Friday, August 29, 2025

Magyar Nyelvtan

Nyelvtani jelmagyarázat


1 Mondatrészek 


A pincér az asztalra teszi a bort .


A pincér -  Alany 


teszi - állitmány


a bort - tárgy 


az asztalra - határozó


2 Személyek 



3 Egyéb 


~

~         hasonlóképpen , ugyanigy

!   figyelem , Kivétel 


Szavak 


Igék 


Főnevek


Melléknevek  


Egyéb szavak 


kifejezések

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Adatlap

Vesz 

Bérel

Cserél

Név

Cím 

Milyen lakást keres ?


Tipus - Lákas , családi ház 


Hely , Város , kerület , városrész 


nagyság -


aláírás




  




Szavak és Magyaráztok - Words and explanation

Alany - Subject

Főnév - Noun

Melléknév - Adjective

Ige - Verb

Tagadás - Negative

Személy - Person

Nyelvtan - Grammar

Mély magánhangzók - Back Vowels

Magas magánhangzók - Front Vowels

Igeragozás - Conjugation of Verbs

Egyes szám - Singular

Többes szám - Plural

A határozott névelő - The Definite Articles 

Egészítse ki a szöveget - Fill in the blanks

Tegyen fel minden lehetséges kérdést a mondatokra - Askall the possible questions for the following sentences.

Főnévragozás - Suffixes of Nouns 


Igekötők  - Verbal prefixes

Mondatok - Sentences

Igekötővel - With Verbal prefix

Igekötő nélkül -- Without Verbal Prefix


Feleljen a Kérdésekre - Answer the questions 

Tegye többes számba a mondatokat - Put te sentences in to plural


Tegye egyes számba amondatokat - Put the sentences in to singular 

Tagadja a mondatokat - Make the sentences negative 

A kérdés - felelet szórendje - Word order of question and answers 


Az igeragok összefoglalása . Jelen idő 


A főnevek többesszáma 


Rövidüles


Rendhagyó Főnév 


Alany + helyhatározó - Subject + Adverb of place










Monday, August 25, 2025

कौन बनेगा रामभक्त

 कौन बनेगा रामभक्त 


भारतीय मूल के अमेरिकन सेठ जी का साहित्यिक व्यवसाय जब अमेरिकन टैरिफ से थोड़ा सुस्ताया तो सेठ जी चिंता में डूब गए। हमेशा की तरह सेठानी  ने नया रास्ता सुझाया , ' अब आप ये साझा संकलन छापना छोड़ो , ये कवि लोग कंगले हो गए है। कुछ नया शुरू करो। '

- ' तो फिर तुम्ही कुछ सुझाओ , नया क्या शुरू किया जाए  ? ' सेठ जी ने उत्सुकता से पूछा। 

- ' अरे , मोदी जी से  कुछ सीखो , उन्होंने अयोध्या में करोड़ों रूपये का राम मंदिर बनवा दिया और आप यहाँ बैठे बैठे राम भजन में लगे हुए हो। राम भक्तों को लपेटों ' सेठानी ने ज्ञान बिखेरा। 

- '  राम भक्तों को लपेटूँ , वो कैसे , कुछ समझा नहीं ' , सेठ जी ने उचकते हुए पूछा। 

- ' कौन बनेगा करोड़पति ' की तर्ज पर एक नया कार्यक्रम शुरू करो ' कौन बनेगा रामभक्त ' रामभक्तों के लिए क्विज रखों , उन्हें पुरस्कार दो '

- ' पुरस्कार ..उसके लिए पैसे कहाँ से आएंगे ? 

- ' पैसा भी रामभक्तो का ही होगा , अरे . एक . पुरस्कार सिर्फ ११००/ का होगा और रजिस्ट्रेशन सैकड़ों की तदाद में होंगे और रजिस्ट्रेशन के लिए हरेक भारतीय रामभक्त ११००/ देगा और विदेशी ..... '

- ' समझ गया ..समझ गया..हाँ विदेशी रामभक्त से कम से कम  १०१ डॉलर तो लेने ही पड़ेंगे ' कहते हुए सेठ जी ने ज़ोर का ठहाका लगाया और जुट गए रामभक्तों को लपेटने में। 

Thursday, August 21, 2025

Hungarian Conversation _ 2

 A Sárga Gimnázium 


Ez a Sárga Gimnázium . A Sárga Gimnázium nagyon jó iskola . Az épület nagy és sok diák tanul itt .

