József Attila
Altató - लोरी
आकाश ने मूँदी नीली आँखें
घर में मूँदी सबने आँखें
रजाई में सोयें हरे मैदान
चैन से सोओ तुम बलाज़
पैरों पर रख सर को अपने
कीड़ा ,मक्खी सोयें भैया
उनके साथ सोयें ततैया
चैन से सोओ तुम बलाज़
ट्राम भी थक कर सो गयी
ऊँघ रही है खखड़ाहट
सपने में बजती थोड़ी -सी
चैन से सोओ तुम बलाज़
कुर्सी पे रखा कोट भी सोया
उधड़न भी अब ऊँघ रही
बस और नहीं उधड़ेगी अब
चैन से सोओ तुम बलाज़
ऊँघती गेंद ,एक जाम और
जंगल की कर लो सैर और
मीठी चीनी भी सो गयी
चैन से सोओ तुम बलाज़
दूरिया सब कंचों की मानिंद
बड़े हो कर सब पाओगे
मूँद लो नन्हीं आँखें अपनी
चैन से सोओ तुम बलाज़
सैनिक , फ़ायरमैन बनोगे
या तुम बनोगे चरवाहे ?
देखो, सो गयी माँ तुम्हारी
चैन से सोओ तुम बलाज़
कवि - József Attila
जन्म - 11th April ' 1905 - Budapest
निधन - 03rd December ' 1937 - Balatonszárszó
अनुवादक -इन्दुकांत आंगिरस
बहुत सुंदर
ReplyDelete