Friday, July 31, 2020

एक दिन सब कुछ सुन्दर होगा - Egyszer majd szép lesz minden ( Hindi translation of Hungarian poem )




एक दिन सब कुछ सुन्दर होगा

यक़ीन मानो

शीत और पतझड़ ऋतु का डर

हमारे प्रेम को निर्वस्त्र करेगा


हम बाद में रौशनी में यूँ खड़े होंगे

जैसे कि खिलती लताएँ

गर्वित होकर ओढ़ेंगी ताज

बिना किसी से शर्माए


हमे डरना नहीं अँधेरे में

हमारी राहें रौशन हैं

हमारी गुज़री पीड़ाओं पर

पहरा देता सर्द चाँद है । 




कवि -  Kányádi Sándor


अनुवादक - इन्दुकांत आंगिरस 















Thursday, July 30, 2020

मेरा पता रह जायेगा.. राजगोपाल सिंह 'समर ' बिजनौरी

जहाँ तक मुझे याद पड़ता है बिजनौर के रहने वाले  राजगोपाल सिंह से मेरी पहली मुलाकात ग़ाज़ियाबाद में चौधरी सिनेमा हॉल के मेज़निन फ्लोर में आयोजित   'इंगित ' संस्था की काव्य गोष्ठी  में हुई थी।  उन दिनों वो ग़ाज़ियाबाद में ही रहते थे।  इस काव्य गोष्ठी में डॉ कुंवर बेचैन भी उपस्थित थे। राजगोपाल तब लोक गीत की धुनों पर मीठे तरन्नुम में अपने गीत सुनाया करते थे और  डॉ कुंवर बेचैन उनसे अपने गीतों की धुन बनाने की गुज़ारिश करते थे। 

बाद में राजगोपाल सिंह से दिल्ली में फिर मुलाकात हो गयी। सरकारी कॉलोनी आर के पुरम में रहते थे और यही उनकी मुलाकात उर्दू और फ़ारसी के उस्ताद शायर जनाब ब्रह्मानंद ' जलीस ' से हुई। राजगोपाल सिंह , जलीस साहब के शागिर्द बन गए थे और ग़ज़लें कहना शरू कर दिया था।  उनका पहला ग़ज़ल संग्रह   ' ज़र्द पत्तों का सफ़र ' इसी दौरान प्रकाशित हुआ था।  जलीस साहब ने उन्हें 'समर '  उपनाम दिया था। इसीलिए अब उनका नाम राजगोपाल सिंह 'समर ' बिजनौरी  हो गया था। दिल्ली की एक पुरानी उर्दू की संस्था ' हलका -ए-तिश्नगाने अदब ' की महाना नशिस्तों में आप अक्सर शिरकत फरमाते जहाँ उनका परिचय एक हिंदी कवि के रूप में दिया जाता और अक्सर मुशायरे का आगाज़ उनके क़लाम से किया जाता। बाद में इन नशिस्तों में उनकी हाज़री कम हो गयी थी।  दिल्ली के अलावा गुड़गांव ( गुरुग्राम ) और फ़रीदाबाद की बहुत-सी  साहित्यिक संस्थाएं उन्हें सादर आमंत्रित करती थी।  इन गोष्ठियों में , मैं अक्सर उनके साथ होता था।

उनकी ग़ज़लें और गीत सुनकर अक्सर श्रोताओं , विशेषरूप से महिलाओं के  आँसू निकल आते थे और इस   बात का मैं गवाह हूँ।  उन दिनों उनके पास मोपेड होती थी।  एक बार फ़रीदाबाद से देर रात दिल्ली के लिए  लौटते हुए एक छोटा-सा हादिसा गुज़रा।  रात के लगभद २ बजे का समय था और सुनसान सड़क पर राजगोपाल मोपेड चला रहे थे और मैं पीछे बैठा था।  वो अपने शे'र भी मुझे सुनाते जाते थे ,अचानक मोपेड के आगे एक बड़ा पत्थर आ गया और मैं उछल कर सड़क पर जा गिरा।  कुछ पलों के लिए आँखों के सामने अँधेरा छा गया।  राजगोपाल को भी हल्की-फुल्की छोटे आयी लेकिन बचाव हो गया।  

मेरी उनसे आख़िरी मुलाक़ात उनके नानकपुरा वाले घर में ही हुई थी।  मैं २००६ में बैंगलोर आ गया और इसी कारण दिल्ली के बहुत से साहित्यिक मित्रों से मिलना -जुलना लगभग बंद हो गया। ग़ज़ल के बाद उनका झुकाव दोहो की तरफ़ हो गया था और उन्होंने मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण अत्यंत सुन्दर दोहो की रचना करी ।  राजगोपाल एक ज़िंदादिल शायर थे और अपनी सच्ची शायरी  के ज़रीये वो अदबी दुनिया में हमेशा जीवित रहेंगे।
  

मैं   रहूँ   या न  रहूँ  मेरा पता   रह जायेगा 
शाख पे गर  एक भी पत्ता हरा रह जायेगा  


                     
उनके बारे में अधिक जानकारी के लिए देखे - www.rajgopalsingh.com
उपरोक्त वेबसाइट की देख-रेख राजगोपाल सिंह  के  सुपुत्र अंकुर  सिंह करते है।
उनके शागिर्द जनाब चिराग़ जैन को उनके सहयोग के लिए शुक्रिया अदा करता हूँ।  


                            NOTE:यह भी एक संयोग ही है कि जनाब सर्वेश चंदौसवी और राजगोपाल सिंह
दोनों की जन्म तिथि १ जुलाई है। 