Itt tanul Nagy Lóri is . Magy Lori  17 éves . Lóri okos , de nem szorgalmas . Most irodalomóra van de , Lóri nem a teremben van hanem a mosdóban cigarettázik . A gimnázium mellet áll egy autó . Az autóban ül Nádas Félix, az uj igazgató . Az igazgató 

nagyon komoly ember . Sokat dolgozik . Az iskola előtt áll Csaba Zoli , a portás . Ő egy kövér barátságtalan ember .

Monday, August 18, 2025

शहर और जंगल - अंतिम गीत

 अंतिम गीत 


शेष है रचना अभी 

अंतिम गीत का 


दूर जंगल में 

पीड़ा का राग 

रात कि क़ैद में 

तड़पता सूरज 


ज़िंदगी एक दर्दीला 

अंतहीन सफ़र 

मगर मेरी आत्मा पर 

वसंत ने उकेरा 

एक जादुई फूल 

जिसकी गंध में डूबकर 

ज़िंदगी का हर ग़म मुस्कुरा उठेगा 

ज़मीं का ज़र्रा ज़र्रा महक उठेगा 


दाँव पर लगा है 

बस एक लम्हा प्रीत का।  

Sunday, August 17, 2025

शहर और जंगल - पहचान

 पहचान 


हर गाँव की पगडण्डी 

किसी न किसी 

बड़े शहर में निकलती है 

और 

हर बड़े शहर की काली सड़कें

कहीं न कहीं 

जुड़ती हैं 

उन अनजाने जंगलों से , जहाँ से 

लौट कर जो भी आता है 

अपनी पहचान खो ही आता है।  

Friday, August 15, 2025

StreamYard

 इसको शेयर नहीं करना ये सिर्फ आप के YouTube पर online live आने के लिए है।

online live आने से पूर्व निर्देशों को इसे जरूर पढ़ ले, इसमें live  आने के चरण बता रखें है। 


https://streamyard.com/pyeqnka3gi


- यदि आप के पास android phone  है तो सबसे पहले google search में दिया गया उपरोक्त stream yard का लिंक copy करके  paste करना है,

— यदि iOS & iPad-OS phone तो Safari में लिंक को copy करके  paste करना है,

— online live आने के लिए इसको paste करना जरूरी है सीधे नहीं खोलना

— लैपटॉप में भी यही प्रक्रिया रहेगी।


— कई बार आप का Email या मोबाईल न.ऑप्शन आयेगा आप अपना Email या मोबाईल न.पोस्ट कर दें।


-stream yard के लिंक को paste करने के बाद जब क्लिक करेंगे तो Option आयेगा Allow Stream-yard to access your camera and mic  तो उसे allow कर दीजिये


— यदि YouTube और Facebook का ऑप्शन आये तो,YouTube को क्लिक करना है


-लिंक को क्लिक करने के बाद  display name का ऑप्शन आयेगा उसमें स्वंय का नाम लिखना है

-अंत में enter the  broadcast studio पर click कर देना हैं।


—कई बार नेटवर्क की समस्या के कारण आवाज साफ नहीं आती है उस समय पुन: लॉगिन करना चाहिए।

—मोबाईल में बिना "earphones"/"Earbuds" लगाये आवाज साफ आती हैं।

—यदि आवाज ठीक नहीं आ रही हो तो तब "earphones"/"Earbuds" का उपयोग करें ।

— पहले बिना "earphones"/"Earbuds" के try करें।

—लैपटॉप में आवाज साफ नहीं आ रही हो तो Earphones का उपयोग करें।

Interview_16th August'2025

  कविता और दर्शन 


हम लोग कविता से दर्शन पर आ गए 

और दर्शन होता है बोझिल 

उस में नहीं होता कविता का दिल 

उस में नहीं होती कविता की चुटकी 

उस में नहीं होती वसंत की ख़ुश्बू

माना दर्शन से मिलता है तत्व ज्ञान 

लेकिन मुझे तत्व ज्ञान नहीं ,अपितु 

वसंत की है दरकार 

इसीलिए नहीं छोड़ता मैं कविता का दामन 

क्योंकि कविता मेरी आत्मा का 

कभी न मुरझाने वाला वसंत है। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

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डूबती इक सुबह का   मंज़र हूँ मैं

