Saturday, September 19, 2020

इश्क़ के सात मक़ाम और इंसान

 

आदम को बनाकर ख़ुदा ऐसी ग़लती कर बैठा जिसका सुधार वो आज तक नहीं  कर पाया , ऊपर से इश्क़ की बीमारी।  इंसान पूरी ज़िंदगी अपनी दो भूख मिटाने में लगा देता है - एक पेट की आग और दूसरी इश्क़ की आग उसे कभी चैन से नहीं बैठने देती। फिल्म डेढ़ इश्क़िया में इश्क़ के सात मक़ाम का ज़िक्र कुछ यूँ हुआ है -

दिलकशी 

उन्स 

मोहब्बत 

अक़ीदत 

इबादत 

जुनून

मौत 


उर्दू शाइरी में आपको इश्क़ पर हज़ारों शे'र मिल जाएँगे , हक़ीक़त  में अगर दुनिया में इश्क़ नहीं होता तो कुछ शाइर कभी शाइर नहीं बन पाते।  अगर इश्क़ नहीं होता तो ये दुनिया कभी की  रसातल में चली जाती। हमारी  दुनिया में इश्क़ है और अच्छी मितदार में है तभी तो कोरोना के चलते भी ये दुनिया अभी मिटी नहीं और मिटेगी भी नहीं। इश्क़ में इंसान दीवाना हो जाता है ,उसकी अक़्ल काम करना बंद कर देती है ,तभी तो अकबर इलाहाबादी ने कहा -

इश्क़  नाज़ुक    मिज़ाज है बेहद 

अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता


इश्क़ में सिर्फ़ अक़्ल ही  काम करना बंद नहीं करती बल्कि हाथ - पाँव भी काम करना बंद कर देते हैं और आदमी निकम्मा बन जाता है , बक़ौल मिर्ज़ा ग़ालिब -


इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया 

वर्ना   हम भी आदमी   थे  काम के 


लेकिन इश्क़ करना भी सब के बस की बात नहीं , इश्क़ फ़रमाने के लिए एक आशिक़ का जिगर चाहिए। इश्क़ की राह बहुत पुरख़तर होती है। कैसी कैसी मुश्किलों से गुज़रना पड़ता है , बक़ौल जिगर मुरादाबादी -


ये इश्क़ नहीं आसाँ   इतना ही समझ लीजे

इक आग का दरिया है और डूब के जाना है 


और इस आग के दरिया  को पार करने के लिए किस फ़ौलादी सीने की नहीं बल्कि प्रेम में डूबे एक मासूम  दिल की ज़रूरत होती है जो आजकल ढूंडने से भी नहीं मिलता। सच्चा प्रेम ही इंसान को मजबूत बनाता है और उसे इस बेशरम दुनिया से लड़ने की ताकत देता है। 

कमजोर दिल वाले कभी मोहब्बत नहीं कर सकते , बक़ौल मीर तक़ी मीर -


इश्क़ इक 'मीर ' भारी   पत्थर है 

कब ये तुझ ना- तवाँ से उठता है 



अगर आपने अभी तक इश्क़ नहीं किया है तो ज़रूर करें  और अगर आपका दिल कमजोर है तो भी इश्क़ करें क्योंकि इश्क़ करने से ही दिल मजबूत बनेगा और इस बेशरम दुनिया से आप लड़ पाएँगे । 





2 comments:

  1. शिद्दते-ज़ौफ़ ने हालत ये बनाई मेरी
    नब्ज चलती है तो दुखती है कलाई मेरी

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