हिन्दी दिवस फ़िर आ गया और फ़िर हर तरफ़ हिन्दी भाषा से सम्बंधित कार्यक्रम आयोजित होने लगें हैं। यह तो सर्वविदित है कि १४ सितम्बर भारत में हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है , लेकिन प्रश्न यह उठता है कि हमे हिन्दी दिवस मनाने की आवश्यकता ही क्यों पड़ती है ? भारत पर २०० वर्ष तक राज करने के बाद अँगरेज़ तो वापिस चले गए लेकिन अँगरेज़ी यही छोड़ गए। जब हिन्दी भाषा को राज भाषा का दरजा दिया गया तो भारत की दूसरी भाषाओं के प्रतिनिधियों ने इसका विरोध किया और फलस्वरूप अँगरेज़ी को भी राज भाषा का दरजा देना पड़ा। इसी लिए किस भी सरकारी दफ़्तर में सभी काग़ज़ात हिन्दी और अँगरेज़ी भाषा में लिखे जाते हैं , मतलब जिसको हिन्दी समझ में न आये वो अँगरेज़ी में पढ़ ले और जिसको अँगरेज़ी समझ में न आये वो हिन्दी में पढ़ ले।शायद इसीलिए आजकल अँगरेज़ी भाषा पहली कक्षा से ही पढाई जाती है और अनेक स्कूलों में तो स्थिति यह है कि हिन्दी भाषा अँगरेज़ी के माध्यम से सिखाई जाती है।
आज विश्व में हिन्दी तीसरे स्थान पर सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है लेकिन इसको अभी तक UNO से मान्यता नहीं मिली है। वास्तव में कोई भी भाषा या संस्कृति जब तक दूसरी भाषाओँ और संस्कृतियों के साथ आदान- प्रदान नहीं करती तब तक उसका विकास संभव नहीं। भाषा एक बहती हुई नदी की तरह होती है , अगर वह अपनी ऐंठ में राह में मिलते कंकरों को अपने साथ नहीं लेगी तो एक दिन सूख जायेगी।
हिन्दी भाषा में आज भी दूसरी भाषाओं के बहुत से शब्द हैं , जिन्हें हिन्दी से अब कोई चाह कर भी अलग नहीं कर सकता। हिन्दी के लिए यह एक शुभ संकेत है और इसीलिए हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार दिनोदिन बढ़ता जा रहा है।
हर भाषा में अपना एक अलग मिठास और रचाव होता है, उसकी तुलना दूसरी भाषा से नहीं करनी चाहिए। वास्तव में किसी भी भाषा को सीखने के लिए पहले उससे प्रेम करना पड़ता हैं।
भाषा के सम्बन्ध में मलिक मोहम्मद जायसी का यह दोहा देखें -
तुर्की , अरबी , हिंदवी भाषा जेती आहि
जा में मारग प्रेम का, सबै सराहैं ताहि
इसलिए भाषा से पहले प्रेम आ जाता है। हिन्दी सीखने का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि हम दूसरी भाषाओं से बैर रखे। भाषा का सम्प्रेषण होना ज़रूरी है , अगर सुनने वाले को अँगरेज़ी नहीं आती तो उसके सामने अँगरेज़ी बोलने से क्या लाभ। हमारा मुख्य उद्देश्य सम्प्रेषण होना चाहिए , इस सिलसिले में बूअली कलंदर का ये शे'र देखें -
मैं इसको दर हिन्दी ज़ुबाँ इस वास्ते कहने लगा
जो फ़ारसी समजे नहीं , समजे इसे ख़ुश होकर
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