वक़्त का चलता हुआ चक्कर हूँ मैं 


कोई दरवाज़ा न कोई रौशनी 

तीरगी का एक सूना घर हूँ मैं 


दाग़ सीने में लिए फिरता रहा 

देखिये फूलों की एक चादर हूँ मैं 


दिल में रखी है किसी की मूर्ति

एक छोटा प्यार का मंदर हूँ मैं


आप भी चाहे तो ठोकर मार लें 

बारहा   तोडा गया   पत्थर हूँ मैं


लूटने का कब मुझे आया हुनर 

एक खस्ताहाल सौदागर  हूँ मैं 


हर कोई हैं मेरे साये में ' रसिक  '

हर तरफ फैला हुआ अम्बर हूँ मैं


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बनारस

 

मेरा नाम बनारस है

यह दुनिया मुझे

वाराणसी और काशी के नाम से भी जानती है

काशी विश्वनाथ महादेव का  नगर हूँ  मैं 

जीवन में मृत्यु  का समर  हूँ मैं ,

गंगा किनारे बसे नगरो में

मैं ही सबसे अधिक

पवित्र और पुराना हूँ

हिन्दू धर्म का सनातनी तराना हूँ ,

गंगा की लहरें

मेरे पवित्र क़दमों को स्पर्श  कर

और अधिक पवित्र हो जाती हैं  ,

मेरे क़दमो पर बने

अट्ठासी घाटों की माया में घिर कर

कुछ पल को अपनी राह भी बिसर जाती है,

मेरी आत्मा की तंग गलियो में

मृत्यु की प्रतीक्षा करती ज़िंदगी

निरंतर करवटे बदलती रहती है

हर चिता की कहानी

लहरों से सुनती है कहती हैं  ,

एक मौन प्रतीक्षा मृत्यु की

 कोई भय  संताप

 कोई शिकवा  गिला

 

मैंने देखा है यहाँ 

मृत्यु की परतों का

परत दर परत खुलना ,

मृत्यु के इन अबूझे रहस्यों को

मुझसे बेह्तर कौन समझेगा ,

मेरे घाटों पर

कभी   बुझने वाली चिताग्नि

दुनिया भर के पर्यटको के लिए

किसी कौतुहल से कम नहीं

इस चिताग्नि  को

अपने बेहतरीन कैमरों में

 क़ैद करने वाले पर्यटक

इतना भी नहीं समझते

की मृत्यु आज तक

किसी भी कैमरे में क़ैद नहीं हो पायी

वो तस्वीरों में उभरती अग्निलपटे

सिर्फ एक पीली उदास रौशनी है

जिसके प्रकाश में

मेरी आत्मा हमेशा जगमगाती रहती है

वास्तव में आत्मा का पंछी

किसी कैमरे में क़ैद हो ही नहीं सकता

वह तो घने आकाश उड़ने की प्रतीक्षा में

किसी टूटी मुंडेर पर बैठा मिलेगा

और चिता की जलती लकड़ियों के संगीत के साथ

गंगा की लहरों पर सवार होकर

गायेगा मृत्यु का अमर गीत

और जब यह सारी दुनिया

गहरी नींद में सो रही होगी

तब मैं ख़ामोशी से तन्हा  सुनूँगा 

मृत्यु का वही चिरपरिचत

अमर गीत .।

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आख़िर क्या होती है लघुकथा

 

जो वक़्त की क़ीमत को बेहतर समझती है

जो अंधेरों में बिजली - सी चमकती है

पढ़ ले जिसे आप कुछ पलों  में

जादू  जिसका रहे सालों तक 

जो उतर जाये रूह में आपकी

बस रहे न चंद ख़यालों तक,

जो काली घटा - सी  आये बरसने को

और छोड़ जाये सबको तरसने को

तार तार तो होता है  दामन इसका

लिखती अपने लहू से जब कोई क़िस्सा

कभी आग कभी पानी , कभी लहरों की रवानी 

मुफ़लिस की जवानी होती है लघुकथा

कुछ कविता , कुछ कहानी होती है लघुकथा।

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पसलियाँ 


लाल बत्ती चौराहे पर उस नर - कंकाल को देख कर मैं लगभग जड़ हो गया। उसकी ख़ाली कुर्सी वही पड़ी थी लेकिन  उसऔरत ने उसे पकड़ कर खड़ा कर रखा था और उसके दोनों हाथ भीख माँगने के लिए फैला रखे थे। मैं ग़ुस्से में तमतमाते हुए उस औरत पर बरस पड़ा -

