---------------------------------------------------------------------------------------------------------
मैं बाग़ में हूँ तालिब-ए-दीदार किसी का
गुल पर है नज़र ध्यान में रुख़्सार किसी का
जिस तरफ़ बैठते थे वस्ल में आप
उसी पहलू में दर्द रहता है
- तअशशुक़ लखनवी
---------------------------------------------------------------------------------
किस किस तरह की दिल में गुज़रती हैं हसरतें
है वस्ल से ज़ियादा मज़ा इंतिज़ार का
जिस का गोरा रंग हो वो रात को खिलता है ख़ूब
रौशनाई शम्अ की फीकी नज़र आती है सुब्ह
- ताबाँ अब्दुल हई
------------------------------------------------------------------
थे हम तो ख़ुद-पसंद बहुत लेकिन इश्क़ में
अब है वही पसंद जो हो यार को पसंद
काजल मेहंदी पान मिसी और कंघी चोटी में हर आन
क्या क्या रंग बनावेगी और क्या क्या नक़्शे ढालेगी
तर रखियो सदा या-रब तू इस मिज़ा-ए-तर को
हम इत्र लगाते हैं गर्मी में इसी ख़स का
फिर के निगाह चार-सू ठहरी उसी के रू-ब-रू
उस ने तो मेरी चश्म को क़िबला-नुमा बना दिया
न सुर्ख़ी ग़ुंचा-ए-गुल में तिरे दहन की सी
न यासमन में सफ़ाई तिरे बदन की सी
- नज़ीर अकबराबादी
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------
आँखों में है लिहाज़ तबस्सुम-फ़िज़ा हैं लब
शुक्र-ए-ख़ुदा के आज तो कुछ राह पर हैं आप
कभी आग़ोश में रहता कभी रुख़्सारों पर
काश ऐ आफ़त-ए-जाँ मैं तिरा आँसू होता
मतलब की बात कह न सके उन से रात-भर
मा'नी भी मुँह छुपाए हुए गुफ़्तुगू में था
अबरू में ख़म जबीन में चीं ज़ुल्फ़ में शिकन
आया जो मेरा नाम तो किस किस में बल पड़े
प्यार से दुश्मन के वो आलम तिरा जाता रहा
ऐसे लब चूसे कि बोसों का मज़ा जाता रहा
- नसीम देहलवी
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
उस के रुख़्सार देख जीता हूँ
आरज़ी मेरी ज़िंदगानी है
न सैर-ए-बाग़ न मिलना न मीठी बातें हैं
ये दिन बहार के ऐ जान मुफ़्त जाते हैं
- नाजी शाकिर
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------
अंदाज़ अपना देखते हैं आइने में वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
देखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ
अब आओ मिल के सो रहें तकरार हो चुकी
आँखों में नींद भी है बहुत रात कम भी है
बोसा तो उस लब-ए-शीरीं से कहाँ मिलता है
गालियाँ भी मिलीं हम को तो मिलीं थोड़ी सी
ये भी नया सितम है हिना तो लगाएँ ग़ैर
और उस की दाद चाहें वो मुझ को दिखा के हाथ
न बन आया जब उन को कोई जवाब
तो मुँह फेर कर मुस्कुराने लगे
ख़ुश्बू वो पसीने की तिरी याद न आ जाए
गुल कैसा कभी इत्र भी सूँघा न करेंगे
बे-साख़्ता निगाहें जो आपस में मिल गईं
क्या मुँह पर उस ने रख लिए आँखें चुरा के हाथ
देना वो उस का साग़र-ए-मय याद है 'निज़ाम'
मुँह फेर कर इधर को उधर को बढ़ा के हाथ
जो जो मज़े किए हैं ज़बाँ से मैं क्या कहूँ
पास अपने आज तक तिरे मुँह का उगाल है
- निज़ाम रामपुरी
-------------------------------------
जब मिले दो दिल मुख़िल फिर कौन है
बैठ जाओ ख़ुद हया उठ जाएगी
कूचा-ए-जानाँ की मिलती थी न राह
बंद कीं आँखें तो रस्ता खुल गया
था सम पे ये उस परी का नक़्शा
सब आँख मिला कहते थे आ
-पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
------------------------------------------------------------------------
