Saturday, August 2, 2025

शहर और जंगल - कुछ लोग

 कुछ लोग 


कुछ लोग मिलते हैं 

ज़िंदगी की तयशुदा सड़कों पर 

तयशुदा मंज़िलों का 

सफ़र  तय करने के लिए 

और फिर बिछुड़ जाते हैं 

जानी - अनजानी राहों पर 

एक - दूसरे को अनदेखा कर 

दबे पाँव निकल पड़ते हैं 

अजनबियों की तरह 

अपने अपने मरहलों पर 

जबकि कुछ लोग  

मिलते हैं अजनबियों  की तरह 

जीवन की अनजानी राहों पर 

और अनजानी मंज़िलों का 

सफ़र तय करते करते 

कब बन जाते हैं हमसफ़र 

उन्हीं स्वयं मालूम नहीं पड़ता 

कब उनके क़दमों के निशान

तब्दील हो जाते हैं मंज़िलों में 


कुछ लोग जीवन में 

किताबों की तरह मिलते हैं 

जैसे जैसे बाँचे  जाते हैं अर्थ 

अनकहे शब्दों के 

वैसे वैसे हृदय पटल पर 

अंकित होते रहते हैं 

कुछ अनजाने महाकाव्य  

कुछ लोग 

जीवन में ख़ुश्बू की  तरह मिलते हैं 

उनका कुछ देर का साथ ही 

सदियों का सुख बन जाता है 

गुज़र जाता है समय अपनी गति से 

और समय के साथ गम हो जाते हैं 

पहाड़ , नदी , झरने ,मिटटी ,आकाश 

उलट जाता है ब्रह्माण्ड 

पर कुछ लोगों की गंध 

यूँ रच - बस जाती है साँसों में 

कि कही कुछ भी 

अपरिचित नहीं लगता ,


कुछ लोग 

जीवन में मिलकर बिछुड़ते तो हैं 

पर बिछुड़कर भी नहीं बिछुड़ते 

सदियों तक लिपटे रहते हैं 

एक - दूसरे की साँसों में

और सुनाते रहते हैं एक दूसरे को 

अनछुए प्रेम गीत 

आत्मा का वही पुराना 

अमर पवित्र संगीत।  

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