"तुम्हे शर्म नहीं आती।  इस पिंजर को अस्पताल में होना चाहिए और तुम चौराहे पर इसकी नुमाइश कर रही हो। "

वह सकपका कर बोली - " बाबू जी , इसको पकडे रखने में मेरी भी पसलियाँ  दुखती हैं लेकिन क्या करूँ मजबूरी है। अगर यह कुर्सी पर बैठ जाता है तो लोगो की नज़र इस पर नहीं पड़ती और इसके खड़े रहने से इसकी एक एक पसली भी  दिखाई देती हैं।  लोग यह जान कर कि ये मरने वाला है इसके कफ़न के लिए पैसे दे जाते हैं।बच्चें तीन दिन से भूखे हैं तो मैंने सोचा कि ख़ुद को बेचने से पहले इसकी नुमाइश ही कर दूँ।   

उसकी दलील सुन कर मैंने अपनी नज़रें झुकाई और आगे बढ़ गया। 

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 लघुकथा - दीवार 


पडोसी  ने अपना पुराना मकान तुड़वा कर नया मकान बनवाया तो आँगन की ३ फ़ीट की दीवार को ६ फ़ीट ऊँचा कर दिया। यह देख कर मेरी पत्नी उदास हो कर मुझसे बोली - "देखिये भाईसाहब  ने  दीवार कितनी ऊँची कर दी है , पहले तो कभी कभी आमने -सामने खड़े हो कर बात हो जाती थी अब तो हम एक दूसरे की शक्ल भी नहीं देख पाएँगे , बात करना तो दूर की बात है। "

- " अरे धीरे बोलो , दीवारों के  भी कान होते हैं , अगर उन्होंने सुन लिया तो बुरा मान जायेंगे " - मैंने पत्नी को शांत करते हुए कहा। 

- " मैं तो चाहती हूँ वो सुन ले , दीवारों के कान ही नहीं दिल भी होता है , ज़रा ग़ौर से देखिये , ये दीवार कैसे सुबक - सुबक के रो रही है। "पत्नी  मायूसी से बोली। 

आँगन की ऊँची दीवार से टपकती बारिश की बूँदों  में पत्नी के आँसू  घुल - मिल गए थे  और उन बूँदों से मेरा दिल भी भीग गया था।    । 


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 

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 शब्द  कोई  भी    प्रेम  भरा , 

अब मुझ को ना लिखना तुम।

मेरे    जलते     ज़ख़्मों    पे , 

अब  मरहम  ना  रखना तुम ।


टूटा  दिल   उजड़ी बस्ती हूँ , 

गुजरा   हुआ    ज़माना   हूँ ।

मुरझाए   फूलों   पे   पसरा ,  

गम    का    शामियाना   हूँ ।

मैं   टूटी  हुई   सी   सरगम  ,

गीत   कोई  न   रचना  तुम ।

मेरे जलते जख्मों...... 


अपने ज़िंदा ज़ख़्मों को हँस ,

आज   कफ़न   पहनाया  है । 

बरसों से इस बोझिल मनको,

मुश्किल   से   समझाया   है ।

बन्द  खुली  इन   पलकों  में, 

स्वप्न   कोई  न   बुनना  तुम ।

मेरे जलते जख्मों......


इस सूने  मरघट  दिल में ना , 

कोई    ख़्वाब    मुस्काएगा ।

चन्दन   भी  जहरीले   सर्पों ,

जैसी     अगन     लगाएगा ।

मिले अगर जो किसी मोड़ पे,

मिलकर  भी न  मिलना तुम ।

मेरे जलते जख्मों.....