ठहर जाओ बोसे लेने दो न तोड़ो सिलसिला
एक को क्या वास्ता है दूसरे के काम से
- परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़ के शेर
-----------------------------------------------------------
गुड़ सीं मीठा है बोसा तुझ लब का
इस जलेबी में क़ंद ओ शक्कर है
हुस्न बे-साख़्ता भाता है मुझे
सुर्मा अँखियाँ में लगाया न करो
- फ़ाएज़ देहलवी
--------------------------------------------------------------------------
कुछ बे-अदबी और शब-ए-वस्ल नहीं की
हाँ यार के रुख़्सार पे रुख़्सार तो रक्खा
- बेगम लखनवी
---------------------------------------------------------------------------------
ये छेड़ क्या है ये क्या मुझ से दिल-लगी है कोई
जगाया नींद से जागा तो फिर सुला भी दिया
- बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
--------------------------------------------------------------------------------------------------------
क्या ताब क्या मजाल हमारी कि बोसा लें
लब को तुम्हारे लब से मिला कर कहे बग़ैर
- बहादुर शाह ज़फ़र
----------------------------------------------------------------------------------
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी जमाने दो
मनाने दो मुझे भी जान-ए-मन त्यौहार होली में
न बोसा लेने देते हैं न लगते हैं गले मेरे
अभी कम-उम्र हैं हर बात पर मुझ से झिजकते हैं
रुख़-ए-रौशन पे उस की गेसू-ए-शब-गूँ लटकते हैं
क़यामत है मुसाफ़िर रास्ता दिन को भटकते हैं
- भारतेंदु हरिश्चंद्र
-------------------------------------------------------------------------------------------
दहन का लब का ज़क़न का जबीं का बोसा दो
जहाँ जहाँ का मैं माँगूँ वहीं का बोसा दो
- मक़सूद अहमद नुत्क़ काकोरवी
---------------------------------------------------------------------------
वो आइना-तन आईना फिर किस लिए देखे
जो देख ले मुँह अपना हर इक उ'ज़्व-ए-बदन में
- मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
बोसा होंटों का मिल गया किस को
दिल में कुछ आज दर्द मीठा है
दीदार का मज़ा नहीं बाल अपने बाँध लो
कुछ मुझ को सूझता नहीं अँधियारी रात है
बोसे हैं बे-हिसाब हर दिन के
वा'दे क्यूँ टालते हो गिन गिन के
चेहरा तमाम सुर्ख़ है महरम के रंग से
अंगिया का पान देख के मुँह लाल हो गया
बोसा-ए-लब ग़ैर को देते हो तुम
मुँह मिरा मीठा किया जाता नहीं
शबनम की है अंगिया तले अंगिया की पसीना
क्या लुत्फ़ है शबनम तह-ए-शबनम नज़र आई
लेटे जो साथ हाथ लगा बोसा-ए-दहन
आया अमल में इल्म-ए-निहानी पलंग पर
मलते हैं ख़ूब-रू तिरे ख़ेमे से छातियाँ
अंगिया की डोरियाँ हैं मुक़र्रर क़नात में
सदमे से बाल शीशा-ए-गर्दूँ में पड़ गया
तुम ने दिखाई कोठे पर अपनी कमर किसे
दिल ले के पलकें फिर गईं ज़ुल्फ़ों की आड़ में
उल्टे फिरी ये फ़ौज सर-ए-शाम लूट के
जब कभी मस्की कटोरी क्या सदा पैदा हुई
करती है अंगिया की चिड़िया चहचहाने की हवस
- मुनीर शिकोहाबादी
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------
हँसी है दिल-लगी है क़हक़हे हैं
तुम्हारी अंजुमन का पूछना क्या
इक मिरा सर कि क़दम-बोसी की हसरत इस को
इक तिरी ज़ुल्फ़ कि क़दमों से लगी रहती है
- मुबारक अज़ीमाबादी
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कल वस्ल में भी नींद न आई तमाम शब
एक एक बात पर थी लड़ाई तमाम शब
