Sunday, March 3, 2024

फ़्लैश बैक/3 - मंझले चाचा


मंझले चाचा 


 साढ़े छह फुट लम्बे ,

इकहरा बदन, अधपके बाल 

ज़ेहन में आज भी ताज़ा ,

 गुज़रे कितने साल 

अंग्रेज़ी बोलते थे फर्राटेदार 

कुछ अलग ही था उनका किरदार 

IQ का तो क्या कहने 

उड़ती चिड़िया के गिनते थे पर 

बहुत पैनी थी उनकी नज़र 

चाय के साथ नमकपारों के शौक़ीन   

अक्सर ले जाते थे मुझे भी साथ 

करते थे  हम  दिलचस्प बाते 

चाय की चुस्कियों के साथ ,

चाय के बाद 

अक्सर एक ख़ास अंदाज़ में 

उनका सिगरेट सुलगाना 

रामलीला के मेले में 

रिंग फेंक कर इनाम पाना 

Alberto Moravia का उपन्यास 

Two Women  मुझे पढ़वाना 

याद बहुत आता है गुज़रा ज़माना ,

एक मनहूस दिन 

नार्थ  ब्लॉक , दिल्ली की सीढ़ियों पर 

अचानक दिल का दौरा  पड़ना

 इस दुनिया से उनका विदा होना 

 ज़ार ज़ार मेरा रोना , 

रहे नहीं मंझले चाचा 

लेकिन उन नमकपारों का स्वाद 

आज भी है मुंह में मेरे ताज़ा 

दिल करता है हो जाये फिर 

एक प्याली  चाय  उनके साथ।  


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 


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