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Soror Annuncia - सिस्टर अनुनत्सया  


सिस्टर अनुनतस्या  मुझे देख रही थी।  मालूम नहीं , मैंने इससे पहले  सिर्फ़ पुरुषों की आँखों में देखी थी ऐसी उदासीनता , एक बार जब एक पुराना सपना टूट गया था और कोई पाँच मिनट के लिए यह विश्वास कर सकता था कि कुछ बहुत क़ीमती रीत जाता है ग़र कोई औरत किसी पुरुष की ज़िंदगी से निकल जाती है। 


लेकिन मेरे दूर जाने से उस बाल हृदय ,अधेड़ उम्र की सिस्टर में क्या रीत रहा है ? मैं तो उस संगीत को भी नहीं समझ पाती जिसमे ढलकर  वह अपना विरोध दर्शाती है। क्या मैं  उसके नारी सुलभ सपनों का पुल थी  जो उसके डरने के बावजूद उसे उस वास्तविक उत्तेजित दुनिया से जोड़ने में सक्षम था , या फिर उसने मुझे संसार के उस अद्भुत  मानव द्वीप से जोड़ा था जोकि सदियों से यही पर मौजूद था और अब वह समझती है कि मैं अतीत से भविष्य की ओर जा रही हूँ।  अथवा यह एक रुग्ण  संवेदनशीलता है , एक दिमाग़ी ख़लल  ,  मैं सुलझे शब्दों में समझना चाहती थी। बहुत कुछ पढ़ा था लेकिन फिर भी सब कुछ नहीं। एक पल के लिए वो सर्द  शाम मेरे ज़ेहन में कौंध गयी जब मैं  पियानो के पास बैठी थी ओर  मेरा हाथ ज़ख़्मी हो गया  था। 


जब ' अलविदा ' शब्द गूँजा तो हमेशा की तरह सिस्टर ने बढ़ कर मेरा हाथ थाम लिया। एक नारी सुलभ आकर्षक अदा से वह मुझसे लिपट गयी ओर उसने अपने अधर  मेरे अधरों पर रख दिए। तब से आज तक किसी ने मुझे उस तरह नहीं चूमा ,  सुलगते अधर .. यक़ीनन मेरी आत्मा भी भीग गयी थी । 

लेकिन  किसलिए    ?


बकवास.. बकवास.. बोलते हुए  मैं सीढ़ियाँ  उतर रही थी। मुझे किस बात के लिए शर्म आ रही थी , ख़ुद पे झुंझला रही थी  या फिर मैं समझना नहीं चाहती थी। क्या उस वाइलेन से परे भी कुछ ऐसे  रंग थे जिसके लिए कोई उपयुक्त  शब्द अबसे हज़ारों साल  बाद कोई हमारा पोता -पड़पोता  ही ढूँड   पायेगा ?


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Altató - लोरी


आकाश ने मूँदी नीली आँखें 

घर में मूँदी सबने आँखें 

रजाई में सोयें हरे मैदान 

चैन से सोओ तुम बलाज़


पैरों पर रख  सर को अपने 

कीड़ा ,मक्खी सोयें भैया 

उनके साथ सोयें ततैया 

चैन से सोओ तुम बलाज़


ट्राम भी थक कर सो गयी 

ऊँघ रही है खखड़ाहट 

सपने में बजती थोड़ी -सी 

चैन से सोओ तुम बलाज़


कुर्सी पे रखा कोट भी सोया 

उधड़न   भी अब ऊँघ रही 

बस और नहीं उधड़ेगी अब 

चैन से सोओ तुम बलाज़


ऊँघती गेंद ,एक जाम और 

जंगल की कर लो सैर और 

मीठी चीनी भी सो गयी 

चैन से सोओ तुम बलाज़


दूरिया सब कंचों की मानिंद 

बड़े हो कर सब पाओगे 

मूँद लो नन्हीं आँखें अपनी 

चैन से सोओ तुम बलाज़


सैनिक , फ़ायरमैन बनोगे 

या तुम बनोगे चरवाहे ?