ख़्वाब में बोसा लिया था रात ब-लब-ए-नाज़की
सुब्ह दम देखा तो उस के होंठ पे बुतख़ाला था
- ममनून निज़ामुद्दीन
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
प्यार की बातें कीजिए साहब
लुत्फ़ सोहबत का गुफ़्तुगू से है
तेरे आते ही देख राहत-ए-जाँ
चैन है सब्र है क़रार है आज
- मर्दान अली खां राना
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
जिस लब के ग़ैर बोसे लें उस लब से 'शेफ़्ता'
कम्बख़्त गालियाँ भी नहीं मेरे वास्ते
= मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------
ऐ 'मुसहफ़ी' तू इन से मोहब्बत न कीजियो
ज़ालिम ग़ज़ब ही होती हैं ये दिल्ली वालियाँ
आँखों को फोड़ डालूँ या दिल को तोड़ डालूँ
या इश्क़ की पकड़ कर गर्दन मरोड़ डालूँ
आस्तीं उस ने जो कुहनी तक चढ़ाई वक़्त-ए-सुब्ह
आ रही सारे बदन की बे-हिजाबी हाथ में
मज़े में अब तलक बैठा मैं अपने होंठ चाटूँ हूँ
लिया था ख़्वाब में बोसा जो यक शब सेब-ए-ग़बग़ब का
जमुना में कल नहा कर जब उस ने बाल बाँधे
हम ने भी अपने दिल में क्या क्या ख़याल बाँधे
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
गेसू रुख़ पर हवा से हिलते हैं
चलिए अब दोनों वक़्त मिलते हैं
मिर्ज़ा शौक़ लखनवी
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
क्या दिया बोसा लब-ए-शीरीं का हो कर तुर्श-रू
मुँह हुआ मीठा तो क्या दिल अपना खट्टा हो गया
- मीर कल्लू अर्श
----------------------------------------------------------------------------
मिस्ल-ए-आईना है उस रश्क-ए-क़मर का पहलू
साफ़ इधर से नज़र आता है उधर का पहलू
- मीर ख़लीक़
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
गरचे गुल की सेज हो तिस पर भी उड़ जाती है नींद
सर रखूँ क़दमों पे जब तेरे मुझे आती है नींद
- मह लक़ा चंदा
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
जिस का गोरा रंग हो वो रात को खिलता है ख़ूब
रौशनाई शम्अ की फीकी नज़र आती है सुब्ह
- ताबाँ अब्दुल हई
-------------------------------------------------------------------------------
बदन गुल चेहरा गुल रुख़्सार गुल लब गुल दहन है गुल
सरापा अब तो वो रश्क-ए-चमन है ढेर फूलों का
आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह
उस वक़्त तो इस गर्मी ने सब मात की गर्मी
- नज़ीर अकबराबादी
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
आँखों में है लिहाज़ तबस्सुम-फ़िज़ा हैं लब
शुक्र-ए-ख़ुदा के आज तो कुछ राह पर हैं आप
रोज़ हो जाती हैं हम से एक दो अठखेलियाँ
नौजवानी आज तक बाक़ी है चर्ख़-ए-पीर की
अबरू में ख़म जबीन में चीं ज़ुल्फ़ में शिकन
आया जो मेरा नाम तो किस किस में बल पड़े
प्यार से दुश्मन के वो आलम तिरा जाता रहा
ऐसे लब चूसे कि बोसों का मज़ा जाता रहा
- नसीम देहलवी
---------------------------------------------------------------------------------------------------
उस के रुख़्सार देख जीता हूँ
आरज़ी मेरी ज़िंदगानी है
न सैर-ए-बाग़ न मिलना न मीठी बातें हैं
ये दिन बहार के ऐ जान मुफ़्त जाते हैं
- नाजी शाकिर
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------
अंदाज़ अपना देखते हैं आइने में वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
देखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ
अब आओ मिल के सो रहें तकरार हो चुकी
आँखों में नींद भी है बहुत रात कम भी है
