Wednesday, August 6, 2025

शहर और जंगल - कुछ चित्र

 कुछ चित्र 


1


एक गाँव,

गाँव में बरगद , पीपल 

नारियल और केले के  पेड़  

पेड़ों पर झूले ,

झूलों पर झूलती लड़कियाँ 

पनघट ;

पनघट पर गगरी भरती राधाएँ 

खेतों में हल चलाते बैल 

पेड़ों की छाँव में 

पसीना सुखाते किसान  

मंदिर , मस्जिद , गुरुद्वारा , गिरजा 

मिलजुल कर सब 

अपने अपने ईश्वर की करते पूजा    

चौपाल ;

चौपाल पर हुक़्क़ा गुड़गुडाते 

गाँव के कुछ बुज़ुर्ग 

शायद यह बतियाते होंगे कि

किस तरह 

मिटटी के घरों में रहकर ही 

आदमी अपनी 

मिटटी से जुड़ा रह सकता है 

दीवार पर बना यह चित्र 

मेरे दादा जी ने बनाया था 

जिसके रंग 

अब फीके पड़ते जा रहे हैं। 


2


एक कस्बा 

कच्ची - पक्की सड़कें 

चंद मामूली कारख़ाने 

कारख़ानों  में काम करते मज़दूर 

सरकारी स्कूल 

रेडियो , टेलीविज़न 

सड़कों और खेतों पर 

फट - फट करते ट्रेक्टर 

साडी - सहज दुकानें  

दुकानों के बाहर 

मीढों पर बैठे 

चौधरी  और उनके चेले 

ताश के पत्तों को 

फेंटते हुए 

शायद आपस में 

यह बतियाते होंगे 

कि उन्हें अपनी ज़मीन के 

कितने टुकड़े करने हैं 

और परिवार के किस सदस्य को 

कौन सा टुकड़ा देना हैं

दीवार पर लटका यह दूसरा चित्र 

मेरे पिता ने बनाया था 

जिस पर अब धीरे धीरे 

धूल जमती जा रही है 


३ 


एक शहर 

कुछ छोटे - बड़े होटल 

सजी - धजी दुकानें 

पक्की सड़कें 

सरकारी बिजली , पानी 

मकान , दफ़्तर , छापेखाने 

रेल , बस , कारें

और उन कारों में घूमते 

सभ्य परिवार 

शायद आपस में यह बतियाते होंगे 

कि शहर के 

कौन से इलाके की क़ीमत बढ़ेगी 

और उन्हें अपना मकान कहाँ 

ज़मीन के किस टुकड़े पर बनवाना है 

दीवार  पर लटका यह तीसरा चित्र 

मैंने बनाया था , जो आज भी 

अधूरा और अर्थहीन है। 


४ 


एक महानगर 

बहुमंज़िला इमारतें 

पाँच सितारा होटल 

कैबरे , वातानुकूलित मंडप 

तारकोल की 

पक्की सपाट सड़कें

बस , ट्राम , रेल , मेट्रो 

अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डा  

सरकारी वाइन के ठेके 

रेड लाइट एरिया 

संगीत समारोह , नृत्य समारोह 

थिएटर , दूरदर्शन , केबल , इंटरनेट 

सड़कों पर भागते लोग 

इस महानगर में 

शायद यह बतियाते होंगे 

कि शाम 

किस मैख़ाने में बितानी है 

और किस साक़ी के हाथ से 

पीना है जाम 

किस पाँच सितारा होटल  में 

अँगरेज़ी धुनों पर 

करना है अँगरेज़ी नृत्य 

पॉप संगीत और रॉक नृत्य के शोर में 

अम्मा  की ' लल्ला ' की आवाज़ 

और बाऊ जी की डपट 

छटपटा रही है !

दीवार पर लटका 

यह चौथा चित्र 

मेरे बेटे ने बनाया था 

जिसके रंग अब और भी भड़क उठे हैं। 


5

और 

दीवार पर लटका 

यह पाँचवा चित्र

मेरे पोते ने बनाया है 

जिसमें 

काले   कपड़े पहने नकाबपोश 

ए के ४७ थामे आतंकवादी ,

सफेदपोश जिस्मों से लिपटा

काला धुआँ,

झोपड़ियों से उठता 

काला धुआँ ,

वोट और नोट छापने की जाली मशीनें 

भ्रष्टाचार के कैंसर से 

पीड़ित लोग ,

बन्दूक , बम , मानव - बम 

एक गुमनाम अँधेरे कमरे में 

चंद लोग बतिया रहे हैं 

कि ज़मीन की छाती को 

कहाँ - कहाँ से फाड़ना है 

कहाँ - कहाँ बमों का विस्फोट करना है  

और कहाँ उगानी हैं बन्दूक की फसलें

मेरे पोते द्वारा बनाया यह चित्र 

सब चित्रों में भयावह है 

लेकिन फिर भी , आज के अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में 

इसी चित्र का मूल्य सब से अधिक है 

और हर कोई इसी चित्र को ख़रीदना चाहता है।      



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