Tuesday, September 8, 2020

कीर्तिशेष उर्मिल सत्यभूषण - मैं धरा पर प्यार के कुछ बीज बोना चाहती हूँ



बैसाखियों को छोड़ कर चलने की ठान ली 

इस फ़ैसले में   हौसला मेरी   अना  का था 

पत्थर के शहर में भी   मैं पत्थर  न हो सकी 

शायद कमाल यह मेरी कविता कला का था 


जी हाँ , शायद  यह उर्मिल सत्यभूषण की कविता की ऊष्मा ही थी जिसके रहते वो एक बर्फ़ की नदी को मुस्कुराते हुए पार कर गयी। जब मेरी उनसे पहली मुलाक़ात हुई तो उनकी बैठक में दीवार पर टँगी उनके पति स्वर्गीय सत्यभूषण की तस्वीर ने मुझे समझा दिया कि उर्मिल जी एक विधवा है।  उनकी तीनो संताने , कनुप्रिया , नवनीत और वेणु उस समय बहुत छोटे थे। पहली ही मुलाक़ात में हम अच्छे साहित्यिक मित्र बन गए थे। उसके बाद तो उनके साथ मुलाक़ातों का एक अनवरत सिलसिला चलता रहा।  जब मैंने और शिवन लाल  जलाली ने मिलकर परिचय साहित्य परिषद् ( दिल्ली की एक स्थापित साहित्यिक संस्था ) स्थापना करी तो उर्मिल सत्यभूषण उसकी अध्यक्ष बनी और इस पद का निर्वाह उन्होंने अपने जीवन के अंतिम चरण तक किया।  उर्मिल जी सरकारी स्कूल में अध्यापिका थी और एक जुझारू महिला थी। लेखन तो उनके रगों  में बहता था , मैं जब  कभी उनके घर जाता तो अक्सर उनको कुछ न कुछ लिखते हुए पाता। उनसे कई बार अंतरंग बाते भी होती थी लेकिन अपनी  पीड़ा को हमेशा अपने सीने में छुपाये रखती थी। जिन्होंने उनकी आत्मकथा " हमारे पत्र पढ़ना " पढ़ी हो , वो लोग समझ सकते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में कितने दुःख झेले होंगे , लेकिन दुखों के पहाड़ टूटने के बावजूद उर्मिल सत्यभूषण नहीं टूटी , उन्होंने अपनी क़लम को ही अपना जीवन साथी बना लिया।  

जनाब बाल स्वरूप राही का एक शे'र याद आ रहा है -

हम पर दुःख के पर्वत टूटे तो हमने दो चार कहे 

उस पर क्या गुज़री होगी जिसने शे'र हज़ार कहे 


उर्मिल सत्यभूषण ने लगभग साहित्य की हर विधा में रचनाएँ लिखी - कविता , कहानी , नाटक , बाल साहित्य , ग़ज़ल ,लघु कथा , गीत आदि वक़्त के साथ साथ उनका लेखन भी बढ़ता रहा , लेखन के साथ साथ आपका चित्रकारी में भी दखल था।  उनकी कई पुस्तकों में उनके बनाये स्केचेस देखे जा सकते हैं।  एक महिला होने के कारण महिलाओं की समस्याओं को उन्होंने बहुत गहराई से महसूस किया और उनकी पीड़ा को अपनी कृतियों में उतारा। स्त्री विमर्श पर उन्होंने ख़ूब लिखा।  उनकी रचनाएँ देश की साहित्यिक एवं प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशित होती रहती थी।  आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी उन्होंने कई बार अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करी। दिल्ली की कई प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थाओं से उनका जुड़ाव रहा जिनमे परिचय साहित्य परिषद् , अखिल भारतीय लेखिका संघ , ऋचा ,  हल्क़ा-ए-तश्‍नगाने अदब और महिला संगम   के नाम उल्लेखनीय हैं।  

२००६ में ,  जब मैं नौकरी के सिलसिले में बैंगलोर आ गया तो उर्मिल जी से मुलाक़ाते कम हो गयी। लेकिन कुछ  ऐसा संयोग बना कि उनसे बैंगलोर में भी कई मुलाक़ाते हुई।  उनके सुपुत्र श्री नवनीत , बैंगलोर  में ही रहते है और उर्मिल जी अपने दिल के इलाज के सिलसिले में अक्सर बैंगलोर आने जाने लगी। बैंगलोर के जयदेव इंस्टिट्यूट ऑफ़ हार्ट  में उनके दिल का इलाज हुआ और इस सिलसिले में उन्हें अस्पताल में  काफी वक़्त गुज़ारना पड़ा।  अपने अस्पताल के अनुभवों और दिल कि बीमारी के सम्बन्ध में उन्होंने अँगरेज़ी भाषा में  "In The Temple of My Heart  " पुस्तक की  रचना करी जिसका विमोचन जयदेव इंस्टिट्यूट ऑफ़ हार्ट  के निदेशक डॉ मंजुनाथ के कर कमलों द्वारा जयदेव इंस्टिट्यूट ऑफ़ हार्ट  के ऑडोटोरियम में ही संपन्न हुआ।  यह विमोचन अपने आप में अनूठा था जिसमे साहित्यकारों से ज़्यादा मेडिकल डॉक्टर्स उपस्थित थे। कुछ वर्ष पहले उन्होंने अपने बैंगलोर के निवास पर एक काव्य संध्या का आयोजन किया जिसमे शामिल कविगण ज्ञानचंद मर्मज्ञ , डॉ रणजीत ,  मंजू वेंकट , सुधा दीक्षित , केशव कर्ण,  इन्दुकान्त आंगिरस   के नाम उल्लेखनीय है।  उनके साथ पढ़ने का यही मेरा आखिरी अवसर था। ज़िंदगी से निरंतर लड़ने वाली इस लेखिका ने जीवन से कभी हार नहीं मानी। दिल कि बीमारी भी उनके कवि हृदय को मुरझा नहीं पाई , उन्ही का एक शे'र देखे -


