A két Természet : प्रकृति - दो पहलू
कविता मिलती है बुज़ुर्गों से और असभ्यता से
अक्षुणत: परिदृश्य और आत्मा को जकड़ती है
और तुम्हारा कहना है कि यह सब एक है ,और
पवित्र प्रकृति के लिए तुम्हे ग्रीष्म वापिस चाहिए
जो दिखता है तुम्हे ग्रीष्म प्रकृति में ,यह वही है-
प्रकृति की यह सुन्दर कला उसके लिए नहीं है ।
Prozai S Poétai szólas : गद्य ओर कविता का वार्तालाप
यक़ीनन , तुम्हीं हो उस्ताद और उरूज़
तुम्हीं हो सत्य
तुम्हारी इस्लाह के बाद ही दौड़ती हैं
मेरी कविताएँ
और जब पसरती हैं गद्य पर
तब कविता ओर गद्य में कोई फर्क नहीं रह जाता।
कवि - Kazinczy Ferenc (1759-1831)
अनुवादक -इन्दुकांत आंगिरस
वाह वाह
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