  सुबह की गोलाई दोपहर तक बढ़ जाती और शांम होते होते और अधिक गहरा जाती। 

किसी तरह से कड़ी मेहनत कर के दरज़ी ने ब्लाउज़ तो बना डाला लेकिन  फिटिंग बराबर नहीं  थी  और होती भी कैसे , हसीना की साँसों के साथ साथ पहाड़ियों का उठना - गिरना।  ब्लाउज़ कभी इधर से ढीला तो कभी उधर से टाइट।  दरज़ी दोबारा नाप लेता और दोबारा ब्लाउज़ बनाता लेकिन हर बार कोई न कोई कमी रह जाती।  दरज़ी इस ब्लाउज़ में ऐसा फँसा  कि उसका सारा वक़्त इसी में ज़ाया  होने लगा।  इसके चलते वह नया काम पकड़ने से इंकार करने लगा और धीरे धीरे उसके सब ग्रहाक टूट गएँ ।  अब वह इकलौते ग्राहक का इकलौता दुकानदार था। सुबह से शाम और शाम से सुबह हो जाती लेकिन ब्लाउज़ की सिलवटे न निकली।  

दरज़ी इससे पहले भी कई बार  पहाड़ियों पर चढ़ा - उतरा था  लेकिन इन पहाड़ियों पर चढ़ते - उतरते उसे थकान होने लगी।   धीरे धीरे उसके तलुए घिसने लगे , आँखें धुंधलाने लगी , कमर कमान की तरह टेढ़ी हो गयी  लेकिन उस आसमानी परी का वो आसमानी ब्लाउज़ न कभी पूरा होना था न कभी हुआ ।


शाम ढलते ढलते , पहाड़ियों से उतरती धूप की किरणें  थामे वो आसमानी परी आज भी कभी कभी आती है लेकिन दुकान के  आधे झुके  शटर को देख लौट जाती है आसमान में,  शायद किसी दूसरे लेडीज टेलर की तलाश में...... …………….

                                                                        *****


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 



 

1 comment:

  1. आसमानी परी की तरह यह कहानी भी आसमानी है।

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