Wednesday, July 29, 2020

पुष्कर - आवाज़ का जादूगर

पुष्कर ,जी हाँ  यही नाम था मेरे उस दोस्त का जो आवाज़ का जादूगर था। मैंने अपनी ज़िंदगी के कुछ साल ग़ाज़ियाबाद  में गुज़ारे और वही मेरी दोस्ती पुष्कर से हो गयी थी जोकि मेरे घर के करीब ही रहता था।  शामे अक्सर उसके साथ गुज़रने लगी। मैंने उसी के  मुहँ से उर्दू के कई मशहूर शाइरों का क़लाम पहली बार सुना। उसके साथ रहने का एक और सुख था और वह यह कि अगर कोई  आधा घंटा  उसके साथ गुज़ार ले  तो बदन में आधा किलो ख़ून का बढ़ जाना तय था क्योंकि वह बहुत दिलचस्प लतीफ़े सुनाता था।

लगभग पांच फुट का क़द ,दुबला-पतला बदन , काला रंग , बिखरे बाल , ज़र्द होंठों पर जमी पान की पपड़ी और ज़र्द आँखे लेकिन आवाज़ का जादूगर यह बंगाली  मोशाय कभी न केवल आकाशवाणी अपितु अनेक विशाल सांस्कृतिक कार्येक्रमों में एक  प्रतिष्ठित उद्घोषक के रूप में कार्य कर चुका था। ग़ाज़ियाबाद के व्यवसायिक विज्ञापनों  में भी उसकी आवाज़ ग़ाज़ियाबाद की गलियों में गूंजती रहती।

उन दिनों म्यूजिकल नाइट्स का ज़माना था। जिस म्यूजिकल नाईट में पुष्कर उद्घोषक होता उसकी सफलता निश्चित होती। पुष्कर के कुछ शुभचिंतकों  ने  " पुष्कर नाईट " का आयोजन किया। यह आयोजन  शहर के पुराने बस अड्डे के नज़दीक 'उर्वशी' सिनेमा हॉल में किया गया था।  इस  सिनेमाहॉल की खासियत यह थी कि इसमें दो बालकोनियाँ थी। नाईट वाले दिन नज़ारा यह था कि जितने लोग सिनेमा हॉल के भीतर थे उससे दुगने लोग सिनेमा हॉल के बाहर  और उस भीड़ को काबू में करने के लिए घोड़े वाली पुलिस बुलवाई गयी थी।  इसी से पुष्कर की लोकप्रियता का आप अंदाज़ा लगा सकते है।


 उसके बाद से  ही मैं दिल्ली में रहने लगा था लेकिन ग़ाज़ियाबाद आना -जाना लगा रहता था। अगली बार ग़ाज़ियाबाद गया तो पता चला कि पुष्कर अब गाँधी नगर के उस मकान में नहीं रहता। उसके माँ -बाप के गुज़रने के बाद मकान मालिक ने उसे घर से निकाल दिया था और कुछ अरसे के लिए उसने भोंदूमल की धर्मशाला  को अपना ठिकाना बना लिया था।मैं उससे मिलने उस धर्मशाला में गया।  एक टूटी फूटी अटेची का सिरहाना  और एक फटा हुआ कम्बल।देख कर काफी दुःख हुआ और उसकी कुछ मदद भी कर दी।दिल्ली में रहने के कारण उससे मुलाकातों का सिलसिला कम हो गया था लेकिन पुष्कर जब भी दिल्ली आता मुझे मिले बगैर नहीं जाता। 

धीरे धीरे उसकी शराब पीने की लत बढ़ती गयी , वह ज़्यादा से ज़्यादा शराब पीने लगा और शराब उसे पीने लगी।उसकी आवाज़ का सूरज अब ढलने लगा था।   एक दिन अचानक ग़ाज़ियाबाद से  मेरे चाचा जी ने मुझे फ़ोन कर के बताया कि पुष्कर का देहांत हो गया।आवाज़ का जादूगर ख़ला में विलीन हो गया था।  कुछ पलों के लिए यह धरती ठहर गयी थी लेकिन फिर घूमने लगी थी अपनी धुरी पर।
मेरे ज़हन में जनाब    राजगोपाल सिंह 'समर ' बिजनौरी का यह शे'र कौंध गया -

चढ़ते सूरज को   लोग जल देंगे 
जब ढ़लेगा तो मुड़  के चल देंगे

Tuesday, July 28, 2020

कुत्ता और गधा - A kiskutya meg a szamár ( हंगेरियन लोक कथा का हिन्दी अनुवाद )

कुत्ता और गधा - A kiskutya meg a szamár


एक गधे को उस कुत्ते की आरमदेह ज़िंदगी से बहुत ईर्ष्या थी जिसे घर के सबसे अच्छे कमरे में बैठने और बढ़िया क़ुशनों पर पसरने की इजाज़त थी। सारे दिन घूमना ,कोई काम नहीं, फिर भी उसे हर किसी का प्यार और शाबाशी मिलती जबकि गधे को सिर्फ झिड़कियां और ताने।

एक दिन गधे ने कुत्ते से पूछा -' अमीर मालकिन तुम्हे इतना प्यार क्यों करती है ' ?

' क्योंकि में पूँछ हिलाना जानता हूँ और दोनों टाँगों पर खड़ा हो कर हुक़्म बजाना भी जानता हूँ '- कुत्ते ने जवाब दिया।

' अच्छा , यह तो कोई मुश्किल  काम नहीं , मैं भी कोशिश करूँगा '- गधे ने कहा।

एक दिन रसोईघर खुला देख कर गधा चुपके से उसमे घुस गया और अपनी दोनों टाँगों पर खड़ा हो गया। अपनी  पूँछ  और  टाँगों को ऐसे हिलाने लगा मानो अपनी मालकिन से हाथ मिलाना चाहता हो। गधे का यह रूप देखकर मालकिन डर गयी और क़ालीन झाड़ने वाले डंडे से उसको मार भगाया।

 बेचारा गधा आज तक यह सोच सोच कर अपना सिर धुनता है कि उस बात के लिए उसे क्यों पीटा गया था जिसके लिए कुत्ते को शाबाशी मिली थी।



अनुवादक : इन्दुकांत आंगिरस

Monday, July 27, 2020

मरने के बाद क्या होगा ?



