Saturday, December 26, 2020

कीर्तिशेष पद्मश्री शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी और उनकी दास्ताँगोई



घरौंदे पर बदन के फूलना क्या 

किराए पर तू इस में रह रहा है 


        कीर्तिशेष पद्मश्री शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी इस बात से बख़ूबी वाकिफ़ थे कि जिस घरौंदे में वो रह रहे हैं वो किराए का है। शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी उर्दू ज़बान के मारूफ़ शाइर और समालोचक है। उर्दू साहित्य उनके साहित्यिक योगदान को कभी भुला  नहीं पायेगा। उर्दू के अलावा  अरबी , फ़ारसी और अँग्रेज़ी भाषा में भी इनकी गहरी पैठ थी।  इन्होने १९६६ से २००६ तक   इलाहाबाद से प्रकाशित उर्दू अदब की पत्रिका " शबख़ूँ  "का सम्पादन किया। पेशे से डाक विभाग में कार्यरत थे लेकिन University of Pennsylvania  में पार्ट टाइम प्रोफ़ेसर भी थे। इनकी किताब " शे'र -ए-शोर अंगेज़ " ( 3 भाग ) के लिए इनको १९९६ में " सरस्वती सम्मान " से नवाज़ा गया। २००९ में इनकी  साहित्यिक उपलब्धियों के लिए इन्हें भारत सरकार द्वारा  " पद्मश्री " सम्मान से भी नवाज़ा गया।

साहित्य से लगभग लुप्त होती कला " दास्ताँ गोई " को पुनर्जीवित करने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। २००६ में प्रकाशित इनकी किताब " कई चाँद थे सरे आसमान " ने इनको आसमान की बुलंदियों तक पहुँचा दिया। इस मशहूर किताब का अँगरेज़ी भाषा में तर्जुमा " The Mirror of Beauty  " के नाम से उपलब्ध है। इनके द्वारा रचित पुस्तकों की एक लम्बी फ़ेहरिस्त हैं लेकिन चंद उल्लेखनीय किताबों के नाम देखें-


1  ग़ालिब , अफ़साने की हिमायत में 

2 .शे'र ,ग़ैर शे'र और नस्र

3. मीर तक़ी मीर ( 1722 -1810 ,टिप्पणियों के साथ मीर का समग्र साहित्य  )

4. उर्दू का इब्तदाई ज़माना 

5. सवार और दूसरे अफ़साने 

6. कई चाँद थे सरे आसमान 


 शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी ने उर्दू  अदब में अपनी एक अलग पहचान बनाई और उनके किताबें साहित्य जगत में बहुत चर्चित रहीं। उम्मीद है कि उनकी बेशक़ीमती किताबों  का हिन्दी भाषा में भी यथाशीघ्र अनुवाद उपलब्ध होगा जिससे कि हिन्दी के पाठक भी उनकी किताबों से लाभान्वित हो सकेंगे। उन्हें हमेशा अपने लिए एक नई दुनिया की तलाश थी और उनकी यह तलाश २५ दिसंबर २०२० को पूरी हो गयी। उन्हीं का यह शे'र देखें - 


बनायेंगें   नई   दुनिया हम अपनी 

तिरी  दुनिया में अब रहना नहीं हैं 




जन्म -    30th September ' 1935

निधन -  25th December ' 2020





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