Wednesday, December 21, 2022

लघुकथा - बजट


 बजट 


"10,000/ रुपए राकेश को भी देने है " , मैंने पत्नी को महीने का बजट समझाते हुए बताया। 


" राकेश को क्यों देने हैं ? उस से भी उधार ले रखा है क्या ?


" उधार नहीं ले रखा ,  तुम्हे पता है न ये जॉब उसी की सिफ़ारिश  से मिला है "


" तो फिर , क्या जॉब दिलाने का कमीशन मांग रहा है वो ? "


" हाँ , ऐसा ही समझ लो , अगर नहीं दूँगा  तो जॉब किसी दूसरे को मिल जाएगा  "


" राकेश आपका सालो पुराना दोस्त है , फिर भी यह सब ..."


"  तुम नहीं समझोगी , आजकल दोस्ती से बड़ा पैसा है।  वो ज़माना चला गया जब लोग दोस्ती में अपनी ज़िंदगी लुटा देते थे "


पत्नी ने एक गहरी साँस ली  और बजट के पर्चे का पुनः अवलोकन करने लगी। 



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 

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