Friday, September 18, 2020

ई -पत्रिकाओं का संसार - " राष्ट्रीय चेतना " ई -पत्रिका

 

आज से कुछ वर्षों पहले तक किसी ने कल्पना नहीं की थी कि एक दिन एक  क्लिक पर हमें ई -पत्रिकाएं और ई-पुस्तकें पढ़ने के लिए उपलब्ध हो जाएँगी।  टेक्नोलॉजी के विस्तार के साथ ही यह संभव हो पाया है कि आज हम न केवल भारत में प्रकाशित अपितु विश्व के किसी भी कोने  से प्रकाशित  ई -पत्रिकाएं और ई-पुस्तकें घर बैठे पढ़ सकते हैं। आज सम्पूर्ण विश्व में कोरोना के चलते इन पत्रिकाओं  की महत्ता और भी बढ़ गयी है। ई -पत्रिकाएं और ई-पुस्तकों के बढ़ते प्रचलन का  एक कारण  यह भी है कि प्रिंट पत्रिका की तुलना में ई -पत्रिकाएं और ई-पुस्तकों  के प्रकाशन में कम खर्च होता है , दूसरे इलेट्रॉनिक रूप से इनका संग्रह पाठक को कभी भी उपलब्ध हो सकता है। 

पिछले दिनों ( ६ सितम्बर '२०२० ) बैंगलोर में " राष्ट्रीय चेतना "  ई -पत्रिका  का वर्चुअल लोकार्पण प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ इस्पाक अली के कर कमलों द्वारा संपन्न हुआ। इस अवसर पर विशिष्ट  अतिथि , डॉ अरुण कुमार गुप्ता ने अपने वक्तव्य में समाज एवं राष्ट्र के उत्थान के लिए  शिक्षकों के महत्वपूर्ण योगदान की सराहना करी।  डॉ मैथिली पी. राव ने शोध पत्रिकाओं के आंकड़ों का ज़िक्र करते हुए बताया कि भारत में विदेशों की तुलना में बहुत कम शोध पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं। इस अवसर पर,  डॉ देवकीनंदन शर्मा , डॉ टी जी प्रभाशंकर 'प्रेमी',डॉ विमला एवं डॉ मृदुला चौहान को " राष्ट्रीय चेतना शिक्षक सम्मान २०२० " से सम्मानित किया गया। 

साहित्य , कला और संस्कृति को समर्पित राष्ट्रीय चेतना ई -पत्रिका के प्रबंध  सम्पादक डॉ अरविन्द कुमार गुप्ता ने पत्रिका के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए यह विश्वास दिलाया कि राष्ट्रीय चेतना ई -पत्रिका में प्रकाशित सामग्री स्तरयी होगी। इस अवसर पर एक काव्य संध्या का भी आयोजन किया गया जिसमे सर्वश्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ , निरुपम निरंजन , कृष्ण कुमार शर्मा , इन्दुकांत आंगिरस एवं डॉ मंजू गुप्ता के नाम उल्लेखनयी हैं। 


हिन्दीतर  प्रदेश बैंगलोर से प्रकाशित  " राष्ट्रीय चेतना "  ई -पत्रिका का प्रयास यक़ीनन प्रशंसनीय है पर सवाल यह उठता है कि जब पहले से ही बहुत सारी ई -पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है तो फिर एक और क्यों ? वास्तव में शोध पत्रिकाएं इसीलिए होती है कि हम सहित्य का गहन अध्ययन कर सके और उसके ज़रीये ख़ुद को और इस दुनिया को और ख़ूबसूरत बना सके।  वैसे भी इल्म बाँटने से बढ़ता है और बढ़ते बढ़ते इतना विशाल हो जाता है कि एक शून्य में सिमट कर रह जाता है। बक़ौल फ़िरदौस गयावी -


इल्म की इब्तिदा है हंगामा 

इल्म की इंतिहा है ख़ामोशी


मुझे यक़ीन है कि  राष्ट्रीय चेतना के हंगामें , ख़ामोशी में नहीं सिमटेंगे और इसके  अदब का दीपक इस दुनिया के अँधेरों को मिटाने में ज़रूर कामयाब होगा। अदब के इस सफ़र पर आगे बढ़ते हुए जब कभी भी  क़दम डगमगाए तो जगन्नाथ आज़ाद का यह शे'र  ज़रूर पढ़ें -


इब्तिदा ये थी कि मैं था और दा'वा इल्म का 

इंतिहा ये है कि इस दा'वे पे  शरमाए  बहुत    




NOTE :  राष्ट्रीय चेतना "  ई -पत्रिका  का  लिंक - http://www.rashtriyachetna.com/




2 comments:

  1. वाकई मे e book आने से बहुत ही सुविधा हो गई है । मगर इसका लाभ गाँव तक नही पहुँच रहा है इसके कारण है बिजली और इनटरनेट । जिस दिन यह सुविधा भारत के हर गाँव मे पहुँच जाएगी । उस दिन ebook का महत्व काफी बढ जाएगा और उपयोगी हो जाएगा ।
    राही राज

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