बोसा तो उस लब-ए-शीरीं से कहाँ मिलता है
गालियाँ भी मिलीं हम को तो मिलीं थोड़ी सी
ये भी नया सितम है हिना तो लगाएँ ग़ैर
और उस की दाद चाहें वो मुझ को दिखा के हाथ
न बन आया जब उन को कोई जवाब
तो मुँह फेर कर मुस्कुराने लगे
- निज़ाम रामपुरी
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------
बाल रुख़्सारों से जब उस ने हटाए तो खुला
दो फ़रंगी सैर को निकले हैं मुल्क-ए-शाम से
ठहर जाओ बोसे लेने दो न तोड़ो सिलसिला
एक को क्या वास्ता है दूसरे के काम से
- परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
गुड़ सीं मीठा है बोसा तुझ लब का
इस जलेबी में क़ंद ओ शक्कर है
मैं ने कहा कि घर चलेगी मेरे साथ आज
कहने लगी कि हम सूँ न कर बात तू बुरी
- फ़ाएज़ देहलवी
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------
वो उन का वस्ल में ये कह के मुस्कुरा देना
तुलू-ए-सुब्ह से पहले हमें जगा देना
बेखुद बदायुनी
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कुछ बे-अदबी और शब-ए-वस्ल नहीं की
हाँ यार के रुख़्सार पे रुख़्सार तो रक्खा
- बेगम लखनवी
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
ये छेड़ क्या है ये क्या मुझ से दिल-लगी है कोई
जगाया नींद से जागा तो फिर सुला भी दिया
-बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
-----------------------------------------------------------------------
ले गया छीन के कौन आज तिरा सब्र ओ क़रार
बे-क़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी
क्या ताब क्या मजाल हमारी कि बोसा लें
लब को तुम्हारे लब से मिला कर कहे बग़ैर
हाथ क्यूँ बाँधे मिरे छल्ला अगर चोरी हुआ
ये सरापा शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना थी मैं न था
- बहादुर शाह ज़फ़र
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी जमाने दो
मनाने दो मुझे भी जान-ए-मन त्यौहार होली में
न बोसा लेने देते हैं न लगते हैं गले मेरे
अभी कम-उम्र हैं हर बात पर मुझ से झिजकते हैं
रुख़-ए-रौशन पे उस की गेसू-ए-शब-गूँ लटकते हैं
क़यामत है मुसाफ़िर रास्ता दिन को भटकते हैं
- भारतेंदु हरिश्चंद्र
-------------------------------------------------------------
दहन का लब का ज़क़न का जबीं का बोसा दो
जहाँ जहाँ का मैं माँगूँ वहीं का बोसा दो
- मक़सूद अहमद नुत्क़ काकोरवी
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
फिर मुँह से अरे कह कर पैमाना गिरा दीजे
फिर तोड़िए दिल मेरा फिर लीजिए अंगड़ाई
- मंज़र लखनवी
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------
ज़बाँ पर आह रही लब से लब कभू न मिला
तिरी तलब तो मिली क्या हुआ जो तू न मिला
- मज़ाक़ बदायूनी
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
सुर्ख़ी शफ़क़ की ज़र्द हो गालों के सामने
पानी भरे घटा तिरे बालों के सामने
बोसा होंटों का मिल गया किस को
दिल में कुछ आज दर्द मीठा है
दीदार का मज़ा नहीं बाल अपने बाँध लो
कुछ मुझ को सूझता नहीं अँधियारी रात है
बोसे हैं बे-हिसाब हर दिन के
वा'दे क्यूँ टालते हो गिन गिन के
चेहरा तमाम सुर्ख़ है महरम के रंग से
अंगिया का पान देख के मुँह लाल हो गया
बोसा-ए-लब ग़ैर को देते हो तुम
मुँह मिरा मीठा किया जाता नहीं
उस बुत के नहाने से हुआ साफ़ ये पानी
मोती भी सदफ़ में तह-ए-दरिया नज़र आया