देखो, सो गयी माँ तुम्हारी 

चैन से सोओ तुम बलाज़



कवि - József Attila

जन्म -  11th April ' 1905 - Budapest

निधन - 03rd December ' 1937  - Balatonszárszó

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बड़ी बुआ 


हर दिल अज़ीज़ थी मेरी बड़ी  बुआ 

परिवार में कुछ भी  होता 

अच्छा या बुरा 

मिलते ही ख़बर

दौड़ी आती थी पहली गाडी से 

एक छोटा बैग , एक कंडिया 

ज़ाफ़रानी  ज़र्दे की पुड़िया   

और पिछलग्गू गुड्डू भाई 

( उनका कनिष्ट पुत्र - मेरा फुफेरा भाई ) 

मिलती थी सबसे गले लग के   

मिनटों में घर लेती थी संभाल 

रखती थी वो सबका ख़्याल

और रात को फुर्सत में 

सुनाती थी मुझे दिलचस्प  क़िस्से 

पुरानी ज़िंदगी के 

कुछ अपने , कुछ ग़ैरों के 

काम सब निबटा के  

लौट जाती थी ख़ुशी ख़ुशी घर अपने 

भाई के दिए नेग को लगा सर अपने 

जब से नहीं रही दुनिया में बड़ी बुआ 

कोई नहीं आता घर अब 

ख़ुशी में या ग़म में 

बस याद बहुत आती है बड़ी बुआ। 



कवि - इन्दुकांत आंगिरस -----------------------------------------------------------------------------------------------

Geet 


 इस मन के सूने आँगन में

कब आओगे प्राण प्रिय 


रीत गयी चंदा की किरणें , बुझने लगे सितारे भी 

दरिया की बेबस लहरों से , मिलते नहीं किनारे भी 

पतझड़ भी अब रूठ गया है , रूठी यहाँ बहारें  भी 


इन दर्दीले गीतों को फिर  , कब  गाओगे प्राण प्रिय 


दिल की नगरी उजड़ गयी है  रूठी अब तन्हाई भी 

ग़म में डूबे  नग़मे मेरे ,  गूँगी है शहनाई  भी  

राख़ हुआ चन्दन मन  मेरा  ,धुआँ  बनी  परछाई भी 


बंजर मन में ख़ुश्बू बन कर  , कब छाओगे प्राण प्रिय 


शाम ढली डूबा सूरज भी , नागिन सी डसती  रतियाँ 

पनघट भी अब छूट गया है  , छूट गयी सगरी सखियाँ 

तारे गिनते रात कटी ये , बीत गयी कितनी सदियाँ


किरनों का सतरंगी रथ तुम , कब लाओगे प्राण प्रिय 

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गीत - आख़िर  कब तक 


मानव का रक्त पियेगा , मानव आख़िर  कब तक 

मानव का ज़ुल्म सहेगा , मानव आख़िर  कब तक 


भ्रष्टाचार  का  सर्प डसेगा , आख़िर कब तक 

मज़दूरों का ख़ून  बहेगा  , आख़िर  कब तक 

कब तक होगा      क़त्ल यहाँ इंसानियत का 

दशानन का दर्प हँसेगा , आख़िर  कब तक 


मानव का रक्त पियेगा..........


दहशत का सामान बनेगा आख़िर कब तक 

सिक्कों में ईमान  बिकेगा आख़िर  कब तक 

कब तक   होगा नाच यहाँ   हैवानियत  का   

मानव , मानव बम बनेगा आख़िर  कब तक 


मानव का रक्त पियेगा..........


सच का झूठा ढोल बजेगा आख़िर  कब तक 

चौपट जी का राज चलेगा  आख़िर  कब तक 

कब तक होगा   पतन    यहाँ  सियासत का 

दिल्ली तेरा ताज बिकेगा आख़िर  कब तक। 


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Flash Back , Tamil _ भूले बिसरे गीत

 மறந்து மறைந்த பாடல்.

+++++++++++++++

சரியாக எட்டு மணி பத்து நிமிடத்தில் 

 மறந்து மறைந்த பாடல் நிகழ்ச்சி

ஆரம்ப பாகும்.

மறந்து மறைந்த பாடல் 

நிகழ்ச்சி நிரல் 

இருபது நிமிட அந்த நிகழ்ச்சி.

சிறகடித்துப் பறந்து விடும்

என் ஆத்மாவை முழுவதுமாக  நனைத்துவிடும் 

இப்போது பல வருடங்கள் ஆகிவிட்டன.

