Friday, March 22, 2024

संस्मरण - साहित्य साधक मंच

 संस्मरण - साहित्य साधक मंच


बैंगलोर शहर का एक खिला हुआ दिन था और मैं अपनी कुछ हंगेरियन कविताओं का हिंदी अनुवाद  टाइप करवाने के सिलसिले में श्री वेद प्रकाश पांडेय जी के निवास स्थान पर मौजूद था। पांडेय जी से मेरी पहली मुलाक़ात थी और उनका नाम मुझे मेरी अग्रज श्रीमती उर्मिल सत्यभूषण ने सुझाया था। यक़ीनन दक्षिण भारत के हिन्दीतर शहर बैंगलोर में हिंदी भाषा की टाइप की सुविधा एक सुखद अनुभूति थी। पांडेय जी के घर मेरी नज़र श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ के काव्य संग्रह ' मिटटी की पलकें ' पर पड़ी।  मैंने वही बैठे बैठे कुछ कविताएँ पढ़ डाली। अधिकाँश मुक्तक और गीत थे। मुझे वो कविताएँ , कविताएँ लगी और मैंने  उसी दिन ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी से फोन पर बात करी।  उनकी सुन्दर कविताओं के लिए उन्हें बधाई दी और कुछ दिनों बाद उनके निवास स्थान पर मेरी उनसे पहली मुलाक़ात हुई। सहज - सरल व्यक्तित्व के धनी श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ मेरे कवि मित्र बन गए। कुछ अरसे बाद उनके द्वारा स्थापित ' साहित्य साधक मंच ' की काव्य गोष्ठियाँ में वर्षों  तक  
जाना होता रहा।  इस मंच के ज़रिये बैंगलोर के दूसरे कवियों और लेखकों से भी जुड़ाव हो गया।  इस मंच की एक विशिष्टता यह भी है कि
यहां पर हिंदी के अलावा कन्नड़ , उर्दू और दीगर ज़बानों के शाइर अपना कलाम पढ़ते रहे हैं। बाद में मर्मज्ञ जी ने ' साहित्य साधक मंच ' के नाम से मासिक पत्र   का प्रकाशन भी किया जिसमे देश भर के कवियों कि रचनाओं को स्थान दिया। मैंने सिर्फ दो फुट की  दूरी से श्री ज्ञानचंद
मर्मज्ञ जी को अनेक बार सुना है और उनके गीतों ने मुझे सदैव आनंदित किया है।  उनकी ग़ज़ल का यह  शेर देखें , जिसे मैं अक्सर उद्धृत करता हूँ।

" ज़िंदगी की सांझ में बेटे ने जाने क्या कहा
  माँ की आँखें मौन थी पर लोरियाँ रोती रही "

बैंगलोर में कोई भी  सरकारी  अथवा ग़ैर सरकारी साहित्यिक कार्यक्रम जनाब ज्ञानचंद मर्मज्ञ की उपस्तिथि के बिना पूरा नहीं होता।  कुछ सरकारी साहित्यिक कार्यक्रमों में ,उनकी सिफारिश पर ,मुझे भी उनके साथ शिरकत करने का अवसर मिला। किसी भी संस्था के कार्यक्रमों का निरंतर आयोजन करना एक दुर्लभ कार्य है जिसे पूर्ण करने का श्रेय साहित्य साधक मंच के संस्थापक / अध्यक्ष ज्ञानचंद मर्मज्ञ के साथ साथ उनकी पूरी  टीम को जाता है जिसमें मंजू वेंकट और केशव करण का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
३१ मार्च २०२४ को ' साहित्य साधक मंच ' का २०० वा सारस्वत कार्यक्रम संपन्न होने जा रहा है जोकि अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है।
बैंगलोर शहर में कविता और साहित्य की बात होगी तो ज्ञानचंद मर्मज्ञ का नाम अग्रीण श्रेणी में आएगा। आज मुझे दिल्ली की संस्था
 हल्क़ा-ए-तश्‍नगाने अदब,दिल्ली के सेक्रेटरी और मारूफ उस्ताद शाइर जनाब सीमाब सुल्तानपुरी का जुमला , ' जो संस्था  रजिस्टर   हो जाती है वो रजिस्टर में ही रह जाती है " बेमानी लग रहा है क्योंकि ' साहित्य साधक मंच ' को रजिस्टर्ड हुए कई वर्ष हो चुके हैं और यह संस्था
रजिस्टर तक सीमित न रह कर दिन दूनी रात चौगनी तरक्की कर रही है। यह तो सर्वविदित है कि किसी भी सफल पुरुष के पीछे किसी नारी का हाथ होता है।  श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी और उनके साहित्य साधक मंच की सफलता के पीछे निश्चय ही उनकी धर्मपत्नी श्रीमती शरद का ही हाथ है। साहित्य साधक मंच के हर कार्यक्रम में उनकी सक्रीय भागीदारी को प्रणाम करता हूँ।   ईश्वर से यही कामना है कि श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने अदब का जो दीप जलाया है वो अनवरत जलता रहे और हर अँधेरे को मिटाता रहे।  अनेक शुभकामनाओं के साथ ...  

इन्दुकांत आंगिरस
# 9900297891

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