कोरोना की महामारी के चलते आज समूर्ण दुनिया में लाखो लोग मर चुके हैं और जो अभी तक नहीं मरे हैं उनमे से कोई भी, कही भी,कभी भी मर सकता है। लोग मौत से ख़ौफ़ खाये अपने अपने दबड़ों में दुबक कर बैठे हैं और परिन्दें आसमान में बे-ख़ौफ़ उड़ रहें हैं। ज़िंदगी और मौत  का रिश्ता तो चोली-दामन जैसा है।
जनाब कृष्ण बिहारी 'नूर ' कहते हैं -

ज़िंदगी मौत तेरी मंज़िल है 
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं

मौत के  बारे में उस्ताद इब्राहिम ज़ौक़ का यह अनूठा शे'र देखे -

अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जायेंगे 
मर के  भी   चैन न   पाया तो किधर जायेंगे

यह एक रहस्य ही है कि मरने के बाद आखिर आदमी जाता कहा है, दो ही जगह है स्वर्ग या नरक ,जन्नत या दोज़ख ,लेकिन कौन कहाँ जायेगा किसी को  नहीं मालूम।  पिछले दिनों मदीना बुक डिपो की एक किताब हाथ लगी - 'मरने के बाद क्या होगा '?उर्दू  की  इस किताब के लेखक  मौलाना मुहम्मद आशिक़ इलाही बुलन्दशहरी हैं और इसका हिंदी अनुवाद कौसर यज़दानी नदवी ने किया है। इस किताब में बहुत ही तफ़्सील से यह बताया गया है कि कौन जन्नत में जायेगा और कौन दोज़ख में।  जन्नत में जाने पर क्या मिलेगा और दोज़ख में जाने पर क्या मिलेगा ,जन्नत कैसी होती है और दोज़ख कैसी होती है, जन्नत में खाने -पीने को क्या मिलता है और दोज़ख में खाने पीने को क्या मिलेगा ,दोज़ख का अँधेरा कैसा होता है और जन्नत का नूर कैसा होता है ।

       लेकिंन सवाल यह उठता है कि मरने के बाद यह देखने कौन जायेगा कि कौन जन्नत में गया है और कौन दोज़ख में। कुछ फ़क़ीरों का यह भी कहना है कि जन्नत और दोज़ख मौत के बाद नहीं ,हमारी ज़िंदगी में ही हमे मिल जाती हैं,अपने अपने कर्मों के हिसाब से, फिर मौत से घबराना कैसा,मौत की आहट  के डर से रात रात भर जागना कैसा ?

 मौत का एक दिन मुअय्यन है
 नींद क्यों रात भर नहीं आती

                   मिर्ज़ा ग़ालिब का उपरोक्त  शे'र पढ़ें और अपना मुहँ ढँक  कर सो जाये , कल की सुनहरी सुब्ह आपका इन्तिज़ार कर रही है।  

Sunday, July 26, 2020

परिचय साहित्य परिषद् - स्थापना


परिचय साहित्य परिषद्
, दिल्ली की एक पुरानी साहित्यिक संस्था है जिसका बीजारोपण इन्दुकान्त आंगिरस और शिवनलाल जलाली ने किया।
परिचय साहित्य परिषद् की प्रथम गोष्ठी 1985 को होली के अवसर पर वसंत विहार दिल्ली में स्थित तुनिशिया दूतावास में शिवनलाल जलाली के घर पर वरिष्ठ शाइर जनाब डी राज कँवल की अध्यक्षता में संपन्न हुई। धीरे धीरे यह पौधा फलने - फूलने लगा और आज एक विशाल  वटवृक्ष  के रूप में उपस्थित है।

कुछ महीनों  के बाद इसमें  कार्यकारणी सदस्यों को जोड़ा गया , प्रथम कार्यकारणी सदस्यों की सूची इस प्रकार थी -

संरक्षक एवं परामर्शदाता :

श्री डी राज कँवल
डॉ रमेश कुमार अंगिरस
श्री सीमाब सुल्तानपुरी

अध्यक्ष : श्रीमती उर्मिल सत्यभूषण

उपाध्यक्ष : श्रीमती सविता चड्ढा
               डॉ मधु बरुआ

सचिव : श्री इन्दुकान्त आंगिरस

उपसचिव : सुश्री प्रकाश टाटा

कोषाध्यक्ष : श्री  शिवनलाल जलाली

प्रभंध  अधिकारी : श्री अनिल वर्मा 'मीत'

जन संपर्क अधिकारी : सुश्री पार्वती राठौर


कार्यकारी  सदस्य :

श्री सुभाष प्रेमी सुमन
श्रीमती वीणा कुमार
श्री जमाल अमरोही
श्रीमती अलका सिन्हा
श्री धीरेन्द्र उपाधयाय
श्री नवनीत भूषण
सुश्री गायत्री नूर

35 वर्षों की इस लम्बी अवधि में परिचय साहित्य परिषद् अब तक लगभग ३००  से ज़्यादा गोष्ठियाँ, कवि सम्मेलन  और सेमीनार कर  चुकी है।रूसी सांस्कृतिक केंद्र के सौजन्य से परिचय साहित्य परिषद् , रूसी सांस्कृतिक केंद्र   के प्रांगण में ही नियमित महाना गोष्ठियाँ का आयोजन करती रही है और यह सिलसिला आज भी ज़ारी है।  इन गोष्ठियाँ में दिल्ली और अन्य राज्यों के प्रतिष्ठित साहित्यकार भाग लेते रहे हैं।  रूसी साहित्य के साथ भी आदान प्रदान होता रहा है।

जून २०१७ में रूसी सांस्कृतिक केंद्र और परिचय साहित्य परिषद्के  ने  मिलकर अपनी दोस्ती की ३०वी वर्षगांठ पर भव्य आयोजन किया।  समय के साथ साथ अधिक से अधिक लोग इस के साथ जुड़ते  गए और कुछ लोग बिछुड़ भी गए। परिचय साहित्य परिषद् की वर्तमान  कार्यकारणी सदस्यों के नाम निम्नलिखित हैं -

