कीर्तिशेष प्रेमचंद कोठारी " आनंद " , बैंगलोर के साहित्य साधक मंच की महाना काव्य गोष्ठियों में निरंतर शिरकत फ़रमाते थे। उनसे मेरी पहली मुलाक़ात इसी पटल पर हुई थी। लगभग पाँच फुट दो इंच का क़द , गौर वर्ण , पके हुए बाल ,गले में कमानीवाला चश्मा और कुर्ते की जेब में चमचमाता एक क़लम । प्रेमचंद कोठारी बहुत ही विनम्र , सौम्य , शांत , ख़ुशदिल और ज़िंदादिल इंसान थे। काव्य गोष्ठियों में अक्सर अपने सुरीले स्वर में फ़िल्मी धुनों की तर्ज पर आधारित आध्यात्मिक गीतों की प्रस्तुति करते थे।
लेकिन बाद में इनका रुझान क्षणिकाओं और हाइकू विधा की तरफ़ हो गया। उनके अपने शब्दों में - " काव्य की चर्चा लम्बी नहीं होती। एक ही वाक्य में उसकी समाप्ति हो जाती है। अतः सदा से मेरा ध्यान संक्षेप की ओर रहा है। बात संक्षेप में हो ओर मीठी भी हो। कहते है ( Short and Sweet ) , रचना में कटुता न हो लेकिन प्रचलित सामाजिक ,आध्यात्मिक , राजनैतिक एवं पारिवारिक कुरीतियों एवं बुराइयों पर प्रहार करते समय मैं उग्र भी बन जाता हूँ , यही मेरी कमजोरी है किन्तु कड़वी दवा से ही निदान संभव है। "
वास्तव में प्रेमचंद कोठारी जिस कमजोरी की बात कर रहे हैं वो उनकी कमजोरी नहीं बल्कि ताकत है। अपनी रचनाओं द्वारा उन्होंने सामजिक कुरीतियों को मिटाने का भरसक प्रयास किया है। पेशे से तो आप साड़ियों के व्यापारी थे लेकिन तन-मन-धन से समाज सेवा में लगे रहते थे। मैं दो -तीन बार उनकी दुकान पर भी गया। एक बार उन्होंने मुझे भारतीय नारी पर एक अद्भुत गीत सुनाया जिसमे एक कन्या का जीवन ओर विवाह के बाद ससुराल में उसके जीवन चरित्र का अत्यंत मार्मिक वर्णन था , अफ़सोस कि उनकी किसी भी प्रकाशित पुस्तक में मुझे वो गीत नहीं मिला। मेरे विचार से वह गीत उनकी सर्वोत्तम कृति है। एक और दिलचस्प बात उनकी पुस्तकों के बारे में यह है कि उनकी किसी भी पुस्तक पर मूल्य के स्थान पर सहयोग राशि लिखा रहता है और सहयोग राशि के आगे लिखा होता है -जो भी दिल कहे।आप अक्सर साहित्यिक मित्रों को अपनी पुस्तकें मुफ़्त बाँटते थे।
प्रेमचंद कोठारी , जीवन भर प्रेम के अबूझे रहस्यों को सुलझाने में लगे रहे। प्रेम विषय पर उन्होंने सूत्र शैली में अनेक रचनाएँ कहीं। बानगी के तौर पर चंद सूत्र शैली में लिखी रचनाएँ देखें -
तू अगर तू होना चाहता है प्रेम
तो तू बीच से हट जा
तू किसे खोजने जा रहा है प्रेम
तूने मुझे खोया कहाँ है ?
प्रेम का दीवाना बन प्रेम
वो तेरा दीवाना बन जायेगा
यहाँ कोई मालिक नहीं है प्रेम
सारा संसार मन का ग़ुलाम है
जगत से प्रेम सम्बन्ध रख प्रेम
पर याद रख , प्रेम बंधन न बने
यहाँ आने जाने वाले सब पराये हैं प्रेम
इन्हें अपना मानने की भूल मत करना
उनकी रचनाओं में प्रेम के साथ साथ रहस्यवाद ओर दर्शन भी देखने को मिलता है। उनकी क्षणिकाएँ पाठक के मन पर गहरा असर छोड़ती है। जन्म ओर मृत्य के घेरों को तोड़ती उनकी रचनाएँ पाठक को एक दूसरे लोक में ले जाती हैं जहाँ सबका सब कुछ है ओर किसी का कुछ भी नहीं।
जीवन ओर मृत्यु पर उनकी यह क्षणिका देखें -
यह साँसों का सफ़र
रुक जायेगा
चलते चलते
जैसे बुझ जाता है
दीपक
जलते जलते
ऐसे ही एक दिन अदब का यह दीपक भी बुझ गया लेकिन मुझे विश्वास है उनके साहित्य के प्रकाश से इस दुनिया के अँधेरे में कुछ तो कमी आयी होगी।
प्रकाशित पुस्तकें -
कुछ कुछ में सब कुछ - ११ लघु कृतियाँ
प्रेम से प्रेम की बातें - सूत्र शैली में रचित कविताएँ
हाइकू ख़ज़ाना - हाइकू विधा में रचित कविताएँ
जन्म - १२ फ़रवरी ' १९४१ , जालसू कलां -नागौर
निधन - १६ जनवरी ' २०२० , बैंगलोर
NOTE : सहयोग के लिए उनके पुत्र श्री विनोद का शुक्रिया ।
पढ़कर कोठारी जी की स्मृतियां ताजा हो गईं । सचमुच कोठारी जी का व्यक्तित्व जीवटता का अद्भुत उदाहरण था । वे अदम्य प्रेरणा के प्रतिमूर्ति थे । साहित्य साधक मंच के प्रति उनके स्नेहाशीष की अभिव्यक्ति शब्दों से परे है । मंच उनके प्रेम और सानिध्य का सदा ऋणी रहेगा । बंगलौर का साहित्य जगत उन्हें कभी भूला नहीं पायेगा ।
ReplyDeleteबेहद सौम्य व्यक्तित्व अब किसी के आंगन में खुशियां बिखेर रहा होगा,
ReplyDeleteप्रेमचंद कोठारी जी के काम यानी कृतित्व और व्यक्तित्व पर आपने संक्षेप में अच्छा प्रकाश डाला है। जैन धर्म से जुड़े होने के कारण उनका पूरा स्वभाव सादगी से पूर्ण और अहंकारमुक्त था। उनके व्यवहार में ऐसा बहुत कुछ था जो मुझे आकर्षित करता रहा। उन्होंने अपना जीवन भरपूर जिया
ReplyDeleteऔर मैं उनके स्मरण को नमन करता हूँ क्योंकि ऐसे लोग भी ताजमहल हैं जिन्हें किसी शाहजहाँ ने नहीं बनवाया और वैसे साजो-सामान जिन्होंने चिंता भी न की।