फिर छिड़ी रात बात फूलों की
रात है या बरात फूलों की
फूल के हार फूल के गजरे
शाम फूलों की रात फूलों की
मख़दूम मोहिउद्दीन के उपरोक्त अशआर में फूलों में ढ़लते मिसरों से यह क़ायनात भी खिल उठेगी। फूलों का ज़िक्र छिड़ जाये तो हर दर्द मुस्कराने लगता है। उर्दू शाइरी में फूलों पर हज़ारों शे'र मिल जायेंगे। हर फूल की रंगत अलग होती है और उसकी ख़ुश्बू भी और हर फूल आशिक़ों के दिल की तरह हज़ार रस्ते रखता है। कोई अपने महबूब को फूलों का नज़राना पेश करता है तो किसी का महबूब ही फूल की मानिंद होता है। अक्सर किसी पुरानी किताब के पन्नों में कोई सूखा हुआ फूल या फूल की पंखुड़ी मिल जाए तो दिल में एक हूक-सी उठती है , किसी की मुहब्बत की दास्ताँ ताज़ा हो जाती है। सूखे हुए फूलों में नमी छाने लगती है और अहमद फ़राज़ का यह शे'र ज़हन में उभर जाता है -
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिले
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले
हमारे देश में प्रेमी द्वारा प्रेमिका को फूलों का तोहफ़ा देने का प्रचलन इतना अधिक नहीं लेकिन विदेशों में इसका प्रचलन बहुत है। अपने बुदापैश्त के प्रवास के दौरान इसका अनुभव किया , वहाँ प्रेमी द्वारा प्रेमिका को दिया जाने वाला फूलों का तोहफ़ा ही सबसे अधिक क़ीमती होता है। इसी सिलसिले में शकेब जलाली का यह शे'र देखें -
आज भी शायद कोई फूलों का तोहफ़ा भेज दे
तितलियाँ मंडरा रही हैं काँच के गुल -दान पर
अनेक शाइरों ने औरत की ख़बसूरती को बयाँ करने के लिए फूलों का ही सहारा लिया। मीर तक़ी मीर का यह ख़ूबसूरत शे'र देखे -
नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिये
पंखुरी इक गुलाब की सी है
भारतीय संस्कृति में भी फूलों की बहुत महत्ता है और अनेक अवसरों पर फूलों का प्रयोग किया जाता है। जीवन और मरण , ख़ुशी और ग़म ,मंदिर हो या मस्जिद लगभग हर अवसर एवं जगह पर फूलों की ज़रूरत पड़ती है। किस भी व्यक्ति का सम्मान भी फूलों से ही किया जाता है , विशेषरूप से राज नेताओं का सम्मान। इसलिए हम कह सकते हैं कि राजनीति भी फूलों से अछूती नहीं लेकिन फूलों के इन सम्मानों के पीछे भी एक राजनीति छुपी होती हैं। फूलों की सियासत के बारे में शकील बदायुनी का यह शे'र देखें -
काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन बचा कर
फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ
रोज़ करोड़ों फूल अपनी अपनी डालियों से टूटकर इधर-उधर बिखर जाते हैं। कोई फूल देवता पर चढ़ाया जाता हैं तो कोई किसी की मज़ार पर लेकिन फूलों से उनकी अभिलाषा के बारे में कोई नहीं पूछता। लेकिन जब प्रसिद्द साहित्यकार माखन लाल चतुर्वेदी ने फूलों से उनकी अभिलाषा पूछी तो जवाब कुछ यूँ आया -
चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊं
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध, प्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरी डाला जाऊँ
चाह नहीं देवों के सर पर चढ़ भाग्य पर इतराऊं
मुझे तोड़ लेना बनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढाने जिस पथ जाये वीर अनेक
जब तक ये दुनिया रहेगी फूलों के सिलसिले कभी खत्म न होंगे।फूल अपने रंगों और ख़ुश्बू से इस दुनिया को हमेशा सजाते संवारते रहेंगे।जब तक यह दुनिया रहेगी फूलों का खिलना भी बंद न होगा ,बक़ौल मख़दूम मोहिउद्दीन -
फूल खिलते रहेंगे दुनिया में
रोज़ निकलेगी बात फूलों की
बहुत बढ़िया इंदु कांत जी।फूलों की महत्ता को बहुत अच्छे से बयां किया, विशेषकर कवि माखन लाल चतुर्वेदी की कविता को बयां कर।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है इंदुकांत जी ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है इंदुकांत जी ।
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