संरक्षक एवं परामर्शदाता :

डॉ रमेश कुमार अंगिरस 
श्री सीमाब सुल्तानपुरी 


अध्यक्ष -  श्री लक्ष्मी शंकर  वाजपेयी 

उपाध्यक्ष  - श्री इन्दुकान्त आंगिरस

महासचिव - श्री अनिल वर्मा 'मीत'
सचिव :       श्री हरे राम समीप

कोषाध्यक्ष - श्रीमती सुषमा भंडारी 

प्रभंध अधिकारी - श्री  शिवनलाल जलाली



कार्यकारी  सदस्य :

श्रीमती भावना शुक्ला
श्रीमती प्रकाश टाटा
श्रीमती  अलका सिन्हा 
श्री मनोज अबोध 
डॉ स्टेला  
श्रीमती ममता किरण 



NOTE :

श्री शिवनलाल का नाम पहले शिवनलाल 'बशर ' था लेकिन अब उन्होंने अपना नाम - शिवनलाल  जलाली रख लिया है क्यों कि आप अलीगढ़ के नज़दीक जलाली  गावँ के रहने वाले है। जलाली गावँ से एक और मशहूर शाइर  शकेब जलाली  हुए है जो भारत के विभाजनके बाद  पाकिस्तान  चले गए थे।

Saturday, July 25, 2020

इदरीस मोहम्मद तैयब -अरबी कविता का अनुवाद

इदरीस मोहम्मद तैयब , जी हाँ यही नाम है शख़्सियत का जिनसे लगभग १५ साल पहले मेरी मुलाकात INSA  की उस गोष्ठी में हुई थी जिसमे आप अपनी अरबी कविताओं का अंग्रेज़ी अनुवाद सुना रहे थे। मैंने उनकी चंद कविताओं का अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद कर दिया।  मेरा द्वारा अनुदित उन कविताओं को पढ़कर उन्होंने मुझसे कहा कि मैं अंगेज़ी अनुवाद की गयी पुस्तक का पूरा अनुवाद हिन्दी में कर दूँ।  आदेशानुसार मैंने उनकी कविताओं का हिन्दी अनुवाद आरम्भ कर दिया।

उन दिनों आप  दिल्ली में लीबिया के दूतावास में कार्यरत थे।  अनुवाद के सिलसिले में, अक्सर उनके दफ़्तर में ही उनसे मिलता था। इदरीस साहब सिगरेट  के शौक़ीन थे और मुझे सिगरेट  नापसंद थी ,लेकिन मेरी उपस्थिति में वो सिगरेट  कम पीते थे।  एक मोटी छड़ी का इस्तेमाल करते थे क्यूंकि उनकी टांगों में कुछ तकलीफ थी , लकड़ी के बूट दोनों पैरों में पहनते थे। इन्ही मुलाकातों के बीच मालूम पड़ा कि इनको कर्नल गद्दाफ़ी के ज़माने में  लगभग १० सालो तक  जेल में क़ैदी के रूप में रहना पड़ा,उनकी कुछ कवितायेँ जेल जीवन से प्रेरित हैं।


ख़ैर हिन्दी अनुवाद का कार्य पूर्ण हुआ और हिन्दी अनुवाद  की किताब " घर का पता " प्रकाशित हो गयी। इसी ख़ुशी में उन्होंने अपने घर एक दावत रखी और मुझे भी आमंत्रित किया। मुझे उन्होंने कुछ जल्दी बुलवा लिया था।  डिफेन्स कॉलोनी में एक कोठी की तीसरी मंज़िल पर रहते थे।  जब उनके घर पर मैंने उस दिन उनके खुले पोलियोग्रस्त दोनों पावँ देखे तो मुझे बड़ा अचरच हुआ।  मैंने उनसे पूछा - जब आपको यह तकलीफ है तो आप तीसरी मंज़िल पर क्यों रहते है ?
-" मैं दर्द को अपने ऊपर हावी  नहीं  होने देना चाहता " - उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे जवाब दिया।

इदरीस साहब को अनाथों से बहुत लगाव था।  मैंने उनसे कभी पूछा तो नहीं पर ऐसा लगता था कि या तो वो जन्म से अनाथ है या फिर उनके माता पिता की मृत्यु हो चुकी है।  उनके आदेश से ही "आर्य अनाथालय " दरियागंज ,दिल्ली में एक बाल कवि  सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमे अनाथ बच्चों ने अपनी कवितायेँ सुनाई।  इदरीस साहब के आदेश पर उन कविताओं को एकत्रित किया गया और उन्हें सम्पादित कर " नन्हे मुन्नों की बड़ी चिंताएं " नाम से किताब प्रकाशित की गयी।  इदरीस साहब ने प्रकाशक को यह  हिदायत दी कि " घर का पता " और  " नन्हे मुन्नों की बड़ी चिंताएं "  पुस्तकों की बिक्री से जो भी रॉयल्टी प्राप्त हो ,वह रक़म आर्य अनाथालय को दे दी जाये।

उन्होंने एक संस्था " पोएट्री सोसाइटी ऑफ़ ऑर्फ़न चिल्ड्रन " भी खोली जो बाद में चल कर बंद हो गयी।  इदरीस साहब तो भारत छोड़ कर चले गए लेकिन उनका क़लाम और मुहब्बत आज भी दिल्ली की गलियों में ज़िंदा है।

प्रस्तुत है " घर का पता " पुस्तक से एक छोटी -सी  कविता का हिन्दी अनुवाद :

ज़िंदा ज़ख़्म 

गायक गाता है गीत
सब गाते हैं गीत
लेकिन मैं जो
सबसे अधिक आतुर हूँ
गाने को एक गीत
अपने ही
ज़िंदा ज़ख़्म पर सोता हूँ
अपनी ही आवाज़ को
ओढ़ाता हूँ सन्नाटा।


