असर ये तेरे अन्फास -ए मसीहाई का हैं "अकबर "
इलाहाबाद से लंगड़ा चला लाहौर तक पहुँचा
अकबर इलाहाबादी के उपरोक्त शे'र में एक लंगड़े आम के सफ़र का ज़िक्र है। यूँ तो बहुत से फल हम रोज़ खाते हैं लेकिन आम को फलों का राजा कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी। भारत में आमों की बहुत-सी किस्मे पाई जाती हैं जिनमे पहाड़ी ,रूमानी ,बादामी ,चौसा अल्फोंजा,लंगड़ा और दशहरी आमों की किस्मे विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं।
मिर्ज़ा ग़ालिब को भी आम बहुत प्रिय थे। एक बार मिर्ज़ा ग़ालिब अपने चंद दोस्तों के साथ बैठ कर आमों का लुत्फ़ उठा रहे थे, तभी उस गली में एक गधा आ गया। उस गधे ने एक आम के छिलके को सूँघा और आगे बढ़ गया। यह देख कर मिर्ज़ा ग़ालिब के एक दोस्त ने उनसे फ़रमाया -
"देखिये मिर्ज़ा , आम तो गधें भी नहीं खाते "।
मिर्ज़ा ग़ालिब का हाज़िर जवाबी में जवाब नहीं था , उन्होंने फ़ौरन जुमला कसा -
" जी हाँ , गधें ही आम नहीं खाते"। उनके इस जवाब पर दोस्तों ने ज़ोरदार ठहाके लगाए।
आमों को लेकर चंद मशहूर मुहावरे भी देखें -
आम के आम ,गुठलियों के दाम
आम खायें , गुठलियों को न देखें
आम का आचार और आम पापड़ किसने नहीं खाया होगा। आम के ज़रीये औरत की जिन्सी खूबसूरती को ब्यान करा जाता रहा है। बक़ौल सागर ख़य्यामी -
आम तेरी ये ख़ुशनसीबी है
वार्ना लंगड़ों पे कौन मरता है
Good historical story ..
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