Monday, August 18, 2025

शहर और जंगल - अंतिम गीत

 अंतिम गीत 


शेष है रचना अभी 

अंतिम गीत का 


दूर जंगल में 

पीड़ा का राग 

रात कि क़ैद में 

तड़पता सूरज 


ज़िंदगी एक दर्दीला 

अंतहीन सफ़र 

मगर मेरी आत्मा पर 

वसंत ने उकेरा 

एक जादुई फूल 

जिसकी गंध में डूबकर 

ज़िंदगी का हर ग़म मुस्कुरा उठेगा 

ज़मीं का ज़र्रा ज़र्रा महक उठेगा 


दाँव पर लगा है 

बस एक लम्हा प्रीत का।  

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