வீட்டில் வானொலி பெட்டியும் இல்லை.

இன்றும் 

யூட்யூப் பில் பழைய பாடல்களைக் கேட்கிறேன்.

ஆனால் வானொலியில் கேட்கும் மறந்து மறைந்த

 பாடல் களின் ஆனந்தம் இப்பொழுது எங்கும் கிடைக்க

வில்லையே.

Thursday, August 14, 2025

Hungarian Scholarship

 A mennyiben a pályázó rendszeresen hozzájárul Füst

népszerűsitéséhez e tevékenysége   dokumentálását kérjük . 

A plyázat benyútásához külön formanyomtatvány nincs.


A kiosztandó ösztöndijak számát a Kuratórium állapitja meg. Az  érvenyes pályázat feltétele , hogy a pályázo a forditandó műre kiadői szerződéssel vagy legalább kiadoi szándélknilatkozattal rendelkezzen .

Wednesday, August 13, 2025

Flash Back _ Tamil _ Maa

 அம்மா!

மருத்துவ மனையில் நோய்வாய் பட்டிருந்த நேரத்திலும்

உனக்கு எங்களைச் பற்றிய கவலைதான்.

அந்நிலையிலேயும்

என்னிடமும்  சகோதரனிடமும் 

கூறினாய்--

""உங்களுக்கு எந்த இன்னலும் வரக்கூடாது."

அம்மா! உன்னைப் பற்றி எழுத சொற்கள் கிடைக்க

வில்லை.

காகிதம் போதவில்லை.

 எழுதுகோலை கீழே வைத்து விட்டேன்.

 உன் நினைவிலேயே

 வாழ்ந்து கொண்டிருக்கிறேன்.

Friday, August 8, 2025

Linguistic - Greek Words

 Γεια χαρά - 

χαίρεται -  खैरियत  


πέτρα - Stone - पत्थर 

Greek Vocaulary

 στιλό - Pen 

μήνυμα - text message

μάγουλο - Cheek 

μπάνιο - Bathroom

μαθητής - Student

γραβάτα - Neck Tie

γάμος - Wedding

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χελώνα - Turtle 

αλάτι - Salt 

μωρό Baby

ήλιος - Sun 

πέτρα - Stone 

σώμα - Body 

φαγητό - Food 

ρόδα - Wheel

κάλτσα - Sock 

ζακέτα - Jacket 

βάρκα - Boat 

χαρά μου - My joy 

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Hungarian Communiction # 2

 Az új angoltanár és az igazgató most az irodában van.Ott van kelemen Erzsébet , a titkárnő is .


- Jenny , bemutatom Erzsikét, Erzsike , Ő Jenny , az új  angoltanárnő . 

- Nagyon örülök .

-Nagyon örülök . Sajnos én nem beszélek jól magyarul .

- Ó, nem baj. Én egyaltalán nem beszélek angolul . Itt van nehany papir ...

Erzsike és Jenny leülnek. Erzsike kérdez , Jenny válaszol .

- Mikor született ?

- 1985 , december 12 

- Jaj , drágam , milyen fiatal .. Mi a neve ?

- Tessék ?

- Hogy hivják ?

- Ja , Jennifer Mcbrain

-Jézusom , Ezt hogy írják  ? Tudja betűzni ?

-Igen , J mint Jenő , E mint Elemér , N mint Nóra , még egyszer N mint Nóra

Wednesday, August 6, 2025

शहर और जंगल - कुछ चित्र

 कुछ चित्र 


1


एक गाँव,

गाँव में बरगद , पीपल 

नारियल और केले के  पेड़  

पेड़ों पर झूले ,

झूलों पर झूलती लड़कियाँ 

पनघट ;

पनघट पर गगरी भरती राधाएँ 

खेतों में हल चलाते बैल 

पेड़ों की छाँव में 

पसीना सुखाते किसान  

मंदिर , मस्जिद , गुरुद्वारा , गिरजा 

मिलजुल कर सब 

अपने अपने ईश्वर की करते पूजा    

चौपाल ;

