Wednesday, December 16, 2020

हंगेरियन लोक कथा - A róka meg a sajt का हिन्दी अनुवाद



A  róka meg a sajt - लोमड़ी  और पनीर 


प्राचीन समय की बात है , सात समुन्दर पार एक लोमड़ी रहती थी। एक बार चाँदनी रात में लोमड़ी एक अमीर आदमी के आँगन में कुछ खाने के लिए घुस गयी। वहाँ मुर्गियाँ और सूअर इधर-उधर घूम  रहें थे लेकिन लोमड़ी को खाने के लिए कुछ भी न मिला। 

वह निराश हो कर आँगन से जाने ही वाली थी कि तभी उसकी निगाह आँगन के बीचो-बीच  एक कुँए पर पड़ी। वह  कुँए की  तरफ़ गयी ,  कुँए की मुंडेर पर दोनों टाँगों से खड़े होकर कुँए के पानी में झाँकने लगी। तभी उसने पानी में चाँद की परछाई देखी और उसने सोचा कि वह पनीर का एक बड़ा टुकड़ा है। 

लोमड़ी सोचने लगी कि किस तरह  कुँए  के भीतर पहुँचे जिससे कि उसे पनीर खाने को मिल जाये। शीघ्र ही उसने तरकीब खोज निकाली। वह कुँए  के ऊपर चढ़ गयी और वहाँ लटकी दो बाल्टियों में से एक में बैठ गयी। यह बाल्टी दूसरी बाल्टी की तुलना में भारी हो गयी और वह तत्काल पानी में उतर गयी। 

जब लोमड़ी  कुँए के भीतर पहुँची  तो उसे एहसास हुआ कि जिसे वह पनीर समझ रही थी वह तो चाँद की परछाई थी। वह अफ़सोस करने लगी कि कुँए  के भीतर क्यों उतरी, लेकिन अब बाहर आना मुश्किल था। दुखी होकर सोचने लगी कि अब क्या होगा। तभी एक भेड़िया भी खाने की तलाश में उसी आँगन में आ गया। उसे भी  इधर-उधर घूमती मुर्गियाँ और सूअर ही मिले लेकिन खाने के लिए कुछ न मिला। 

वह भी जब आँगन छोड़ के जाने ही वाला था , उसकी निगाह भी  कुँए पर पड़ी और वह कुँए की ओर चल पड़ा। कुँए की मुंडेर पर दोनों टाँगों से खड़े होकर कुँए  में झाँकने लगा। उसने देखा वहाँ बाल्टी में एक लोमड़ी थी ओर उसके पास ही एक बड़ा पनीर का टुकड़ा।  


- तुमने वहाँ पहुँच कर कमाल कर दिया , उस पनीर में से थोड़ा पनीर मुझे नहीं दोगी खाने को ? भेड़िये ने लोमड़ी से पूछा। 


- क्यों नहीं भेड़िये भैया ,ज़रूर दूँगी - लोमड़ी ने जल्दी से जवाब दिया। 


- लेकिन मैं वहाँ तक पहुँचू   कैसे ?


- कुँए  पर चढ़ कर उस खाली बाल्टी में बैठ जाओ , आराम से नीचे पहुँच जाओगे।  - लोमड़ी जानती  थी  कि भेड़िये का वज़न उससे ज़्यादा है और  जब भेड़िया  कुँए  में उतरेगा तो वह अपने आप कुँए से बाहर आ जाएगी। 

भेड़िया बाल्टी में बैठ नीचे उतरने लगा और लोमड़ी की बाल्टी ऊपर आने लगी।  जब भेड़िया लोमड़ी के करीब पहुँचा तो लोमड़ी ने भेड़िये  को बेहतरीन भोजन की शुभकामनाएँ दी और जैसे ही उसकी बाल्टी ऊपर पहुँची वह बाल्टी में से कूद कर भाग गयी। 


नीचे पहुँच कर भेड़िये को पता चला कि उसे बेवकूफ़ बनाया गया था।  कुँए में पनीर नहीं बल्कि चाँद की परछाई थी लेकिन अब वह कर भी क्या सकता था। उसे सुबह होने तक वही बैठना पड़ा। सुबह  होने पर  जब ज़मीदार  जानवरों  के लिए पानी लेने आया तो उसने देखा वहाँ बाल्टी में एक भेड़िया बैठा था। उसने चिल्ला कर पड़ोसियों को बुलाया।  सबने मिलकर भेड़िये को कुँए से बाहर खींचा और उसे मार दिया।  उसकी खाल के भी अच्छे दाम मिले। 


इस प्रकार इस क़िस्से  का समापन हुआ। 



अनुवादक - इन्दुकांत  आंगिरस 

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