कवि - इदरीस मोहम्मद तैयब

अनुवाद - इन्दुकांत आंगिरस 

महेश्‍वरी निगम और उनका काव्य संग्रह - राम सागर

मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम को केंद्रित कर ऋषि वाल्मीकि ने रामायण की रचना करी और तुलसीदास ने रामचरितमानस रची।  भारत की दूसरी भाषाओँ में भी रामायण की रचना करी गयी।  रामानंद सागर का दूरदर्शन धारावाहिक 'रामायण ' द्वारा  श्री राम की कथा को  अत्यंत रोचक ढंग से जन जन तक पहुंचाया गया।


स्वर्गीया महेश्‍वरी  निगम का जन्म लखनऊ में हुआ और पेशे से वो अध्यापिका थी।  आपको संगीत का भी शौक़ था।  बैंगलोर के ' साहित्य साधक मंच' में आप नियमित रूप से शिरकत फ़रमाती और लोक गीतों की धुन में अपने गीत पढ़ कर श्रोताओं को भाव विभोर करती थी । उनके निवास स्थान पर मेरी अक्सर उनसे अंतरंग बातें भी होती थी और मुझे सदैव उनका आशीर्वाद मिलता रहता था

श्रीमती महेश्‍वरी  निगम ने वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण से प्रेरित हो कर ' राम सागर ' की रचना कर डाली।इस पुस्तक में श्री राम के जन्म से लेकर लव-कुश तक का प्रसंग छंदोबद्ध समाहित है। ७२ पृष्ठों की  इस पुस्तक में  १२६ छंद हैं। इन छंदों की भाषा अत्यंत सहज और सरल हैं और यदा-कदा अवधी भाषा के शब्दों ने इसकी सुंदरता में चार चाँद लगा दिए हैं। उनकी भाषा में लखनऊ की नफ़ासत देखने को मिलती हैं।

अपनी पुस्तक ' राम सागर ' के माध्यम से उन्होंने श्री राम की कथा को काव्य रूप में प्रस्तुत किया जोकि सभी आयुवर्ग की पाठकों के लिए पठनीय हैं। पुस्तक से उद्धृत कुछ छंद देखे -

 जिनकी महिमा ऋषि मुनियों 
 ने ,     अपरम्पार      बताई 
 वहीं राम की    गाथा लिखने
 मेरी           लेखनी      आई  

रामचंद्र का    यशोगान ये 
जो        नर - नारी   गायेंगे
कहे 'महेशवरी निगम' सहज 
भवसागर    से   तर जायेंगे

इस पुस्तक में एक और दिलचस्प संयोग देखने को मिलता हैं -

१२६ छंदों की संख्या का जोड़ -  ९
७२ पृष्ठों की संख्या का जोड़   -   ९
उनकी जन्मतिथि का जोड़     -    ९

९ का अंक अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।  जैसा कि सभी को मालूम हैं कि संख्या १०८ हिन्दू धर्म में एक  पवित्र संख्या हैं।१०८ की संख्या ९ अंक से पूर्ण रूप से विभाजित हो जाती है।


राम सागर का विमोचन तो उनके जीवन काल में ही हो गया था लेकिन अभी भी उनका बहुत -सा साहित्य अप्रकाशित है , आशा है हमे शीघ्र  ही उनका शेष साहित्य भी पढ़ने को मिलेगा।

Friday, July 24, 2020

रौशनी - Šviesa ( Translation of Lithuanian poem )



रौशनी  -  Šviesa


पहाड़ों और नदियों के
उस पार से
तुम्हारी हथेली पर उगती
नई सुब्ह
क्षितिज के दूसरी ओर से
उगती अद्भुत रौशनी ,
नीले आकाश में
उड़ते  पंछियों को मत देखो
मेरे द्वारा
स्वप्न फूल चुन लेने से
पहले ही
सूरज आ धमका
रात में खिलते
सूरज से डरो नहीं
परियों के पंखों पर
सवार हो कर उड़ जाओ
सुब्ह निकलने की
इन्तिज़ार मत करो
रात में चमकता सूरज
करता है तुम्हारा आलिंगन
ओर तुम
रौशनी के साथ मिलकर
गाते हो एक गीत।


कवियत्री -  Zita Vilutyte 

अनुवादक - इन्दुकांत आंगिरस 

जो उतरा सो डूब गया , जो डूबा सो पार


ख़ुसरों दरिया प्रेम का ,उलटी वा की धार 
जो उतरा सो डूब गया ,जो डूबा सो   पार


अमीर ख़ुसरो का उपरोक्त शे'र  प्रेम  की एक ऐसी परिभाषा है जिसे जितना खोलते है वो उतना ही उलझती जाती है।  दुनिया में दो ही चीज़ें ऐसी हैं जिन्हें  जितना ख़र्च किया जाया वो उतना हमको मालामाल करती हैं।  ये दो चीज़ें हैं - इश्क़ और इल्म।


    मुहब्बत से ज़ुल्मत ने काढ़ा है नूर 
    न होती  मुहब्बत  न    होता ज़हूर 

महाकवि मीर तक़ी 'मीर ' ने , जिन्हे लोग ख़ुदा-ए-सुख़न भी कहते है , उपरोक्त शे'र में मुहब्बत को  परिभाषित किया है।  उनके वालिद अलीमुत्तक़ी अपने ज़माने के मशहूर फ़क़ीर थे। एक दिन उन्होंने अपने बेटे 'मीर' को अपने नज़दीक  बुला कर प्रेम के बारे में कुछ यूँ कहा -

