Wednesday, December 30, 2020

हंगेरियन कविता - Emberke का हिन्दी अनुवाद

 

                                                         Kaffka Margit ( 1880 - 1918 )

                                                           

Emberke - छुटका पहलवान


( मुझ पर खुलता दरवाज़ा )


माँ , यहाँ हो तुम ? आदतन  दबे पावँ  चली आई हो 

तुम्हारे बेटे का अभिवादन कौन करेगा ? भूल गई हो 

अँधेरे में  चमकती आँखें ? अग्निष्ठिका के पास, देखूँ उधर 

मिल गयी , उल्लू हो तुम , जलती तुम्हारी हथेलियाँ इधर 

लग जाऊँ गले ? कोई प्रेम से पूछे तो सिर्फ़ गूंगे जवाब नहीं देते 

-तुम्हीं ने कहा था कि उल्लू की आँखें अँधेरे में चमकती हैं

इसीलिए नाराज़ हो क्या ? आख़िर कब बोलोगी प्यारी माँ

देखो! मैंने पूरी कॉफ़ी पी डाली , चाहो तो पूछ लो बाई से 

नहाते वक़्त रोया भी नहीं ,  सब बटन भी लगाएँ हैं ठीक से 

गले से "क " का उच्चारण भी सीख गया ," क " से कुत्ता, कॉफ़ी

ठीक हैं न , क्योंकि मैं हूँ  तुम्हारा इकलौता समझदार बेटा

स्नोवाइट की तस्वीर बनाई , पर इसके पैर ताबूत में पसरते नहीं 

बड़े हो कर तुम्हारी तरह बनाऊँगा अक्षर , और तुम्हारी तरह 

मिलेंगे मुझे भी बहुत पैसे , और  तब रोज़ लाऊँगा मैं

कार , तलवार और पासा ,लेकिन तुम्हारे लिए यह सब नहीं, बल्कि 

लाऊँगा केक ,किताब और दस्ताने , जैसे स्नोवाइट के लिए लायें  बौने 

और घोड़ा औ बन्दूक अपने लिए , तुम आज कुछ नहीं लाई मेरे लिए ?

सिर्फ़ मज़ाक में पूछता हूँ , नहीं लाई फ़िर भी तुमसे प्रेम करता हूँ 

सिर्फ़ गंदे बच्चें माँगतें हैं हर रोज़ कुछ न कुछ 

आज वो बर्फ़ वाली कविता सुनाओ , बर्फ़ गुलगुलो का आँचल 

क्या हुआ हैं माँ तुम्हें ? फ़िर पहले की तरह   उदास हो तुम ?

तुम्हें किसी ने दुखी किया है क्या ? मैं डंडे से मारूँगा उसे 

जानती हो, पिछले साल मेरी लाल गेंद भी   छीन ली थी 

उस गुंडे ने सड़क पर , लेकिन तब मैं सिर्फ़ एक छोकरा था 

पर अब गुरुगुंटाल हूँ  मैं , ठोकूँगा ख़ूब उसे गर मिल गया तो 

माँ , तुम्हें चूमा नहीं अभी तक ,उदास मत हो ,अपना मुखड़ा  दो 

इधर झुको .. नहीं झुक सकती, जानती हो, महाआलसी हो तुम 

ठीक है , कुर्सी पर चढ़ कर आता हूँ , आह.. बहुत भारी है कुर्सी 

 यहाँ ..  दुखता है माथा ?अभी भगाता हूँ दर्द ,चूमता  हूँ उधर ही 

पुच्च  ..एक बार और , तीन बार.. और एक बोनस 

देखो ! अब तुम बिलकुल ठीक हो गयी हो 

ठीक है न मेरी प्यारी माँ , मुश्किल काम था 

पर कोई बात नहीं 

लेकिन अब तो तुम मेरे साथ खेलो माँ !



कवियत्री - Kaffka Margit 

जन्म -   10th June ' 1880 , Nagykároly

निधन - 1s December ' 1918 , Budapest 


अनुवादक - इन्दुकांत आंगिरस 

  

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