शबनम की है अंगिया तले अंगिया की पसीना
क्या लुत्फ़ है शबनम तह-ए-शबनम नज़र आई
लेटे जो साथ हाथ लगा बोसा-ए-दहन
आया अमल में इल्म-ए-निहानी पलंग पर
मलते हैं ख़ूब-रू तिरे ख़ेमे से छातियाँ
अंगिया की डोरियाँ हैं मुक़र्रर क़नात में
जोबन पर इन दिनों है बहार-ए-नशात-ए-बाग़
लेता है फूल भर के यहाँ झोलियाँ बसंत
जब कभी मस्की कटोरी क्या सदा पैदा हुई
करती है अंगिया की चिड़िया चहचहाने की हवस
- मुनीर शिकोहाबादी
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
हँसी है दिल-लगी है क़हक़हे हैं
तुम्हारी अंजुमन का पूछना क्या
इक मिरा सर कि क़दम-बोसी की हसरत इस को
इक तिरी ज़ुल्फ़ कि क़दमों से लगी रहती है
- मुबारक अज़ीमाबादी
---------------------------------------------------------------------
कल वस्ल में भी नींद न आई तमाम शब
एक एक बात पर थी लड़ाई तमाम शब
ख़्वाब में बोसा लिया था रात ब-लब-ए-नाज़की
सुब्ह दम देखा तो उस के होंठ पे बुतख़ाला था
- ममनून निज़ामुद्दीन
----------------------------------------------------------------------------------------
प्यार की बातें कीजिए साहब
लुत्फ़ सोहबत का गुफ़्तुगू से है
फ़ुर्क़त की रात वस्ल की शब का मज़ा मिला
पहरों ख़याल-ए-यार से बातें किया किए
दुनिया में कोई इश्क़ से बद-तर नहीं है चीज़
दिल अपना मुफ़्त दीजिए फिर जी से जाइए
- मर्दान अली खां राना
-------------------------------------------------------------------------------------------------------
जिस लब के ग़ैर बोसे लें उस लब से 'शेफ़्ता'
कम्बख़्त गालियाँ भी नहीं मेरे वास्ते
- मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
----------------------------------------------------------------------------------------------
ऐ 'मुसहफ़ी' तू इन से मोहब्बत न कीजियो
ज़ालिम ग़ज़ब ही होती हैं ये दिल्ली वालियाँ
हैराँ हूँ इस क़दर कि शब-ए-वस्ल भी मुझे
तू सामने है और तिरा इंतिज़ार है
मज़े में अब तलक बैठा मैं अपने होंठ चाटूँ हूँ
लिया था ख़्वाब में बोसा जो यक शब सेब-ए-ग़बग़ब का
जमुना में कल नहा कर जब उस ने बाल बाँधे
हम ने भी अपने दिल में क्या क्या ख़याल बाँधे
जी में है इतने बोसे लीजे कि आज
महर उस के वहाँ से उठ जावे
नज़रों में एक बोसा माँगा था हम ने उस से
उस ने भी ज़ेर-ए-लब ही कुछ कुछ कहा समझ कर
गर मज़ा चाहो तो कतरो दिल सरौते से मिरा
तुम सुपारी की डली रखते हो नाहक़ पान में
ख़्वारियाँ बदनामियाँ रुस्वाइयाँ
इश्क़ ने शक्लें ये सब दिखलाइयाँ
'मुसहफ़ी' तू ने ज़ि-बस गुल के लिए हैं बोसे
रश्क से देखे है बुलबुल दहन-ए-सुर्ख़ तिरा
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
------------------------------------------------------------------------------
गरचे गुल की सेज हो तिस पर भी उड़ जाती है नींद
सर रखूँ क़दमों पे जब तेरे मुझे आती है नींद
- मह लक़ा चंदा
--------------------------------------------------------------------------------------------------
हवा के घोड़े पे जब वो सवार होते हैं
तो पा के वक़्त मैं क्या क्या मज़े उड़ाता हूँ
- मारूफ़ देहलवी
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------
काकुल नहीं लटकते कुछ उन की छातियों पर
चौकाँ से ये खिलंडरे गेंदें उछालते हैं
- मिर्ज़ा अज़फ़री
----------------------------------------------------------------------------------------