" बेटे ! प्रेम कर क्यों कि यह संसार प्रेम के आधार पर टिका है।  यदि प्रेम न होता तो यह संसार भी नहीं होता।  बिना प्रेम के यह जीवन नीरस है। अपने हृदय को प्रेम में मतवाला बना दे।  प्रेम बनाता भी है और जलाता भी है।  इस संसार में जो कुछ भी है वो प्रेम का ज़हूर है। आग प्रेम की जलन है। जल प्रेम की गति है। मिट्टी प्रेम का ठहराव है और वायु प्रेम की बेकली  है।  मौत प्रेम की मस्ती है और जीवन प्रेम का होश। रात प्रेम की नींद है और दिन प्रेम का नींद से जागना।  मुसलमान प्रेम  की सुंदरता है  और क़ाफ़िर प्रेम का नतीजा। भलाई प्रेम के क़रीब होना है और पाप प्रेम से दूर जाना है।  स्वर्ग प्रेम की चाह है नरक उसका रस।  भक्ति ख़ुदा को पहचानना है , प्रेम सत्य का ख़ुलूस है।  ख़ुदा को पाने की लगन वास्तविकता की चाह में स्वयं को भुला देना और ख़ुदा से फिर एक लगाव अनुभव करना है।  इन सारी वस्तुओं से प्रेम का दर्ज़ा ऊँचा है।  यहाँ तक कि कुछ लोगों के निकट आकाश का चक्कर भी इसलिए है कि वह अपने प्रियतम को न पा सका। "


इसलिए अगर आपने अभी तक प्रेम नहीं किया है तो ज़रूर करिये..........कम से कम एक बार

Thursday, July 23, 2020

देशपति 'देश ' - एक गुमनाम कवि

अभी अभी  बैंगलोर के 'साहित्य साधक मंच' के व्ट्सप पटल के ज़रीये पता चला कि जनाब देशपति 'देश ' २४ जून २०२०  को इस दुनिया, जिसे कुछ लोग सराये-फ़ानी भी कहते हैं , से गुज़र गए। टेक्नोलॉजी के इस दौर में यह भी कितनी बड़ी विडंबना है कि किसी कवि की मृत्यु की सूचना हमे उनके देहांत के एक महीने बाद मिल रही है। उनका नाम भी हमारे देश के उन  हज़ारों गुमनाम कवियों   / शाइरों की फ़ेहरिस्त में शामिल हो गया जिन्हें ५०-१०० साहित्यिक विभूतिओं  से अधिक कोई नहीं जानता।

 लगभग ६ फुट लम्बा क़द , साँवला रंग और अच्छी क़द -काठी वाले उस शख़्स की मुस्कुराहट आज भी तस्सवुर में क़ैद है।आप 'साहित्य साधक मंच' की महाना गोष्ठियों   में नियमित रूप से शिरकत फरमाते थे।उर्दू लबों -लहज़े में गीत या ग़ज़ल पुरज़ोर मीठे तरन्नुम में सुनाते और दिल खोल कर अच्छे क़लाम की तारीफ़ भी करते थे। अक्सर नशिस्त वाले दिन वो मुझे फ़ोन करते और मैं उनको जे डी मारया के बस स्टॉप से ले लेता और वापसी में वही पर छोड़ देता था। उन्हें कुछ अरसे पहले कैंसर हो गया था लेकिन  कैंसर से उन्होंने अपनी जंग  जीत ली थी। उनका  साहित्यिक जज़्बा क़ाबिले तारीफ़ है क्योकि कैंसर को हरा कर उन्होंने फिर से नशिस्तों में आना शुरू कर दिया था।

आप एक सच्चे कवि थे क्यों कि आप के पास एक कवि हृदय भी था और आपको कविता की समझ भी थी।  उन्होंने अपनी ज़िंदगी का एक लम्बा अरसा मुंबई में गुज़ारा जहां वो मशीनों का काम करते थे।

उनसे बावस्ता साहित्यिक मित्र उन्हें श्रद्धांजलि  अर्पित कर रहें हैं और सभी इस दुःख से पीड़ित भी हैं लेकिन सच्ची श्रद्धांजलि  तभी  होगी जब उनका अप्रकाशित क़लाम इस दुनिया तक पहुँच जाएगा। मेरी जानकारी में उनका क़लाम अभी तक प्राकिशत नहीं हुआ है।

मित्रों , अदबीयात्रा  शीघ्र ही इस दिशा में क़दम उठाने जा रही है।  अदबीयात्रा  का प्रयास रहेगा कि उन साहित्यकारों की अप्रकाशित पुस्तकों  का प्रकाशन करे जो किन्ही विशेष कारणों से उनके जीवन काल में प्रकाशित नहीं हो पाई।

इस दुःख भरी घड़ी  में जनाब सर्वेश चंदौसवी का शे'र देखें -

  राज़े- हस्ती है 'सर्वेश ' क्या
  तीन हर्फ़ी ' अजल ' आदमी


* श्रीमती भावना शुक्ला से यह जानकारी मिली कि देशपति 'देश ' का वास्तविक नाम देशपति नीखरा है और       आप जबलपुर के रहने वाले थे।

Wednesday, July 22, 2020

बुदा में कुत्तों का बाज़ार सिर्फ एक बार - Egyszer volt Budán kutyavásár

हंगरी सेंट्रल यूरोप में बसा एक छोटा-सा देश है जिसको हंगेरियन भाषा में  " Magyarország " कहते है। इसकी राजधानी बुदापैश्त है। बुदा और पैश्त दो शहर हैं जिनके बीच  से डेन्यूब नदी बहती है। बुदा में पहाड़ियां  हैं और पैश्त समतल मैदान है।  १५वी सदी में हंगरी के पुनर्जागरण के समय राजा मात्याश का शासन था। वह एक  लोकप्रिय एवं न्यायप्रिय राजा थे। उन्हीं के न्याय  से सम्बंधित एक हंगेरियन लोक कथा का हिन्दी
अनुवाद प्रस्तुत है।


Egyszer volt Budán kutyavásár

बुदा में कुत्तों  का बाज़ार सिर्फ एक बार 


आदत के अनुसार एक बार मात्याश  राजा ने एक गावँ की छोटी -सी सराय में रात गुज़ारी। अगली सुबह मैदान में घूमते हुए राजा ने दो किसानों को देखा। उन किसानों में से एक किसान बहुत कमजोर था और एक बूढ़े घोड़े से अपनी ज़मीन जोत रहा था। जब राजा ने देखा कि ग़रीब किसान को अपना काम करने में अत्यंत कठिनाई हो रही है तो राजा ने अमीर किसान की तरफ मुड़ कर उससे कहा कि उसे ग़रीब किसान की मदद करनी चाहिए।

