Wednesday, September 2, 2020

श्री बी एम डी अग्रवाल और उनकी NIPA

     

    एक बाजू उखड़ गया जब से 

    और ज़्यादा वज़न   उठता हूँ 


जी हाँ , श्री  बी एम डी अग्रवाल को देख कर , दुष्यंत  कुमार का उपरोक्त शे'र ज़ेहन  में ताज़ा हो गया था।  कुछ देर को हतप्रभ-सा खड़ा रहा लेकिन फिर यक़ीन करना ही पड़ा कि जो शख़्स मुझसे इतनी गर्मजोशी से अपना दाहिना  हाथ मिला रहा है उसका बायाँ  हाथ आधा कटा हुआ है।  बी एम डी अग्रवाल पेशे से वकील थे लेकिन एक सहृदय कवि व नाटकों में विशेष दिलचस्पी रखते थे। मेरी उनसे पहली मुलाक़ात गुलमोहर पार्क,दिल्ली में स्थित उनके दफ़्तर में ही हुई थी।  नीचे गैराज में उन्होंने अपनी वकालत का दफ़्तर खोल रखा था और उसी ब्लॉक में ऊपर उनका घर था। पहली ही मुलाक़ात में उन्होंने अपनी चंद कवितायें मुझे सुनाई।  

आप ने NIPA ( National Institute of Performing Arts ) नाम से एक संस्था खोल रखी थी जिसके तहत  हर वर्ष १४ नवंबर से १९ नवंबर तक इंटरनेशनल चिल्ड्रन थिएटर फ़ेस्टिवल का आयोजन करते थे , जिसमे भारत के दूसरे प्रांतो के थिएटर ग्रुप के साथ  साथ विदेशों से पधारे थिएटर ग्रुप भी अपनी कला का प्रदर्शन करते थे।इस उत्सव की तारीख़ १४ नवंबर से १९ नवंबरऔर स्थान कमानी ऑडोटोरियम में कभी बदलाव नहीं आता था।    जब मैंने उनसे पूछा कि यह उत्सव नवंबर महीने की इन्ही तारीखों में क्यों आयोजित किया जाता है तो उन्होंने मुझसे कहा कि १४ नवंबर पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म दिन है और १९ नवंबर श्रीमती इंदिरा गाँधी का जन्म दिन है , सो बाप से बेटी तक का सफ़र।  

जब उन्हें पता चला कि मैंअँगरेज़ी अखबार स्टेट्समैन में  काम करता हूँ और दूसरे अख़बारों में भी मेरी जान पहचान है तो उन्होंने मुझसे इसरार किया कि मैं NIPA  द्वारा आयोजित इंटरनेशनल चिल्ड्रन थिएटर फ़ेस्टिवल  की कवरेज कर दूँ जिसके लिए मैंने सहर्ष हामी भर दी क्योंकि उन दिनों दिल्ली के लगभग सब अख़बारों से , मैं किसी न किसी रूप में जुड़ा हुआ था और मेरे लिए यह कोई कठिन कार्य नहीं था। 

दिल्ली में रहने तक मैंने कुछ सालों तक उनके इस कार्य को किया लेकिन बैंगलोर आने के  बाद यह सिलसिला टूट गया।  उनके द्वारा आयोजित कार्यक्रमों की जानकारी मुझे ई-मेल   द्वारा मिलती रही।  एक दिन उन्होंने ई-मेल द्वारा ही मुझे सूचित किया कि उनकी पत्नी का देहावसान हो गया है और अब आप दिल्ली छोड़ कर बनारस में रहने लगे है।  उन्होंने NIPA के बैनर पर बनारस में भी कुछ कार्यक्रम आयोजित किये। ६ नवंबर  २०१५ को मेरे पास उनकी आखिरी ई-मेल  आयी थी जिसमे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के वार्षिक समारोह के अवसर पर NIPA द्वारा आयोजित इंटरनेशनल चिल्ड्रन थिएटर फ़ेस्टिवल का निमंत्रण पत्र संलग्न था। 

पिछले पाँच वर्षों में उनकी कोई ई-मेल नहीं आयी तो मुझे चिंता हुई और मैंने उन्हें फ़ोन लगा दिया , फ़ोन की घंटी बजी और  एक टूटी-फूटी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी,  जो थी तो  बी एम डी अग्रवाल साहब की ही  लेकिन वक़्त के थपेड़ों ने उसे बिलकुल जर्जर बना दिया था। जब मैंने उनसे कुशल-क्षेम पूछी तो जवाब आया - " बस वक़्त कट रहा हैं "  बातचीत से मालूम हुआ कि बनारस वाला उत्सव आखिरी उत्सव था।सुनकर दुःख हुआ कि जो शख़्स एक बाजू होते हुए भी ज़्यादा वज़न उठाता था,आज वक़्त के हाथों कट रहा है। आज NIPA को लोग भूल गए हैं और भूल गए हैं बी एम डी अग्रवाल को और  दुनिया अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ रही है। 

मुझे राजगोपाल सिंह का यह शे'र फ़िर याद आ गया-

चढ़ते सूरज को लोग जल देंगे

जब ढलेगा तो मुड़ के चल देंगे  




प्रकाशित पुस्तकें -

लम्हें  -  कविता संग्रह 

Down Memory Lane - Memoirs 






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