लघुकथा - मौका
श्री राम के मंदिर के उद्घाटन का वक़्त करीब आता जा रहा था। हर तरफ़ श्री राम की जय जयकार हो रही थी। सोशल मीडिया पर श्री राम का समर्पित कविताएँ , गीत और आलेखों की बाढ़ - सी आ गयी थी। TV चैनल्स पर श्री राम को समर्पित अनेक कार्यक्रम दिखाए जा रहे थे लेकिन सुरेंद्र का मन इसमें न लगा। घर में राशन के पैसे न थे और सुरेंद्र इसी चिंता में डूबे थे। एक वर्ष पूर्व तक किसी तरह माँ की पेंशन से काम चल जाता था लेकिन माँ के गुज़रने के बाद पेंशन भी बंद हो गयी थी।
सुरेंद्र ने माँ के पुराने संदूक को इस आशा से टटोला कि शायद उसमे कुछ रुपए मिल जाए लेकिन उसमे पुराने कपड़ों और कुछ किताबो के अलावा कुछ न मिला। लेकिन एक किताब पर नज़र पड़ते ही उनका चेहरा खिल उठा। लगभग दो वर्ष पूर्व उनकी माता जी ने अपना काव्य संग्रह - ' राम गागर ' की एक हज़ार प्रतियां छपवाई थी । ' राम - गागर ' श्री राम के जीवन का संक्षिप्त काव्य -संग्रह था। सुरेंद्र ने एक गहरी साँस छोड़ी , उन्हें लगा कि इस पुस्तक को बेचने का इससे बेहतर मौका फिर नहीं मिलेगा । सुरेंद्र ने अपना चश्मा लगाया और ' राम - गागर ' काव्य संग्रह की प्रतियां संदूक से बाहर निकाल कर गिनने लगे।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
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