" मुझे इससे कोई लेना-देना नहीं ,सब अपना अपना काम देखते हैं "-अमीर किसान ने रुखा -सा जवाब दिया।

मात्याश  राजा को यह जवाब पसंद नहीं आया। उन्होंने ग़रीब किसान से कहा -" देख रहा हूँ कि तुम बहुत कठिनाई में हो। तुम्हे एक नेक सलाह देता हूँ - अगले इतवार बुदा में कुत्तों का बाज़ार  लगेगा।  तुम जितने भी गलियों  के कुत्ते इकट्ठे कर सको कर लो , चाहे  कैसे भी हो,उन सबको इकठ्ठा कर बुदा ले आना।"

ग़रीब किसान को कुछ हैरानी हुई , लेकिन उसने राजा की सलाह मान ली। जब वह आवारा कुत्तों को इकठ्ठा  कर बुदा के बाज़ार में  पहुंचा तब राजा भी अपने मंत्रिओं के साथ बाज़ार में आया और उसने ग़रीब किसान से महंगे दामों में कई कुत्ते ख़रीदे।  राजा ने अपने मंत्रिओं को भी कुत्ते ख़रीदने के लिए कहा।  किसी में इतना साहस नहीं था कि राजा की बात को टालते।  सभी मंत्रिओं ने  कुत्ते ख़रीदे और पैसे दिए।

ग़रीब किसान बहुत से पैसों के साथ गावँ लौटा और उसने सबको अपनी कहानी सुनायी कि वह कैसे अमीर बन गया था। अमीर पड़ोसी ईर्ष्या से जल-भुन गया। उसने  अपने बैल , घोड़े ,घर आदि सब कुछ बेच कर ख़ूबसूरत नस्ली कुत्ते ख़रीदे और उन कुत्तों को लेकर बुदा गया।

उस समय बाज़ार में किसी का भी मूड कुत्ते ख़रीदने का नहीं था । अमीर किसान राजा के महल की तरफ़ गया और पहरेदार से बोला - "राजा को बताओ कि मैं शानदार नस्ली कुत्ते बेचने के लिए लाया हूँ "। जवाब आने में देर नहीं लगी। महल के पहरेदार ने उससे कहा - " मात्याश  राजा तुम्हारा ही इन्तिज़ार कर रहे थे ओर उन्होंने तुम्हारे नाम सन्देश भेजा है कि बुदा में कुत्ता का बाज़ार सिर्फ एक बार लगा था "।

 तुम जहाँ से आये हो वही लौट  जाओ।


                        ***
अनुवादक - इन्दुकांत आंगिरस

Tuesday, July 21, 2020

सैर-ए-गुलफरोशां

सैर-ए-गुलफरोशां

सैर-ए-गुलफरोशां या'नी फूल वालों की सैर , दिल्ली में हर साल मनाए जाने वाला एक ऐसा सांस्कृतिक पर्व है जो हिन्दू -मुस्लिम एकता की  एक अतुलनीय मिसाल है। चाँदनी चौक से ३२ किलोमीटर का सफ़र तय करती सैर ए गुलफरोशां मेहरौली में स्थित सूफ़ी संत हज़रत क़ुतुब्बुदीन  'काकी ' और देवी योगमाया के मंदिर तक पहुँचती है। इससे सम्बंधित दूसरी जानकारियां तो आप गूगल पर पढ़ सकते है लेकिन इससे  सम्बंधित एक नज़्म देखे -

      सैर-ए-गुलफरोशां

 ख़ल्कुल्लाह क्यों ख़रोशा  है
 आज क्या सैर-ए-गुलफरोशां है
 बहेलिओं यक्कों का इक ताँता है
 जिसको देखो वो क़ुतुब जाता है
भाई जग्गू के सर पर दुकान
जा के मेहरौली में बेचेगा पान
मियां गुफ़ूर भी इस मेले पर
लाएं है सारा कुनबा ठेले पर
पा पियादों के देखिये बूते
लिए हुए हैं बग़ल में जूते
अब आया कस्बे का मीना बाज़ार
सजी सजाई दुकानों की क़तार
हरेक दूकान में भरा हैं माल
मिठाईओं के चुन रहे हैं थाल
नाशपाती ,अनार और अमरूद
कही कढ़ाई में चढ़ा हैं दूध
बेचता हैं कोई बुढ़िया के बाल
सेव बेसन के और चने की दाल
कबाब-ए-सीख भून रहें हैं कहीं
लोग क़व्वाली सुन रहें हैं कहीं
 नाच गाने हरेक मकान में हैं
इत्र के फोये सब के कान में हैं
बाम पर है नवाब मोटे-से
नै पकड़ ली उन्होंने कोठे से
आये बाज़ार में गिरधारी लाल
तोंद इतनी हैं कि दुशवार सँभाल
रईस है ये हाल है पल्ले
ख़रीदते हैं अंगूठी छल्ले
हंसी मज़ाक का अजब है तौर
चल रहा है शराब-ए-नाब का दौर
बोतल इकऔर आने वाली है
नवाब पुतली गाने वाली है।

NOTE :  इस नज़्म के ख़ालिक़ का नाम अभी ढूंड नहीं पाया हूँ ,अगर बता पाए तो ख़ुशी होगी। 
नाम मिल जाने पर दर्ज़ कर दूँगा। 

