A vadgalamb és a szarka - जंगली कबूतर और मुटरी
पंचतंत्र की कथाओं से आप सभी परिचित हैं। इन कथाओं में अक्सर जानवरों और पक्षियों के माध्यम से समाज को नीतिपरक ज्ञान दिया जाता रहा है। पंचतंत्र की कथाएँ सिर्फ़ भारत में ही नहीं अपितु दूसरे राष्ट्रों और भाषाओं में भी उपलब्ध हैं। प्रस्तुत है , हंगेरियन भाषा में उपलब्ध ऐसी ही एक लोककथा का हिन्दी अनुवाद जोकि आज भी प्रासंगिक है , विशेषरूप से भारतीय साहित्यिक परिवेश में।
कोरोना के दौरान हिन्दी कवि / लेखक कुकुरमुत्ता की तरह उग आयें। वे सभी कवि / लेखक इस लोककथा को ज़रूर पढ़ें जो चहार कविताएँ लिख कर ख़ुद को फ़ारसी का उस्ताद समझने लगते हैं और साहित्य की पावन गंगा नदी को अपने कूड़े -करकट से दूषित करते जा रहे हैं।
A vadgalamb és a szarka
जंगली कबूतर और मुटरी
जंगली कबूतर ने मुटरी से कहा कि वह उसे भी घोंसला बनाना सीखा दे क्योंकि घोंसला बनाने में मुटरी उस्ताद है और वह ऐसा घोंसला बनाना जानती है जिसमे बाज़ , शिकरा नहीं घुस सकते।
मुटरी ने ख़ुशी ख़ुशी उसे सीखाना स्वीकार कर लिया। घोंसला बनाने के बीच एक एक टहनी को जोड़ते वक़्त मुटरी अपने अंदाज़ में जंगली कबूतर से कहती -
-" इस तरह रखो , इस तरह बनाओ ! इस तरह रखो , इस तरह बनाओ "
यह सुन कर जंगली कबूतर बोला -
जानता हूँ , जानता हूँ , जानता हूँ !
मुटरी एक पल को ख़ामोश हो गयी लेकिन बाद में ग़ुस्से से भर उठी।
- अगर जानता है , तो बना ले अपने आप ! - और उसने घोंसला अधूरा ही छोड़ दिया।
जंगली कबूतर उसके बाद से न तो कभी उस घोंसले को पूरा कर पाया और न ही मुटरी उस्ताद से कभी कुछ सीख पाया।
( प्रसिद्ध लोककथा )
अनुवादक - इन्दुकांत आंगिरस
NOTE : मुटरी एक प्रकार की चिड़िया होती है जिसका सिर, गरदन और छाती, काली तथा बाक़ी शरीर कत्थई होता है। यह कौए से कहीं बढ़कर चालाक और चोर होती है। इसको अँगरेज़ी भाषा में Magpie कहते है।
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