तम से घबराओं न 'उर्मिल' अब सहर आने को है 

भोर   का सूरज अँधेरों  को   निगलता    जाएगा 


उर्मिल सत्यभूषण एक बहुत ही सहज ,सरल , सहृदय , ख़ुशदिल और ज़िंदादिल इंसान थी। किसे मालूम था  समाज की पीड़ा को अपनी रचनाओं में उकेरने वाली लेखिका एक दिन सबको छोड़ कर चली जायेगी। दिसंबर २०१९ में , मैं किसी सिलसिले में दिल्ली में ही था , उनसे मिलने का मन भी था लेकिन किसी कारणवश संभव नहीं हो पाया। जनवरी के पहले हफ़्ते में बैंगलोर लौट आया और कुछ दिनों के बाद ही उनके निधन की सूचना मिली। आख़िरकार धरती पर प्यार के बीज बोने वाली साहित्य की इस मालिन को गहरी नींद आ ही  गयी, 

उनके ये शे'र देखें -

मैं धरा पर प्यार के कुछ बीज बोना चाहती हूँ 

शूल जैसी   ज़िंदगी    में फूल होना चाहती हूँ 

मैं तुम्हारे साथ मिल कर इस धरा को लूँ सजा 

बाद इसके  ही मैं गहरी नींद सोना चाहती हूँ 


उर्मिल सत्यभूषण की प्रकाशित पुस्तकें -

काव्यसंग्रह - कस्तूरी गंध , जागो मानसी , दर्द के दरीचे , तुम्हारे नाम , लम्हों की ख़ुश्बू

कथा संग्रह - अब और नहीं , मिट्टी की टीस, मैं छू   लूँगी  आकाश 

बाल कविता - रौशनी की नीवं - भाग -१,२,३,४ 

एकांकी - इतिहास नया लिख जाऊँगी

बाल नाटक - आओ , सुनें तारों की बातें 

अंग्रेजी की पुस्तकें - Gull & Doll , In the Temple of My Heart , Massiha of Humanit


जन्म - बीसवीं शताब्दी के चौथे दशक में गुरदासपुर ( पंजाब )

निधन - १२ जनवरी '  २०२०, दिल्ली 



NOTE: उनकी सुपुत्री कनुप्रिया और जनाब सीमाब सुल्तानपुरी का उनके सहयोग के लिए शुक्रिया। 

कीर्तिशेष उर्मिल सत्यभूषण को श्रद्धांजलि देते  हुए दूरदर्शन,दिल्ली द्वारा एक रिकॉर्डिंग प्रस्तुत की गयी जो अब यूट्यूब पर भी उपलब्ध है - 

https://youtu.be/oGVBn3lLJbQ



4 comments:

  1. दिसंबर का महीना था काफी ठंड पड़ रही थी , मै हर संभव प्रयासरत था उनसे मिलने के लिए और भगवती की कृपा से मेरी मुलाकात भी उनसे मुलाकात हो गई । मैने जब उनको अपनी कविता सुनाया तो हमे आशीर्वाद दी । उन्हें देखकर लगा जैसे मै अपनी माँ से मिल रहा हूँ । उनके द्वारा प्रेम गजब का था । इससे पहले कभी मिला नही मगर जो स्नेह उन्होंने दी वो सगी मां से कम नही थी ।
    दो घंटे की बातचीत मे सारा जहाँ समेटे था
    वो राही ही था जो बंगलोर से मिलने गया था ।
    राही राज

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  2. उनके निधन से कुछ दिन पूर्व उनका फोन आया था वो मिलना चाहती थी बहुत कुछ मन की कहती थी।हम बनारस प्रवास पर थे इस कारण मिलना संभव न हो सका और उनके निधन की सूचना मिली मन द्रवित हो गया आज भी कानों में उनकी आवाज़ गूंज रही है।उन्हें विनम्र नमन।

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  3. ये मेरा सौभाग्य रहा की बंगलौर में मुझे उनके साथ कैच वक्त गुजारने के सुअवसर प्राप्त हुआ।स्नेहिल ह्रदय व हिम्मत वाली आदरणीय उर्मिल जी से अंतिम वार्तालाप जनवरी 2020 को उनके स्वर्गवास से पूर्व हुआ।आज भी उनकी आवाज़ कानो में गूंजती है।बहुत प्रेरणा मिलती थी उनसे।

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  4. मार्च 1988 में जब मैंने और इन्दुकांत जी ने संयुक्तरूप से परिचय साहित्य परिषद की स्थापना की तब हमने श्रीमती उर्मिल सत्यभूषण के समक्ष परिषद का अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव रखा तो उन्होने बड़े सरल स्वभाव से स्वीकार कर लिया था तब से उनके साथ साहित्य सफर में साथ चलने का सुअवसर निरंतर मिलता रहा। वे साहित्य के प्रति एक जुझारू और समर्पित महिला थी उन्होंने प,सा, परिषद को अपने गरिमामयी पद की छत्रछाया अंतिम क्षणो तक दी। परिषद का जब भी जिक्र होगा उनका नाम सर्वप्रथम लिया जाएगा। शिवनलाल जलाली।

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