कोरोना का ब्याज कैसे अदा होगा

आज सारी दुनिया कोरोना महामारी से पीड़ित है।  इस की वज्ह से लगभग सभी  को जान -माल का नुक्सान हो रहा है , विशेष रूप से दुनिया भर के मज़दूर सब से अधिक पीड़ित हैं। दुनिया की अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी है , करोड़ों लोग अपनी नौकरी से हाथ धो बैठे हैं।  पीड़ितों की मदद के लिए भारतीय सरकार ने कुछ योजनाएं आरम्भ करी। इन योजनाओं के चलते बैंकों से कर्ज़  आसानी से  मिल जायेगा लेकिन ब्याज का क्या होगा ?
कुछ निजी सेक्टर्स इसका ख़ूब लाभ उठा रहे हैं , उन्होंने अपनी ब्याज दरें पहले से अधिक बढ़ा दी है लेकिन या तो सरकार को इस की जानकारी नहीं है या फिर इन पर सरकार को कोई नियंत्रण नहीं है।  गोदान को होरी भी ब्याज देते देते इस दुनिया से कूच कर गया था। ८४  वर्षों से होरी ब्याज दे रहा है लेकिन आज तक  उसका कर्ज़ नहीं उतरा और ब्याज की दरें बढ़ती गयी। कुछ धर्मों में तो ब्याज लेना व देना हराम बताया गया है लेकिन रोटी खानी है तो ब्याज देना ही पड़ता है।  साहूकार मूल छोड़ सकता है पर ब्याज नहीं लेकिन क्या अच्छा होता अगर दुनिया भर के साहूकार इस शे'र को समझ लेते -

   ये रेट ब्याज का तो ,     दुनिया से भी महत्तर
   फिर क्यों हराम लेता ७० के जो ७२ (बहत्तर ) ?


 NOTE :उपरोक्त शे'र के रचियता का नाम अभी ढूंड रहा हूँ। अगर आप बता सके तो ख़ुशी होगी। नाम मिलते ही दर्ज़ कर दूंगा। 

एक अनार सौ बीमार

    मख़्सूस हो चुकी हैं   इरादी ग़ुलामियाँ   
    है एक अनार सैकड़ों बीमार आजकल

 जनाब परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़  का उपरोक्त शे'र आजकल  के हालात पर काफी सटीक बैठता है लेकिन अनारों की बाते हम सदियों  से सुनते आ रहे हैं। अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हम ऐसी कितनी ही आदतों के ग़ुलाम बन चुके हैं जो किसी ने किस रूप में हमारी सेहत पर असर डालती है।  डॉक्टर कहता है कि अगर रोज़ एक सेब खाया जाए तो आदमी बीमार ही नहीं पड़ेगा। अँगरेज़ी भाषा की  मशहूर कहावत -
An apple a day ,keeps the doctor away.  किसने नहीं सुनी होगी, लेकिन क्या हम सब रोज़ सेब खाते हैं ? बहुत से लोग तो इसी बात से घबरा जाते हैं कि आदम ने पहला सेब खाया था और वो इश्क़ के मर्ज़ में आज तक बीमार चल रहा है ,फिर हम जैसे लोग सेब खा कर कब तक तंरुस्त रह पाएंगे।  कुछ भी हो  ,अगर एक बार बीमार पड़ जाए तो तबीयत ठीक करने में  अनार बड़ा मुफ़ीद है ,पर अनारआसानी से  मिलते कब है।कुछ लोग तो अनारों की  तमन्ना में ज़िंदगी में बार बार बीमार पड़ते रहते हैं।  इश्क़ की राह में ऐसे मरीज़ों की कमी नहीं।

जनाब आग़ा अकबराबादी ने शायद सेब और अनार दोनों का ही लुत्फ़ उठाया होगा , तभी तो उन्होंने लिखा -

   हैं सेब से भी वो ........... सख़्त
   आगे     उनके  अनार   क्या हैं


  
काफी उधेड़बुन  के बाद जनाब आग़ा अकबराबादी से क्षमा मांगते हुए मैंने उपरोक्त शे'र के उला मिसरे के एक लफ्ज़ को रिक्त बिंदुओं में बदल दिया है।  जो लोग इस रिक्त स्थान में  सही लफ्ज़ नहीं भर पाए  वो शायद  अभी तक रिक्त हैं और जो महानुभाव रिक्त स्थान में सही लफ्ज़ भर लेंगे , उन विद्वानों को मेरा प्रणाम। 

अदबीयात्रा का नामकरण

प्रिय मित्रों ,

ब्लॉग की दुनिया में  आज मेरा पहला क़दम है। इस ब्लॉग का नामकरण करने में मुझे काफी कठिनाई हुई।  आख़िरकार मैंने इसका नामकरण कर दिया -  'अदबीयात्रा '।  इस संयुक्त शब्द में उर्दू भाषा का शब्द 'अदब ' और हिंदी भाषा का शब्द " यात्रा " का सम्मिश्रण है ,जिसने इस नाम को अधिक सुन्दर बना दिया है।  वास्तव में साहित्य किसी भी भाषा का हो वह साहित्य  ही होता है। वैसे भी हिंदी और उर्दू तो गंगा जमुनी बहनों के समान है। हक़ीक़त तो यह है की दोनों भाषाओँ के बहुत से शब्द एक दूसरे में हवा और पानी की तरह घुल मिल गए हैं। किसी भी भाषा या संस्कृति के लिए यह ज़रूरी है कि उनका आपस में आदान-प्रदान होता रहे। जिस भाषा या संस्कृति का आदान प्रदान नहीं होता वह देर-सबेर मर जाती है। इस ब्लॉग का नाम ' अदबीयात्रा ' ज़रूर है लेकिन यह विश्व की सभी भाषाओँ और संस्कृतिओं  का स्वागत करती है। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि इस अदबी यात्रा में आप सभी मेरे साथ शामिल होंगे और अपने विचारों से मुझे अवगत कराते रहेंगे। इस अवसर पर मुझे जनाब सीमाब  सुल्तानपुरी का एक शे'र याद आ रहा है -

            मैं इक  चिराग़ लाख चिराग़ों में बँट गया 
            रक्खा जो आईनों ने कभी  दरम्यां   मुझे