बजट
"10,000/ रुपए राकेश को भी देने है " , मैंने पत्नी को महीने का बजट समझाते हुए बताया।
" राकेश को क्यों देने हैं ? उस से भी उधार ले रखा है क्या ?
" उधार नहीं ले रखा , तुम्हे पता है न ये जॉब उसी की सिफ़ारिश से मिला है "
" तो फिर , क्या जॉब दिलाने का कमीशन मांग रहा है वो ? "
" हाँ , ऐसा ही समझ लो , अगर नहीं दूँगा तो जॉब किसी दूसरे को मिल जाएगा "
" राकेश आपका सालो पुराना दोस्त है , फिर भी यह सब ..."
" तुम नहीं समझोगी , आजकल दोस्ती से बड़ा पैसा है। वो ज़माना चला गया जब लोग दोस्ती में अपनी ज़िंदगी लुटा देते थे "
पत्नी ने एक गहरी साँस ली और बजट के पर्चे का पुनः अवलोकन करने लगी।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
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