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब
गालियाँ खा के बे-मज़ा न हुआ
नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें जिस के बाज़ू पर परेशाँ हो गईं
दिखा के जुम्बिश-ए-लब ही तमाम कर हम को
न दे जो बोसा तो मुँह से कहीं जवाब तो दे
बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह
जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------
लुत्फ़-ए-शब-ए-मह ऐ दिल उस दम मुझे हासिल हो
इक चाँद बग़ल में हो इक चाँद मुक़ाबिल हो
- मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
--------------------------------------------------------------------------------------------
गेसू रुख़ पर हवा से हिलते हैं
चलिए अब दोनों वक़्त मिलते हैं
- मिर्ज़ा शौक़ लखनवी
----------------------------------------------------------------------------
ख़फ़ा भी हो के जो देखे तो सर निसार करूँ
अगर न देखे तो फिर भी है इक सलाम से काम
- मिस्कीन शाह
----------------------------------------------------------
क्या दिया बोसा लब-ए-शीरीं का हो कर तुर्श-रू
मुँह हुआ मीठा तो क्या दिल अपना खट्टा हो गया
- मीर कल्लू अर्श
---------------------------------------------------------------------
मिस्ल-ए-आईना है उस रश्क-ए-क़मर का पहलू
साफ़ इधर से नज़र आता है उधर का पहलू
- मीर ख़लीक़
-------------------------------------------------------------------------------------------
इश्क़ ही इश्क़ है जहाँ देखो
सारे आलम में भर रहा है इश्क़
'मीर' उन नीम-बाज़ आँखों में
सारी मस्ती शराब की सी है
गर ठहरे मलक आगे उन्हों के तो अजब है
फिरते हैं पड़े दिल्ली के लौंडे जो परी से
इक़रार में कहाँ है इंकार की सी ख़ूबी
होता है शौक़ ग़ालिब उस की नहीं नहीं पर
जब कि पहलू से यार उठता है
दर्द बे-इख़्तियार उठता है
गूँध के गोया पत्ती गुल की वो तरकीब बनाई है
रंग बदन का तब देखो जब चोली भीगे पसीने में
खिलना कम कम कली ने सीखा है
उस की आँखों की नीम-ख़्वाबी से
हम ने अपनी सी की बहुत लेकिन
मरज़-ए-इश्क़ का इलाज नहीं
'मीर'-जी ज़र्द होते जाते हो
क्या कहीं तुम ने भी किया है इश्क़
उस पे तकिया किया तो था लेकिन
रात दिन हम थे और बिस्तर था
काम उस के लब से है मुझे बिंत-उल-इनब से क्या
है आब-ए-ज़ि़ंदगी भी तो ले जाए मुर्दा-शो
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कहे देती हैं ये नीची निगाहें
कि बाला-ए-ज़मीं क्या क्या न होगा
- मीर तस्कीन
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
चुरा के मुट्ठी में दिल को छुपाए बैठे हैं
बहाना ये है कि मेहंदी लगाए बैठे हैं
क्यूँ पास मिरे आ कर यूँ बैठे हो मुँह फेरे
क्या लब तिरे मिस्री हैं मैं जिन को चबा जाता
- मीर मेहदी मजरूह
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
गालियाँ दीं उस ने बे-गिनती हमें
हम ने बोसे भी तो गिन गिन के लिए
- मीर मोहम्मद सुल्तान
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
नश्शे में जी चाहता है बोसा-बाज़ी कीजिए
इतनी रुख़्सत दीजिए बंदा-नवाज़ी कीजिए
सब ने लूटे उन के जल्वे के मज़े
शर्बत-ए-दीदार जूठा हो गया
'बेदार' राह-ए-इश्क़ किसी से न तय हुई
सहरा में क़ैस कोह में फ़रहाद रह गया
- मीर मोहम्मदी बेदार
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
-
-