चौपाल पर हुक़्क़ा गुड़गुडाते 

गाँव के कुछ बुज़ुर्ग 

शायद यह बतियाते होंगे कि

किस तरह 

मिटटी के घरों में रहकर ही 

आदमी अपनी 

मिटटी से जुड़ा रह सकता है 

दीवार पर बना यह चित्र 

मेरे दादा जी ने बनाया था 

जिसके रंग 

अब फीके पड़ते जा रहे हैं। 


2


एक कस्बा 

कच्ची - पक्की सड़कें 

चंद मामूली कारख़ाने 

कारख़ानों  में काम करते मज़दूर 

सरकारी स्कूल 

रेडियो , टेलीविज़न 

सड़कों और खेतों पर 

फट - फट करते ट्रेक्टर 

साडी - सहज दुकानें  

दुकानों के बाहर 

मीढों पर बैठे 

चौधरी  और उनके चेले 

ताश के पत्तों को 

फेंटते हुए 

शायद आपस में 

यह बतियाते होंगे 

कि उन्हें अपनी ज़मीन के 

कितने टुकड़े करने हैं 

और परिवार के किस सदस्य को 

कौन सा टुकड़ा देना हैं

दीवार पर लटका यह दूसरा चित्र 

मेरे पिता ने बनाया था 

जिस पर अब धीरे धीरे 

धूल जमती जा रही है 


३ 


एक शहर 

कुछ छोटे - बड़े होटल 

सजी - धजी दुकानें 

पक्की सड़कें 

सरकारी बिजली , पानी 

मकान , दफ़्तर , छापेखाने 

रेल , बस , कारें

और उन कारों में घूमते 

सभ्य परिवार 

शायद आपस में यह बतियाते होंगे 

कि शहर के 

कौन से इलाके की क़ीमत बढ़ेगी 

और उन्हें अपना मकान कहाँ 

ज़मीन के किस टुकड़े पर बनवाना है 

दीवार  पर लटका यह तीसरा चित्र 

मैंने बनाया था , जो आज भी 

अधूरा और अर्थहीन है। 


४ 


एक महानगर 

बहुमंज़िला इमारतें 

पाँच सितारा होटल 

कैबरे , वातानुकूलित मंडप 

तारकोल की 

पक्की सपाट सड़कें

बस , ट्राम , रेल , मेट्रो 

अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डा  

सरकारी वाइन के ठेके 

रेड लाइट एरिया 

संगीत समारोह , नृत्य समारोह 

थिएटर , दूरदर्शन , केबल , इंटरनेट 

सड़कों पर भागते लोग 

इस महानगर में 

शायद यह बतियाते होंगे 

कि शाम 

किस मैख़ाने में बितानी है 

और किस साक़ी के हाथ से 

पीना है जाम 

किस पाँच सितारा होटल  में 

अँगरेज़ी धुनों पर 

करना है अँगरेज़ी नृत्य 

पॉप संगीत और रॉक नृत्य के शोर में 

अम्मा  की ' लल्ला ' की आवाज़ 

और बाऊ जी की डपट 

छटपटा रही है !

दीवार पर लटका 

यह चौथा चित्र 

मेरे बेटे ने बनाया था 

जिसके रंग अब और भी भड़क उठे हैं। 


5

और 

दीवार पर लटका 

यह पाँचवा चित्र

मेरे पोते ने बनाया है 

जिसमें 

काले   कपड़े पहने नकाबपोश 

ए के ४७ थामे आतंकवादी ,

सफेदपोश जिस्मों से लिपटा

काला धुआँ,

झोपड़ियों से उठता 

काला धुआँ ,

वोट और नोट छापने की जाली मशीनें 

भ्रष्टाचार के कैंसर से 

पीड़ित लोग ,

बन्दूक , बम , मानव - बम 

एक गुमनाम अँधेरे कमरे में 

चंद लोग बतिया रहे हैं 

कि ज़मीन की छाती को 

कहाँ - कहाँ से फाड़ना है 

कहाँ - कहाँ बमों का विस्फोट करना है  

और कहाँ उगानी हैं बन्दूक की फसलें

मेरे पोते द्वारा बनाया यह चित्र 

सब चित्रों में भयावह है 

लेकिन फिर भी , आज के अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में 

इसी चित्र का मूल्य सब से अधिक है 

और हर कोई इसी चित्र को ख़रीदना चाहता है।