कीर्तिशेष चंद्रकिरण राठी
मुझे ठीक से याद नहीं कि मेरी पहली मुलाक़ात चंद्रकिरण राठी से दिल्ली में कब और कहाँ हुई लेकिन जब मैं अपनी हंगेरियन भाषा की अध्यापिका डॉ कौवेश मारगीत के साथ लगभग तीन वर्ष पूर्व उनके ग्रेटर नॉएडा वाले घर पर पहुँचा तो उन्होंने मुझसे कहा -" हम पहले भी कही मिल चुके हैं , शायद किसी साहित्यिक कार्यक्रम में " तो मुझे भी किसी धुँधली मुलाक़ात की याद आ गयी। श्री गिरधर राठी से तो हंगेरियन अनुवाद के सिलसिले में पहले भी मुलाक़ाते हो चुकी थी।
हम लोग हंगेरियन कवि - साहित्यकार , अरान्य यानोश की कविताओं के हिन्दी अनुवाद पर श्री गिरधर राठी से उनकी विशेष राय जानने के लिए गए थे। इस सिलसिले में हमे दो दिन उनके घर जाना पड़ा। दोनों दिन हमे चन्द्रकिरण राठी का स्नेह एवं प्रेम प्राप्त हुआ। उन्होंने बड़ी आत्मीयता से हमारा यथोचित सम्मान किया और उनके घर पर खाई मक्के की रोटी और सरसो का साग आज भी याद है।
चंद्रकिरण राठी एक लेखिका के साथ साथ अच्छी अनुवादक भी थी।इन्होने बांग्ला और अँग्रेज़ी भाषा से उल्लेखनीय अनुवाद कार्य किया है। केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो में वरिष्ठ अनुवादक के रूप में कार्य किया ,बी बी सी से भी जुडी रही और अनेक व्यस्क विदेशियों को हिन्दी सिखाई। किताबों से उन्हें विशेष प्रेम था। उनका मानना था कि किताबे पढ़ कर ही एक आदमी , इंसान बन सकता है। पुस्तकों के प्रचार-प्रसार में उन्होंने अपनी ज़िंदगी का एक लम्बा अरसा गुज़ारा। ग़रीब बच्चों को पुस्तकें उपलब्ध कराने में उन्हें विशेष ख़ुशी मिलती थी। ग्रेटर नॉएडा के M S X मॉल में " पोथी वितरण केंद्र " से पुस्तकों का प्रचार -प्रसार एवं बिक्री। मुझे याद है कि उन्होंने हमसे उस पुस्तक केंद्र को देखने की बात कहीं थी लेकिन समय अभाव के कारण हम लोग उस दिन वहाँ नहीं जा पाए थे।
हिन्दी साहित्य संसार ,कीर्तिशेष चंद्रकिरण राठी के साहित्यिक सहयोग को कभी भुला नहीं पायेगा । जिस साहित्यकार ने अपनी पूरी ज़िंदगी पुस्तकों के प्रचार में बिता दी हो ,आइये उनके द्वारा रचित बेशक़ीमती किताबों से भी परिचित हो जाएँ ।
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